Friday, January 31, 2014

हरतालिका का तीज

य़ह व्रत भाद्रपक्ष कि शुक्ला तृतीया को मनाया जाता है | पहले घर को साफ कर सजाये फिर पूजा के स्थान में शिव पार्वती की मूर्ति   स्थापित कर उनका मंत्र से आवाहन करे फिर आचमन करे स्नान करावे और पूजन सामग्री तथा विधि अर्पण कर इसके बाद कथा सुने |अंत में बॉस के बड़े पात्र  में पकवान ,वस्त्र -दक्षिणा आदि रखकर पण्डित को दे | इस प्रकार पूजन कर दूसरे दिन मूर्ति  को किसी जलाशय में विसजर्न कर  दे |
सूत जी बोले -----जिसके घुंघराले अलके कल्प वृक्ष के फलो से ढकी हुई है और सुंदर एवं नूतन वस्त्रो को धारण करने वाला श्री पार्वती जी कि कथा माला से जिसका मस्तक शोभायमान है , ऐसे दिगंबर रूपधारी शंकर भगवान को नमस्कार है | कैलाश पर्वत कि सुंदर चोटी पर विराजमान भगवान  शंकर से गौरा ने पूछा कि हे प्रभो !आप मुझे गुप्त किसी व्रत कि कथा सुनाइये | हे स्वामिन !यदि आप मुझ पर प्रसन्न हे तो ऐसा व्रत बताने कि करपा करे जो सभी कर्मो का सार और जिनके करने में बहुत परिश्रम न करना फल भी विशेष प्राप्त हो जाये यह व्रत करने कि कृपा करे कि मे आपकी पत्नी किस व्रत के प्रभाव से हुए है | जगत स्वामी !यदि आप मध्य अवसान से रहित है आप मेरे पति किस दान पुण्य के प्रभाव से  हुए है ? शंकरजी बोले --हे देवी ! सुनो मैं तुम्हे वह  उत्तम व्रत  कहता हूँ जो परम गोप्य एवं सर्वस्य है | यह व्रत जैसे कि तारो में चंद्रमा , ग्रहो में सूरज वर्णो में ब्राहाण , सभी देवताओ में विष्णु ,नदियो में जैसे गंगा ,पुराणो में महाभारत ,वेदो में सामवेद , इन्द्रियो में मन श्रेष्ठ समझे जाते है वैसे ही पुराणो तथा वेदो का सर्वस्व हो इस व्रत को शास्त्रो ने कहा है उसे एकाग्र मन से श्रवण  करो |इसी व्रत के प्रभाव से ही तुमने मेरा आधा आसन प्राप्त किया है | तुम मेरी परम प्रिय हो इसी कारण यह सारा व्रत मैं तुम्हे सुनाता  हूँ| भादो का महीना हो शुक्लपक्ष कि तृतीया तिथि हो और हस्त नक्षत्र हो उस दिन व्रत के अनुष्ठान से स्त्री और कन्याओ के सभी पाप भस्म हो जाते है |
 गौरी! पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया था. इस अवधि में तुमने अन्न ना खाकर केवल हवा का ही सेवन के साथ तुमने सूखे पत्ते चबाकर काटी थी. माघ की शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश कर तप किया था. वैशाख की जला देने वाली गर्मी में पंचाग्नी से शरीर को तपाया. श्रावण की मुसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहन किये व्यतीत किया. तुम्हारी इस कष्टदायक तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ होते थे. तब एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराज़गी को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे.
तुम्हारे पिता द्वारा आने का कारण पूछने पर नारदजी बोले – ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ. आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं. इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ.’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- ‘श्रीमान! यदि स्वंय विष्णुजी मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है. वे तो साक्षात ब्रह्म हैं. यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर कि लक्ष्मी बने.’
नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का समाचार सुनाया. परंतु जब तुम्हे इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हारे दुःख का ठिकाना ना रहा. तुम्हे इस प्रकार से दुःखी देखकर, तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछने पर तुमने बताया कि – ‘मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है. मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ. अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा.’ तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी. उसने कहा – ‘प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिये. भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करे. सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो भगवान् भी असहाय हैं. मैं तुम्हे घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी नहीं पायेंगे. मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे.’
तुमने ऐसा ही किया. तुम्हारे पिता तुम्हे घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए. वह सोचने लगे कि मैंने तो विष्णुजी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया है. यदि भगवान् विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत अपमान होगा, ऐसा विचार कर पर्वतराज ने चारों ओर तुम्हारी खोज शुरू करवा दी. इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं. भाद्रपद तृतीय शुक्ल को हस्त नक्षत्र था. उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया. रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया. तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ. यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये. ‘तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया.
प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया. उसी समय गिरिराज अपने बंधु – बांधवों के साथ तुम्हे खोजते हुए वहाँ पहुंचे. तुम्हारी दशा देखकर अत्यंत दुःखी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पुछा. तब तुमने कहा – ‘पिताजी, मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक़्त कठोर तपस्या में बिताया है. मेरी इस तपस्या के केवल उद्देश्य महादेवजी को पति के रूप में प्राप्त करना था. आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूँ. चुंकि आप मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय कर चुके थे, इसलिये मैं अपने आराध्य की तलाश में घर से चली गयी. अब मैं आपके साथ घर इसी शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह महादेवजी के साथ ही करेंगे. पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार करली और तुम्हे घर वापस ले गये. कुछ समय बाद उन्होने पूरे विधि – विधान के साथ हमारा विवाह किया.”
भगवान् शिव ने आगे कहा – “हे पार्वती! भाद्र पद कि शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका. इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूँ.” भगवान् शिव ने पार्वतीजी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा.
और जो नारी भादो के शुक्लपक्ष कि तृतीया को यह व्रत नही करती आहार कर लेती है |वह सात जन्मो तक बंध्या रहती है एंव अगले जन्म मे विधवा हो जाती है | दरिद्रा रुपी अनेको कष्ट भोगना पड़ता है | उसे पुत्र शोक छोड़ता ही नही और जो उपवास नही करती वह  घोर नरक मे जाती है फल खाने से बंदरी होती है जल पि लेने से जोक होती है हे देवी जो स्त्री इस प्रकार से सेवा व्रत किया करती है वह तुम्हारे समान ही अपने पतिके साथ पृथ्वी पर अनेको बार विहार करती है इसकी कथा श्रवण करने से हजार अश्वमेघ एवं सो बाजपेयी का फल मिलता है |

Saturday, January 25, 2014

( भादों माह ) चतुर्थी की कहानी

एक साहूकार था | उसके चार लड़का था और चार बहु थी | सासु उपवास व्रत कुछ भी नही करने देती थी तो सबने अपने आदमी से बोला कि आपकी माँ को पियर छोड़ दो हम  उपवास , व्रत , धर्म ,पुण्य तो सुख से करांगा ,तो उसने अपनी माँ को पीयर  भेज दी अब सभी बहुओ ने चौथ माता की पूजा करी | चंद्रमा  में देर थी तो वे सब सो गई तो चंद्रमा बहुत ऊपर चढ़ आया थोड़ी देर बाद छोटी बहु कि नींद खुली,तो चंद्रमा का नाम नही आ रहा तो वह सब  जेठानी का कमरा का पास जाकर आवाज लगाई बड़ा भाभीजी  कोण्डलियो छोटा भाभीजी  कोण्डलियो
घर में चोर आया हुआ था |उस चोर का नाम भी कोण्डलियो था | वह समझा कि उसने मुझे पहचान लिया वो सीधा कचहरी गया  और बोला कि साहूकार का बेटा  कि बहु तो सब जानती है उसने तो मेरा नाम ही बता दिया तो थानेदार ने कहा जाओ उस साहूकार को बुलाकर लाओ  साहूकार आया तो उससे पुछा कि तेरी बहु जानकार  है उसने चोर का नाम तक बता  दिया अब बहु को बुलाकर लाओ बहु आई तो पूछा तू तो बहुत जान कार है चोर का नाम तक बता दिया वा बोली कि मेरे को तो मालुम भी नही की चोर का नाम कोण्डलियो  है में तो चंद्रमा का नाम भूल गई थी तो कोण्डलियो कोण्डलियो आवाज लगाई तो मालूम  हुयो कि चोर का नाम कोण्डलियो  है इस बात पर राजा  ने उसके बहुत सो धन दियो और घर में भी चौथ माता टूटी
अब वो साहूकार ने अपनी ओरत  से बोल्यो कि तुम तो बाहर बैठो बहुओ के रसोई सोपो, आया गया के मुठ्ठी दो यो सब धन बहु का  भाग से बचो है नही तो सब चोर ले जाता |है चौथ माता उसके टूटी जैसी सबको टुटजो |

Wednesday, January 22, 2014

भाई दूज विधि

दीपावली के बाद दूज का दिन भाई दूज आवे है |इस दिन भाई व् बहन को यमुनाजी में नहाने को महात्म है |फिर भाई बहन को साड़ी ओढ़ावे  है | उस दिन भाई को अपनी बहन के यहा भोजन करना चाहिए | बहन भाई को तिलक लगाकर हाथ में श्रीफल देकर आरती उतारनी चाहिए | भाई अपनी बहन को उपहार देना चाहिए |

भाई दूज की कहानी

सात बहन का बीच मे एक भाई थो अकेला होने के कारण उसके सब प्यार से रखते थे सब बहनो  कि शादी तो बहुत दूर- दूर हुई पर एक छोटी बहन  कि शादी पास में  हुई |अब उस लड़का कि सगाई हो गई और शादी को समय आयो तो माँ ने अपना बेटा से कहा कि बेटा जा सब बहनो को बुलाकर ले आ तब उसने माँ से कहा कि माँ में अकेला हूँ इतनी दूर दूर कैसे जाऊ तू तो रहने दे छोटी बहन पास मे ही है अपन उसको ही बुला लेगे | इतनो सुनते ही माँ भी राजी हो गई |
अब वह छोटी बहन को लेने गयो तो उस दिन भाई दूज थी बहन दरवाजा पर भाई कि मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने लगी |उसने भाई को आते देख लिया पर पूजा छोड़ना उचित नही समछा | भाई चुपचाप उसकी गतिविधि  देखतो रयो अब पूजा खतम हुई तब बहन ने भाई से कहा भैया माफ करना मे आपके पहचान नही पाई दोनों भाई बहन भीतर गये और बातचीत करने लगे सबका आपस में हाल चाल पूछने लगे अब वा तो भाई को देख ख़ुशी से फूली नही समाई | नया नया  पकवान बनाकर भाई को खिलाया |
भाई ने बहन से कहा सुबह आप को चलना है मेरे साथ मेरी शादी है बहन ने कहा आज तो आप जाओ मे कल आजाऊॅगी | तुम्हारे लिए लड्डू बनाये है ये लेते जाओ | जब वो जाने लगा तो थोड़ी दूर गया कि उसके समझ मे आयो  उसने पीछे से लड्डू देखे तो आटा  का अंदर साप  का कण   पीस गयो | वह तो देखते से ही दौड़ी और भाई का प्राण बचा लिया | इसलिए बहन भाई कि और भाई बहन क रक्षा करे है | और यह  त्यौहार मनाते है |

Thursday, January 16, 2014

ऋषी पंचमी की कहानी


एक माँ  बेटा था , वे बहुत ही गरीब थे | बेटा  रोज जंगल में जाकर के लकड़ी लातो और बेचकर  घर चलातो | अब भादवा को महीनो आयो , ऋषी पंचमी को दिन आयो , तब वो बेटो माँ से बोल्यो -----माँ सब अपनी बहन से राखी बंधवावे है , में  भी बहन के घर जाऊॅ राखी बंधवाने | तब वा माँ बोली ----बेटा अपन तो बहुत गरीब है ,तू बहन के घर कोई चीज लेकर जावेगो ? माँ ये लकड़ी का पैसा है | अब वो लकड़ी  का पैसा लेकर गया तो रास्ता में चोर ने उससे पैसा छीन कर उसको मारकर रास्ता में ही पटक दिया | जब ऋषी ने मन में विचार कियो कि अपन इसके जीवित नही करुगा तो अपनी बात कोई नही मानेगा |
जब ऋषी  ने अमृत का छाटा देकर उसको जीवित कर दिया तो वह वापस अपने घर जाने लगा तब वे ऋषी बोल्या कि तू बहन के यहाँ क्यों नही जावे है , तो वो  लड़को बोल्यो कि महाराज बहन के यहाँ खाली हाथ कैसे जाऊ , म्हारा पैसा तो चोर ले गया | सूना हाथ बहन से राखी कैसे बंधाऊगा  जब ऋषी ने एक लकड़ी दी और कहा कि बहन राखी बांधे तो या लकड़ी थाली में डाल देना | अब भाई बहन के घर गयो बहन सूत कात रही थी | भाई जाकर खड़ो हो गयो और बहन सूत काटती रेवे |सूत को तार लव तक नही जोड़े बहन भाई से बोले नही | तब भाई ने बहुत ही बूरो लग्यो और भाई वापस घर जाने लगा |इतना में ही सूत का तार जोड़कर बहन ने भाई को बुलाया और बहन बोली में तो तेरा ही रस्ता देख रही थी , कई  करू मेरा सूत का तार जुड़े नही और में थारे से बोलू नही |   बाद में भाई के पाटा पर बिठाकर राखी बाँधी तो भाई ने  थाली में एक लकड़ी डाल दी | देवरानी , जेठानी हसने लगी तो वा लकड़ी एकदम सोना की सांखली देखकर चकित हुआ है | वा  अपनी जेठानी  से पूछने लगी कि काई रसोई बनाऊ जब वा जेठानी बोली कि थारे भाई बहुत दूर से और बहुत दिन में आयो है , घी में चावल बना ले | वा बहन तो भोली थी उसने घी में चावल डाल कर  चढ़ा दिया अब दो घंटा हो गया जब भी चावल सीजे नही जब वो भाई बोल्यो कि बहन घी में चावल नही बने तू तो दूध ला और खीर बनाकर सबके थाली परोस दे अब सब लोगो ने खाना खाया |
भाई सुबह जाने लग्यो , बहन अंधेरा में उठकर ही लाडू करने के लिए गेहू पीसने लगी और लड्डू बनाकर भाई के साथ रख दिए अब थोड़ी देर में बच्चा उठ गया और उजालो भी होने लग्यो तो बच्चा बोल्या माँ मामा को जो लड्डू दिए वो मेरे को भी दो jb वा लड्डू देखे तो उस में साँप का छोटा छोटा टुकड़ा था वैसे ही भाई के पीछे दोड़ी तो उसने भाई को दूर से ही आवाज लगाई भाई रूक जा , भाई रूक गया जब भाई बोल्यो कि म्हारे पीछे क्यों आई मे तो घर से खली हाथ आयो हूँ नही मे तो तेरी जान बचने आई हूँ मेने जो लड्डू दिए थे उसमे साप पिसा गया था उसने उसके हाथ से वह लड्डू लेकर फेक दिए और भाई को साथ लेकर घर आ गई और दो तिन दिन बाद  उसको जाने दिया |
हे ऋषी देवता उसके भाई को टूट्या ऐसा सबके टुटजो कहता सुनता, हुंकारा भरता |            

Friday, January 10, 2014

सत्तू तीज की कहानी








एक साहूकार थो | उसका सात लड़का था | भादो को महीनो आयो | अधियारो पखवाड़ों आयो सातुड़ी तीज को दिन आयो | उस दिन बहु ने खड़ा नीम की पूजा करी तो उसको आदमी मर गयो | दुसरा  |बेटा   की शादी करी और बहु ने खड़ा नीम पूज्यो उसको भी आदमी मर गयो |इस प्रकार छ: बेटा तो मर गया सासु बोली कि अब तो बेटा को ब्याह नही करा म्हारे तो सब |बेटा मर गया एक को तो रहने दो तो साहूकार बोल्यो कि अब अच्छी पढ़ी लिखी बहु लायगा उसकी भी शादी करी तीज को दिन आयो सासु बोली कि हम तो सब खड़ा नीम की पूजा करा तो बहु बोली कि मै तो कोई  खड़ा नीम नही पूजू म्हारे पीयर में तो भीत पर नीम कि डाल गाढ़ देवे और उसकी पूजा करे बहु ने दीवार पर नीम मांडकर पूजा करी तो उसका छ:जेठ जिन्दा हो गया |उसी दिन वा सब जिठानी को बुलाकर लाई और बोली की चलो पिंडा पासो तो वे बोली की कायका पिंडा पासा पासने वाला तो मर गया तो बहु बोली सब जिन्दा हो गया सब जनीआई और सबने पूजा करी पिंडा पास्या और अरग दियो |गाँव में ढिढोरो पिटवा दियो कि अब सब जनी दीवाल पर नीम की डाली गाड़ कर पूजा करे |                       

पथवारी की कहानी


एक डोकरी थी | वा पथवारी माता पथ  की  दाता डोकरी को रूप धरकर आई और रास्ता में बैठी थी उधर से दो बंजारा की  बालद आई  तो एक कि  बालद में खांड  खोपरो और दुसरा  की बालद में लुनतेल | तो पथवारी माता ने पूछ्यो कि थारी  में  कई है खांड  खोपरो  वाली ने लुनतेल बतायो और  लुनतेल वाली ने  खांड  खोपरो बतायो   अब दोनों की आपस में बालद  बदल गई अब वे लड़ते लड़ते राज में पहुची कि राजाजी हमारी दोनों की बालद  बदल गई अब कई होवेगा |
     तब राजा ने कीयो कि तुम्हारे कोई रास्ता में मिल्यो थो कई तो बोले  हा राजासाहेब एक डोकरी मिली थी तो वे बोले कि अब तुम उसी का  पास जाओ वाही तुम्हारी निकाल करेगी वे दोनों उस डोकरी का पास गई तो डोकरी बोली की तू झूठ बोली थी इसलिए जिसके जैसी इच्छा थी वैसो काम हो गयो अब इसमे म्हारो कई दोष है |तो अब माता कैसे कई हो वेगो तब पथवारी माता ने अपनी अपनी बालद जैसी थी वैसी करदी | अधूरी होय तो पूरी |करजे पूरी होय तो मान करजो |  

Thursday, January 9, 2014

शरद पूर्णिमा की कहानी


एक साहूकार के दो बेटी थी दोनों बहन पूर्णिमा को व्रत करती थी | बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती और छोटी बहन अधूरो व्रत करती |छोटी बहन का बच्चा होते ही मर जाता और बड़ी बहन का बच्चा जीवित रहता | ऐसा करते- करते बहुत दिन हो गया | एक दिन छोटी बहन बड़ा पंडित ने पूछयो कि मेरा बच्चा होते ही क्यों मर जावे सो म्हारे बताओ | पंडितजी बोल्या कि तू  पूर्णिमा को अधुरो व्रत करती थी उसको दोष से थारा बच्चा होते ही मर जाते है | अब तू  पूर्णिमा को पूरा  व्रत कर तो थारा बच्चा जीवित  रहेगा |उस छोटी बहन ने पूरो पूनम को व्रत कर्यो फिर भी उसके लड़को हुयो वो भी मर गया तो वा छोटी बहन उस लड़को के पटिया पर सुलाकर ऊपर से कपड़ो ढक दियो और बड़ी बहन के बुलाकर उसके उस पटिया पर बैठने को बोल्यो तो वा पटिया पर बैठते ही उसको लडको जीवित हो गयो और रोने लग्यो तब बड़ी बहन बोली कि तुम्हारे यह कलंक कैसे लग्यो अगर मै इसका ऊपर बैठ जाती तो यो लड़को मर जातो तब छोटी बहन बोली कि तेरा ही भाग से म्हारे यो लड़को जीवित रह गयो है |तो छोटी बहन बोली कि मै अधुरो  व्रत रखती तो थारो बच्चा जीवता और म्हारा मर जाता तो थारे  बुलाई थारो हाथ लगते ही म्हारे बच्चो जी गयो या सब थारी ही मेहरबानी है तो सारा गाँव में ढिढोरा पिटवा दियो कि सब कोई पूनम को बरत पूरो करे | कहता सुनता हुंकारा भरता |  

Saturday, January 4, 2014

मई चौथ व्रत कि कहानी ( तिल चतुर्थी )

                                                         
 एक साहूकार थो उसके कोई बच्चा नही था | एक दिन साहूकार कि ओरत पड़ोसन के पास गई और बोली कि आज म्हारे अग्नि दे दो तब वा पड़ोसन चौथ माता कि पूजा करती रेवे |तो उसके वा साहूकार कि बहु  बोली या पूजा  किस देवता कि है | तब वा पड़ोसन बोली कि चौथ माता कि |
साहूकार कि बहु बोली कि इसकी पूजा करने से कई होवे है | तब वा पड़ोसन बोली कि या चौथ माता कि पूजा है| और इसको करने से अन्न होय , धनं होय , बिछड़ाया ने मेला होय , निपुत्र से पुत्र होय |तब वह बोली कि म्हे भी चौथ माता से मान करु कि म्हारे भी बेटो होवे |तो में भी सवा मन को तिलकुटो बनाकर के चढ़ाऊगा |
अब नो महीना बाद उसके लड़को हुयो , पर वा  मई चौथ माता का दिन तिलकुटो चढ़ानो भूल गइ | अब इस प्रकार उसके सात  लड़का हुआ  सातो लड़का का ब्याह  कर दिया | वा मंदिर में उतारे और बेटो मर जावे , बहु रह जावे , सातवा लड़का कि बहु केवे ससुरजी अपना पास तो धन खूब है म्हे तो  एक टको सोना देकर रोज  नई जुनी बात सुनुगा तब वा हनुमानजी का मंदिर में गई और एक टको सोना को दियो और नई  जुनी बात सुनी |
रात के बारह बजे एक साधु हनुमानजी का मंदिर आयो और  उनका मोड़ , चुनरी सब लाकर धर दियो और गंगाजल छाट  दियो और सबके जीवित कर दिया ये वे ही हनुमान था |तब सब लड़का बोल्या कि माँ ने मई चौथ का दिन सवा मन तिलकुटा बोल्यो थो पर भूल गई | तब चौथ माता ने क्रोध कियो और सात ही के ले लियो | सात बहु विधवा हो गई उस छोटी के पूछ्यो कि काई बात है तू तो रोज सवा टको सोना को देकर नई जुनी बात पूछती थी | तब वा बोली कि मई चौथ का दिन सवा मन तिलकुटो  बनाकर चौथ माता के भोग लगानो    है
 हे चौथमाता उनके सुहाग दियो जैसे सबके दीजे कहते कहते  हुंकार भरता |अधूरी होय तो पूरी कर जो , पूरी होय तो मान कर जो |