tag:blogger.com,1999:blog-65955406528885319182024-02-09T23:02:20.060-08:00Fasting StoriesFeaturing some stories related to various fasts and other cultural traditions observed in India. Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.comBlogger80125tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-74995840061044247142021-09-09T05:29:00.000-07:002021-09-09T05:29:45.732-07:00इलखी बिलखी की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक गरीब ब्राह्मण की लड़की थी सब लड़कियां साथ में रहती थी चैत का महीना आया गणगौर का दिन आया और सबने एक साथ उपवास<br />
करना शुरू किया सब लड़कियां उस गरीब ब्राह्मण की लड़की को रोज अपने घर ले जाकर जीमाती थी अब चार-पांच दिन बाद उसके ऊपर जीमाने<br />
की बारी आई तब सब लड़कियों ने पूछा तो कई जिम आवेगी अब वह घर गई और मां से बोली कि सब लड़कियों के जीमानो<br />
क्योंकि इतना दिन में सबका यहां जिमी तब मां<br />
बोली कि अपन तो बहुत गरीब है लड़की बोली नहीं मां<br />
<br />
तो सब लड़कियां मारी हंसी उड़ाई इस प्रकार मां बेटी रात भर विचार करती करती सो गई<br />
तो रात को सपने में ईश्वर गोरा<br />
<br />
आए और<br />
मानवी सूत नहीं हूं जाग रही हूं ईश्वर<br />
<br />
श्<br />
देव बोला कि तू चिंता मत कर देंगे उसके बाद थारा घर का कोना देखिए जैसे जैसे दिन होगी और लड़की उठकर देखें तो घर का कोना हीरा मोती से भरा है और लड़की बोली कि मैं तो सबके जीने को बोलूं और मां तू एक हीरो ले जाकर बाजार से सामान लिया मां जल्दी से बाजार से सामान लाए और सब रसोई बनाई सब लड़कियां जीने आए तो दे दे क्योंकि इसका पास तो बहुत ठाट बाट है सब लड़कियां ने उससे पूछो कि कल तक तो थारा घर पर कोई भी नहीं तो रात भर में इतना धन कहां से आए हो तो वह बोली कि मारे तो ईश्वर गोरा दिल टूटिया ईश्वर गोरा उस लड़की के टूट के टूट जाए तो पूरी करो पूरी हो तो<br />
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Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-13157275975140325372020-03-14T02:02:00.000-07:002020-03-14T02:02:41.330-07:00दशामाता की कथा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="det_con_head" style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px; margin-bottom: 15px; overflow: hidden;">
<div class="fonts_size" style="background: rgb(255, 255, 255); border-radius: 4px; border: 1px solid rgb(221, 221, 221); box-sizing: border-box; float: right;">
<a href="https://draft.blogger.com/null" id="decfont" style="background-color: transparent; border-right: 1px solid rgb(221, 221, 221); box-sizing: border-box; color: #337ab7; display: block; float: left; height: 32px; width: 35px;"><img src="https://media.webdunia.com/include/_mod/site/theme-6/img/font_dec.png" style="border: 0px; box-sizing: border-box; float: left; height: 32px; vertical-align: middle;" /></a><a href="https://draft.blogger.com/null" id="incfont" style="background-color: transparent; border-right: none; box-sizing: border-box; color: #337ab7; display: block; float: left; height: 32px; width: 35px;"><img src="https://media.webdunia.com/include/_mod/site/theme-6/img/font_inc.png" style="border: 0px; box-sizing: border-box; float: left; height: 32px; vertical-align: middle;" /></a></div>
</div>
<div style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;">
<div style="box-sizing: border-box; text-align: center;">
<span style="box-sizing: border-box; font-weight: 700;"> </span></div>
<div style="box-sizing: border-box; float: left; text-align: center; width: 791px;">
<div style="box-sizing: border-box; color: white; display: inline-block; position: relative;">
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</div>
<div style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px; text-align: left;">
<span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"> प्राचीन समय में राजा नल और दमयंती रानी सुखपूर्वक राज्य करते थे। उनके दो पुत्र थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी। एक दिन की बात है कि उस दिन होली दसा थी। एक ब्राह्मणी राजमहल में आई और रानी से कहा- दशा का डोरा ले लो। दासी बोली आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता की पूजन और व्रत करती हैं तथा इस डोरे की पूजा करके गले में बांधती हैं जिससे अपने घर में सुख-समृद्धि आती है। अत: रानी ने ब्राह्मणी से डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजन करके गले में बांध दिया। </span> <span style="font-size: 20px;">कुछ दिनों के बाद राजा नल ने दमयंती के गले में डोरा बंधा हुआ देखा। राजा ने पूछा- इतने सोने के गहने पहनने के बाद भी आपने यह डोरा क्यों पहना रानी कुछ कहती, इसके पहले ही राजा ने डोरे को तोड़कर जमीन पर फेंक दिया। रानी ने उस डोरे को जमीन से उठा लिया और राजा से कहा- यह तो दशामाता का डोरा था, आपने उनका अपमान करके अच्छा नहीं किया। </span> <span style="font-size: 20px;">जब रात में राजा सो रहे थे, तब दशामाता स्वप्न में बुढ़िया के रूप में आई और राजा से कहा- हे राजा, तेरी अच्छी दशा जा रही है और बुरी दशा आ रही है। तूने मेरा अपमान कर अच्छा नहीं किया। ऐसा कहकर बुढ़िया अंतर्ध्यान हो गई। </span> <span style="font-size: 20px;">अब जैसे-तैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे कुछ ही दिनों में राजा के ठाठ-बाट, हाथी-घोड़े, लाव-लश्कर, धन-धान्य, सुख-शांति सब कुछ नष्ट होने लगे। अब तो भूखे मरने का समय तक आ गया। एक दिन राजा ने दमयंती से कहा- तुम अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने मा चली जाओ। रानी ने कहा- मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। जिस प्रकार आप रहेंगे, उसी प्रकार मैं भी आपके साथ रहूंगी। तब राजा ने कहा- अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में चलें। वहां जो भी काम मिल जाएगा, वही काम कर लेंगे। इस प्रकार नल-दमयंती अपने देश को छोड़कर चल दिए।</span> <span style="font-size: 20px;">चलते-चलते रास्ते में भील राजा का महल दिखाई दिया। वहां राजा ने अपने दोनों बच्चों को अमानत के तौर पर छोड़ दिया। आगे चले तो रास्ते में राजा के मित्र का गांव आया। राजा ने रानी से कहा- चलो, हमारे मित्र के घर चलें। मित्र के घर पहुंचने पर उनका खूब आदर-सत्कार हुआ और पकवान बनाकर भोजन कराया। मित्र ने अपने शयन कक्ष में सुलाया। उसी कमरे में मोर की आकृति की खूंटी पर मित्र की पत्नी का हीरों जड़ा कीमती हार टंगा था। मध्यरात्रि में रानी की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि वह बेजान खूंटी हार को निगल रही है। यह देखकर रानी ने तुरंत राजा को जगाकर दिखाया और दोनों ने विचार किया कि सुबह होने पर मित्र के पूछने पर क्या जवाब देंगे? अत: यहां से इसी समय चले जाना चाहिए। राजा-रानी दोनों रात्रि को ही वहां से चल दिए।</span> <span style="font-size: 20px;">सुबह होने पर मित्र की पत्नी ने खूंटी पर अपना हार देखा। हार वहां नहीं था। तब उसने अपने पति से कहा- तुम्हारे मित्र कैसे हैं, जो मेरा हार चुराकर रात में ही भाग गए हैं। मित्र ने अपनी पत्नी को समझाया कि मेरा मित्र ऐसा नहीं कर सकता, धीरज रखो, उसे चोर मत कहो। </span> <span style="font-size: 20px;">आगे चलने पर राजा नल की बहन का गांव आया। राजा ने बहन के घर खबर पहुंचाई कि तुम्हारे भाई-भौजाई आए हुए हैं। खबर देने वाले से बहन ने पूछा- उनके हाल-चाल कैसे हैं? वह बोला- दोनों अकेले हैं, पैदल ही आए हैं तथा वे दुखी हाल में हैं। इतनी बात सुनकर बहन थाली में कांदा-रोटी रखकर भैया-भाभी से मिलने आई। राजा ने तो अपने हिस्से का खा लिया, परंतु रानी ने जमीन में गाड़ दिया।</span> <span style="font-size: 20px;">चलते-चलते एक नदी मिली। राजा ने नदी में से मछलियां निकालकर रानी से कहा- तुम इन मछलियों को मैं गांव में से परोसा लेकर आता हूं। गांव का नगर सेठ सभी लोगों को भोजन करा रहा था। राजा गांव में गया और परोसा लेकर वहां से चला तो रास्ते में चील ने झपट्टा मारा तो सारा भोजन नीचे गिर गया। राजा ने सोचा कि रानी विचार करेगी कि राजा तो भोजन करके आ गया और मेरे लिए कुछ भी नहीं लाया। उधर रानी मछलियां लगीं तो दुर्भाग्य से सभी मछलियां जीवित होकर नदी में चली गईं। रानी उदास होकर सोचने लगी कि राजा पूछेंगे और सोचेंगे कि सारी मछलियां खुद खा गईं। जब राजा आए तो मन ही मन समझ गए और वहां से आगे चल दिए। </span> <span style="font-size: 20px;">चलते-चलते रानी के मायके का गांव आया। राजा ने कहा- तुम अपने मायके चली जाओ, वहां दासी का कोई भी काम कर लेना। मैं इसी गांव में कहीं नौकर हो जाऊंगा। इस प्रकार रानी महल में दासी का काम करने लगी और राजा तेली के घाने पर काम करने लगा। दोनों को काम करते बहुत दिन हो गए। जब होली दसा का दिन आया, तब सभी रानियों ने सिर धोकर स्नान किया। दासी ने भी स्नान किया। दासी ने रानियों का सिर गूंथा तो राजमाता ने कहा- मैं भी तेरा सिर गूंथ दूं। ऐसा कहकर राजमाता जब दासी का सिर गूंथ ही रही थी, तब उन्होंने दासी के सिर में पद्म देखा। यह देखकर राजमाता की आंखें भर आईं और उनकी आंखों से आंसू की बूंदें गिरीं। आंसू जब दासी की पीठ पर गिरे तो दासी ने पूछा- आप क्यों रो रही हैं? राजमाता ने कहा- तेरे जैसी मेरी भी बेटी है जिसके सिर में भी पद्म था, तेरे सिर में भी पद्म है। यह देखकर मुझे उसकी याद आ गई। तब दासी ने कहा- मैं ही आपकी बेटी हूं। दशा माता के कोप से मेरे बुरे दिन चल रहे है इसलिए यहां चली आई। माता ने कहा- बेटी, तूने यह बात हमसे क्यों छिपाई? दासी ने कहा- मां, मैं सब कुछ बता देती तो मेरे बुरे दिन नहीं कटते। आज मैं दशा माता का व्रत करूंगी तथा उनसे गलती की क्षमा- करूंगी।</span> <span style="font-size: 20px;">अब तो राजमाता ने बेटी से पूछा- हमारे जमाई राजा कहां हैं? बेटी बोली- वे इसी गांव में किसी तेली के घर काम कर रहे हैं। अब गांव में उनकी खोज कराई गई और उन्हें महल में लेकर आए। जमाई राजा को स्नान कराया, नए वस्त्र पहनाए और पकवान बनवाकर उन्हें भोजन कराया गया। </span><br /><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">अब दशामाता के आशीर्वाद से राजा नल और दमयंती के अच्छे दिन लौट आए। कुछ दिन वहीं बिताने के बाद अपने राज्य जाने को कहा। दमयंती के पिता ने खूब सारा धन, लाव-लश्कर, हाथी-घोड़े आदि देकर बेटी-जमाई को बिदा किया। </span><br /><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">रास्ते में वही जगह आई, जहां रानी में मछलियों को था और राजा के हाथ से चील के झपट्टा मारने से भोजन जमीन पर आ गिरा था। तब राजा ने कहा- तुमने सोचा होगा कि मैंने अकेले भोजन कर लिया होगा, परंतु चील ने झपट्टा मारकर गिरा दिया था। अब रानी ने कहा- आपने सोचा होगा कि मैंने मछलियां अकेले खा ली होंगी, परंतु वे तो जीवित होकर नदी में चली गई थीं।</span><br /><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">चलते-चलते अब राजा की बहन का गांव आया। राजा ने बहन के यहां खबर भेजी। खबर देने वाले से पूछा कि उनके हालचाल कैसे हैं? उसने बताया कि वे बहुत अच्छी दशा में हैं। उनके साथ हाथी-घोड़े लाव-लश्कर हैं। यह सुनकर राजा की बहन मोतियों की थाल सजाकर लाई। तभी दमयंती ने धरती माता से प्रार्थना की और कहा- मां आज मेरी अमानत मुझे वापस दे दो। यह कहकर उस जगह को खोदा, जहां कांदा-रोटी गाड़ दिया था। खोदने पर रोटी तो सोने की और कांदा चांदी का हो गया। ये दोनों चीजें बहन की थाली में डाल दी और आगे चलने की तैयारी करने लगे। </span> <span style="font-size: 20px;">वहां से चलकर राजा अपने मित्र के घर पहुंचे। मित्र ने उनका पहले के समान ही खूब आदर-सत्कार और सम्मान किया। रात विश्राम के लिए उन्हें उसी शयन कक्ष में सुलाया। मोरनी वाली खूंटी के हार निगल जाने वाली बात से नींद नहीं आई। आधी रात के समय वही मोरनी वाली खूंटी हार उगलने लगी तो राजा ने अपने मित्र को जगाया तथा रानी ने मित्र की पत्नी को जगाकर दिखाया। आपका हार तो इसने निगल लिया था। आपने सोचा होगा कि हार हमने चुराया है। </span> <span style="font-size: 20px;">दूसरे दिन प्रात:काल नित्य कर्म से निपटकर वहां से वे चल दिए। वे भील राजा के यहां पहुंचे और अपने पुत्रों को मांगा तो भील राजा ने देने से मना कर दिया। गांव के लोगों ने उन बच्चों को वापस दिलाया। नल-दमयंती अपने बच्चों को लेकर अपनी राजधानी के निकट पहुंचे, तो नगरवासियों ने लाव-लश्कर के साथ उन्हें आते हुए देखा। सभी ने बहुत प्रसन्न होकर उनका स्वागत किया तथा गाजे-बाजे के साथ उन्हें महल पहुंचाया। राजा का पहले जैसा ठाठ-बाट हो गया। राजा नल-दमयंती पर दशा माता ने पहले कोप किया, ऐसी किसी पर मत करना और बाद में जैसी कृपा करी, वैसी सब पर करना।</span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-56634292380653607312019-11-22T04:33:00.004-08:002019-11-22T04:33:39.411-08:00 गुरूवार के व्रत की कहानी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #222222; font-family: Verdana, Geneva, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 25px; margin-bottom: 26px; overflow-wrap: break-word;">
किसी गांव में एक साहूकार रहता था। उसका घर धन धान्य से भरपूर था। किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। उसकी पत्नी बहुत कंजूस थी। किसी प्रकार का दान आदि नहीं करती थी। किसी भिक्षार्थी को भिक्षा नहीं देती थी। अपने काम काज में व्यस्त रहती थी। एक बार एक साधु महात्मा गुरुवार के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना करने लगे। वह घर को लीप रही थी। बोली – महाराज अभी तो मैं काम में व्यस्त हूँ , आप बाद में आना। साधु महाराज खाली हाथ लौट गए।कुछ दिन बाद वही साधु महाराज फिर भिक्षा मांगने आये। उस दिन वह अपने लड़के को खाना खिला रही थी। बोली इस समय तो में व्यस्त हूँ , आप बाद में आना। साधु महाराज फिर खाली हाथ चले गए।तीसरी बार फिर आये तब भी व्यस्त होने होने के कारण भिक्षा देने में असमर्थ होने की बात कहने लगी तो साधु महाराज बोले – यदि तुम्हारे पास समय ही समय हो , कुछ काम ना हो तब क्या तुम मुझे भिक्षा दोगी ?साहूकारनी बोली – यदि ऐसा हो जाये तो आपकी बड़ी कृपा होगी महात्मा बोले -मैं तुम्हे उपाय बता देता हूँ। तुम बृहस्पतिवार के दिन देर से उठना, आंगन में पौंछा लगाना। सभी पुरुषों से हजामत आदि जरूर बनवा लेने को कह देना।स्त्रियों को सर धोने को और कपड़े धोने को कह देना। शाम को अँधेरा हो जाने के बाद ही दीपक जलाना। बृहस्पतिवार के दिन पीले कपड़े मत पहनना और कोई पीले रंग की चीज मत खाना। ऐसा कुछ समय करने से तुम्हारे पास समय ही समय होगा। तुम्हारी व्यस्तता समाप्त हो जाएगी। घर में कोई काम नहीं करना पड़ेगा।साहूकारनी ने वैसा ही किया। कुछ ही समय में साहूकार कंगाल हो गया। घर में खाने के लाले पड़ गए। साहूकारनी के पास अब कोई काम नहीं था , क्योंकि घर में कुछ था ही नहीं।कुछ समय बाद वही महात्मा फिर आये और भिक्षा मांगने लगे। साहूकारनी बोली महाराज घर में अन्न का एक दाना भी नहीं है। आपको क्या दूँ। महात्मा ने कहा – जब तुम्हारे पास सब कुछ था तब भी तुम व्यस्त होने के कारण कुछ नहीं देती थी। अब व्यस्त नहीं हो तब भी कुछ नहीं दे रही हो। आखिर तुम चाहती क्या हो सेठानी हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी – महाराज मुझे क्षमा करें। मुझसे भूल हुई। आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करुँगी। कृपया ऐसा उपाय बताओ की वापस मेरा घर धान्य से भरपूर हो जाये।महाराज बोले – जैसा पहले बताया था उसका उल्टा करना है। बृहस्पतिवार के दिन जल्दी उठना है , आंगन में पोछा नहीं लगाना है। केले के पेड़ की पूजा करनी है। पुरुषों को हजामत आदि नहीं बनवानी है। औरतें सिर ना धोये और कपड़े भी न धोये। भिक्षा दान आदि जरूर देना।शाम को अँधेरा होने से पहले दीपक जलाना। पीले कपड़े पहनना। पीली चीज खाना। भगवान बृहस्पति की कृपा से सभी मनोकामना पूरी होंगी। सेठानी ने वैसा ही किया। कुछ समय बाद उसका घर वापस धन धान्य से भरपूर हो गया।</div>
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Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-38383594242116809322019-11-14T00:06:00.000-08:002019-11-14T00:06:49.900-08:00कार्तिक पूर्णिमा की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "notosansdevanagari" , sans-serif; font-size: 16px;">दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।</span><br />
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<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "notosansdevanagari" , sans-serif; font-size: 16px;">तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।</span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: "notosansdevanagari" , sans-serif; font-size: 16px;">ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।</span><br />
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: NotoSansDevanagari, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 24px; list-style: none; margin-bottom: 5px;">
अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।<br />
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चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।</div>
<div style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: NotoSansDevanagari, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 24px; list-style: none; margin-bottom: 5px;">
दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।</div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-59025735971209147932019-11-08T02:32:00.001-08:002019-11-08T02:32:49.047-08:00देवउठनी एकादशी व्रत की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था।</span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।</span><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;"></span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">उस व्यक्ति ने उस समय 'हाँ' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊँगा। मुझे अन्न दे दो।</span><span style="background-color: #f6f6f6; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुँचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है।</span><br />
<span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।</span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुँचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।</span><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;"></span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।</span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।</span><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;"></span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूँगा।</span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए।</span><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;"></span><br style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 18px;" /><span style="background-color: #f6f6f6; box-sizing: border-box; font-family: "Noto Sans", sans-serif; font-size: 11pt;">यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।</span></div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-70942061943538767822019-11-07T00:11:00.001-08:002019-11-07T00:14:37.686-08:00तुलसी जी की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.<br />
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.<br />
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा<br />
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर<br />
आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प<br />
नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।<br />
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।<br />
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।<br />
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे<br />
ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?<br />
उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।<br />
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे<br />
सती हो गयी थी.<br />
उनकी राख से एक पौधा निकला तब<br />
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से<br />
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में<br />
बिना तुलसी जी के भोग<br />
स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में<br />
किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-17276401043241278752019-10-10T06:20:00.001-07:002019-11-07T00:13:06.571-08:00लक्ष्मी जी की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
एक साहुकार था उसकी एक लडकी थी।वह रोज पीपल मे पानी डालने जाती थी पीपल के वृक्ष मे से लक्ष्मी जी नीकलती और बोलती आम्बा केरी बिजली,सावन केरी तीज, गुलाब केरो रंग ऐसा लक्ष्मी को रूप फुलती निकलती।साहुकार की बेटी से कहती की तु मेरी सहेली बन जा तो उसने कहा मे पिताजी से पुछ कर बनुगी दुसरे दिन उसने पिताजी को सारी बातें बताई तो पिताजी ने कहा वह तो लक्ष्मी जी हैं वह कहे तो बन जा अब वह लक्ष्मी जी की सहेली बन गई एक दिन लक्ष्मी जी ने सहेली को जीमने के लिए बुलाया सहेली ने पिताजी को बताया और चली गई लक्ष्मी जी ने सोना का चोक बिछाया और छत्तीस प्रकार का पकवान बनाया और सहेली को खिलाया जब वह जीम कर जाने लगी तो लक्ष्मी जी ने साडी का पल्ला पकड लीया और बोली कि मे भी तेरे घर जीमने आऊँगी वा बोली कि आप सबेरे आना अब घर जा कर वा उदास बैठ गई पिताजी बोले बेटी उदास क्यो हैं तो उसने कहाँँ लक्ष्मी जी सबेरे जीमने आयेगी लक्ष्मी जी ने तो मेरी बहुत मेहमान नवाजी करी थी और मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैपिताजी ने कहा इतनी फिकर क्यो करे हैं जो अपने घर में है वही रसोई जीमाजे तू गोबर से लीपकर चोक माँडकर दिया जलाकर लक्ष्मी जी को नाम लेकर बैठ गई अब एक चील कही से नौ लखा हार उठाकर लाई और साहुकार के घर में डाल दिया अब साहुकार की बेटी ने उसमे से एक मोती निकाल कर बेच दिया और उससे सोना की चोकी ,छत्तीस तरह का पकवान ले आई अब आगे आगे गणेश जी और उसके पिछे लक्ष्मी जी आये लडकी ने पाटा बिछाया और बोली सहेली इस पर बैठ जा वह बैठ गई उसने लक्ष्मी जी को प्रेम से भोजन कराया अब लक्ष्मी जी जाने लगी उसने कहा मै बहार होकर आऊ जब तक यही बैठ जे अब वा लडकी गई तो वापस ही नही आई लक्ष्मी जी वहा बैठी रह गई और उसके घर में बहुत धन हो गया हे लक्ष्मी माता उस साहुकार केए पाटा पर बैठी वेसी सबके पाटा पर बैठ जे </div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
<div style="height: 0px; text-align: left;">
x</div>
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Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-40042478755810567482019-10-03T03:09:00.000-07:002019-10-03T03:09:22.612-07:00बुद्ध अष्टमी की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक ब्राह्मण के बुद्ध नाम का बेटा और बुद्धनी नाम की बेटी थी। वह सब लोगो का गेहूँ पीसती और उसमे से पाव भर आटा नीकाल लेती ।एक दिन बुद्धनी ने अपनी माँ से बोला ये काम अच्छा नही है आप पावभर आटा चोर कर रख ले ती हो अब एक बार बुद्धनी की माँ पीयर गई और बुद्धनी को बोल कर गई की जो भी गेहूँ पीसाने आये उसमे से पावभर आटा नीकाल लेना पर बुद्धनी ऐसा नही करा उसने पूरा आटा दे देती थी अब उसकी मां पीयर से आई तो सब लोग उसे चोटी बोलने लगे अब उससे कोई भी गेहूँ नही पीसवाता ,अब उसने बुद्धनी को बहुत मारा और घर से बाहर निकाल दिया और लडका के सपना दिया की तेरी बहन की कुत्ता से शादी कर दे लडका ने बुद्धनी की कुत्ता से शादी कर दी अब सब लोग हँसने लगे की चोरनी की लडकी की शादी कुत्ता से हो रही हैं तब भगवान ने कुत्ता का रूप छोडकर असली रूप में आ गये तब सब लोगो को आशचर्य हुआ अब भगवान एक कोठरी की चाबी दे दी और दुसरी कोठरी की चाबी नही दी अब लडकी ने जीद करके चाबी ले ली और खोल कर देखा तो बुद्धनी की माँ कीडे के कुण्ड मे पडी थी उसने भगवान से कहा मेरी माँ को मुक्ति दे दो यह तो अपने करम को भोग रही हैं तब भगवान ने उसको मुक्ति दी और बैकुन्ठ मे भेज दिया और सारे गावँ मे ढिडोरा पीट दिया कि कोई भी काम करो पर उसमे चोरी मत करो नही तो बुद्धनी की माँ जैसा हाल हो जाये गा।हे भगवान बुद्धनी की माँ की मुक्ति करी वेसी सबकी करजो।</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-76897137098842100852019-10-01T02:36:00.000-07:002019-10-01T22:49:43.580-07:00बुद्ध अष्टमी के व्रत की विधी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शुक्ल पक्ष में बुधवार की अष्टमी के दिन यह व्रत करते हैं आठ अष्टमी होने के बाद इसका उघापन करते हैं सोने की मुर्ति बनवाकर उसकी पूजा करनी चाहिए आठ दिन उपवास करके आठ फल चढाना इसके बाद आठ आठ तरह की सब चीज देना चाहिए।जैसे गोमुखी माला छत्री चप्पल कपडा आदी।</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-42616487473445733742019-09-24T02:54:00.001-07:002019-09-24T02:54:18.335-07:00गाज माता की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भादव के महीने में अनंत चौदस के दिन आयो ।एक राजा और रानी थी,एक भील भीलनी थी।एक धोबन आई और रानी व भीलनी दोनो के कपडे लेकर चली गई दुसरा दिन वा कपडा लेकर आई तो दोनो कि साडी आपस में बदल गई जब भीलनी ने रानी की साडी़ पहनी तो रानी ने धोबन से पुछो की मेरी जैसी साड़ी इसके पास कहा से आई और रानी भीलनी के पास गई और पुछयो तब वा बोली म्हारै तो गाज माता टूटी।तब रानी बोली ऐसो करने से काई होवे वा बोली अन्न धन्न लक्ष्मी आवे हैंं<br />
राजा रानी दोनो बरत करने लग्या।भीलनी बोली बरत करने के बाद यो बरत टूटे नही।थोडा दिन बाद रानी के लड़को हुयो गांव में गाजा बाजा हुआ,धूम धाम से उत्सव मनाया पीछे गाज माता को दिन आयो वा पडोसन से पुछने गई कि मे तो छोटा बालक की माँ हूँ रोट खाऊ तो बालक को पेट दुखे।जब वा पडो़सन बोली की कारयो कसार और मोगरयो मगदं करके खा लीजे। गाज माता के बहुत क्रोध आयो,रात का बारह बजे गाजती घोरती आई और रानी को लडको पालना में से उठाकर ले गई जब रानी ने लडका के पालना में नही दिख्यो तो वा रोने लगी सब बालक के ढूढने लग्या बालक नही मील्यो,रानी बोली भीलनी ने बताओ तब भीलनी आई और उसके पुछयो ,जब भीलनी ने सच बात मालुम पडी तब वा बोली रानी ने बरत भंग करयो हैं अब वही भादव मास आयो अनंत चतुर्दशी को दिन आयो रानी ने कच्चा सूत का डोरा मंगाया और चौदह डोरा गिनकर अपना गला में बाँध लिया दूसरा दिन बडा ठाट बाट से गाज माता की पूजा करी,खीर रोट बनाया और राजा रानी जीम्या हैं अब आधी रात के गाज माता राजा का लडका ने पालना मे लाकर सुला दियो हैं।हे गाज माता उस रानी के टूटी,ऐसे सबके टूटजो कहता ,सुनता हुकारा भरता।अधुरी होय तो पूरी करजो पूरी होय तो मान करजो।</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-6578733789628519572019-09-21T04:08:00.001-07:002019-09-21T04:09:15.386-07:00पीपल की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक ननंद भाभी थी। वे रोज पीपल सीचने जाती और पीपल से वा भाभी कहती हे पीपल माता म्हारे एक लड़को दीजे तो वा ननंद कहती कि जो म्हारी भाभी के देवे वो म्हारे दीजे तो वा भाभी के नो महीना बाद लड़को हुयो और ननंद की हथेली मे छालो पडकर लडको हुयो।सब कहने लग्या कि क्वारी के लडको हुयो। तब वा बोली कि मे तो म्हारी भाभी के साथ पीपल सीचनें जाती तो कहती कि म्हारी भाभी के देवो म्हारे दीजो भाभी के नो महीना बाद लडको हुयो और म्हारी हथेली में छालो पडकर लड़को हुयोअब उसको ब्याह कर दियो वा ससुराल चली गई दोनो लडका भाभी रखतीतो ननंद का लडका के झुला मे सुलातीबोलती किबिना बाप का कानजथे दोड कँहा से आया तब उसका आदमी बोल्यो कि मे तो बैठयो हूँ तू ऐसी बात केसे बोले तब वा बोली की ये बाई जी का कवंर हैं इनको बोलूतब उसके समझ पडी हैं पीपल माता उसकी हथेली में छालो होकर लडको हुयो तो वेसा काम करके पूरा करजे और भाभी के लडको हुयो वैसा सबके होजे कहता सुनता हुकारा भरता</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-7960782095726497092019-06-15T05:32:00.001-07:002019-06-15T05:32:10.644-07:00नाग पंचमी की कहानी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक साहूकार थो ।उसके सात लड़का और सात बहुआ थी उनमे से छे के तो पियर थो और सबसे छोटी बहु का पियर नहीं थो अब सावन को महीनो आयो और नाग पंचमी को दिन आयो अब सब बहुो तो पियर गई पर छोटी बहु पियर नहीं गई वा घर पर उदास बैठी थी, वा मन में सोच रही थी म्हारे पियर नहीं है | हे नाग देवता म्हारे भी पियर दीजो, इतना कहते ही नाग देवता ने दया करी, नाग ब्राह्मण को रूप धरकर उसके घर आये और उसके ससुरजी से बोल्ये की में आपकी छोटी बहु को भाई हु इतना दिन तो में विदेश में रहतो थो कोई एक दूसरा के नहीं पहचाने में वह आयो तो तब मालूम पड्यो की म्हारी बहना यहाँ रहवे में उनके लेने आयो हु तब उसका ससुरजी ने छोटी बहु के उसके साथ भेज दी । अब बहन मन में विचार करे की भाई म्हारे कहाँ ले जावे गा अब नाग देवता को घर को रास्तो आयो और उसने एक दम नाग को रूप धारण कर लियो । अब व बहन डरने लगी ,तब नाग देवता बोल्या की तू डर मत तूने म्हारे याद करयो , तभी में थारे लेने आयो हु म्हारी पूछ पकड़ कर म्हारे पीछे पीछे आजा औ<br />
नाग देवता घर गया और ओरत से बोल्या की म्हारी बहन है , इसके अच्छी तरह से रखजो , दुःख मत दीजो ।अब बहन वाह पर रहने लगी अब एक दिन नागिन को जापो हुआ और वा बहन दिवलो लेकर उसके पास देखने गई तो डर के मारे दिवलो हाथ से गिर पड्यो तो नागिन के बच्चा की पूछ जल गई तो नागिन को बहुत गुस्सा आयो , तो व अपने आदमी से बोली की आपकी बहन के सुसराल भेज दो तो नाग देवता ने उसको बहुत सो धन देकर अच्छी तरह से बिदा करी जब से उसका पियर हो गया और उसको लड़का मस्ती बहुत करते थो तोड़ फोड़ भी बहुत करतो थो तब जेठानी देरानी ताना मारती की थारा नाना मामा तो बहुत लखपति है सोना रूपा को ही सामान दे तो उसका भाई भतीजा सुनता और माँ से बोलता तो माँ सभी सामान भेज देती और वे ऊपर से सभी सामान पटक देता माँ बोलती बेटा मत जाया करो बस वा तो नाग पंचमी का दिन दीवाल पर नाग देवता का चित्र मांडकर पूजा करती भोग लगती और प्रार्थना करती है । <br /> नाग देवता म्हारेजैसा भी खांडा बांडा भाई भतीजा होवे उनके राजी ख़ुशी रख जो । है नाग देवता उसके पियर दियो ऐसे सबको दीजो <br /> <br /><br /><br /><br /><br /> <br /> </div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-82350632630440560132019-06-15T04:10:00.001-07:002019-06-15T04:10:14.962-07:00नाग पंचमी की विधि<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यह लगते सावन पंचमी का दिन है । इस दिन सब नाग की पूजा करे ,नाग को दूध पिलावे , दीवाल पर नाग मांडे और पूजा करे </div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-56854809788040246632019-02-16T05:26:00.000-08:002019-05-23T05:58:42.113-07:00 प्रदोष व्रत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; font-family: Roboto, sans-serif, Arial; font-size: 16px; line-height: 24px; margin-top: 8px; padding: 0px; text-align: justify;">
एक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है। एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ?</div>
<div style="background-color: white; font-family: Roboto, sans-serif, Arial; font-size: 16px; line-height: 24px; margin-top: 8px; padding: 0px; text-align: justify;">
दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था। उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया। पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया। बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया</div>
<div style="background-color: white; font-family: Roboto, sans-serif, Arial; font-size: 16px; line-height: 24px; margin-top: 8px; padding: 0px; text-align: justify;">
कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देव योग से देव मंदिर गई, जहाँ उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई।ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी।</div>
<div style="background-color: white; font-family: Roboto, sans-serif, Arial; font-size: 16px; line-height: 24px; margin-top: 8px; padding: 0px; text-align: justify;">
ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है।</div>
<div style="background-color: white; font-family: Roboto, sans-serif, Arial; font-size: 16px; line-height: 24px; margin-top: 8px; padding: 0px; text-align: justify;">
कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया। कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।</div>
<div style="background-color: white; font-family: Roboto, sans-serif, Arial; font-size: 16px; line-height: 24px; margin-top: 8px; padding: 0px; text-align: justify;">
राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी। उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया। राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया।</div>
<div style="background-color: white; font-family: Roboto, sans-serif, Arial; font-size: 16px; line-height: 24px; margin-top: 8px; padding: 0px; text-align: justify;">
<br />
<ul>
<li>कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था। उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।</li>
</ul>
</div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-12328680512558585522017-05-12T09:00:00.001-07:002017-05-12T09:00:54.617-07:00 होई माता की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 11pt; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">एक साहूकार था उसके सात लडके, बहु और एक लडकी थी सब खदान मे मिट्टी लेने गये खदान मे मिट्टी खोदते वक्त लडकी के हाथ से स्याऊ माता का बच्चा मर गया तो माता बोली कि मे तेरी कोख बाँध दूगी अब वह लडकी सब भाभी से कहने लगी मेरे बदले आप मेसे कोई एक कोख बँध वा लो सबने मना कर दिया पर छोटी बहु ने हाँ कर दी और कोख बँध वाली अब उसके एक भी बच्चा जीवित नहीं रहता अब वह गाय की सेवा करने लगी एक दिन गऊ माता बोली तेरी क्या इच्छा है मांग ले बहु बोली वचन देओ गऊ माता ने वचन दे दिया वह बोली स्याऊ माता तेरी सहेली है उसने मेरी कोख बाँध दी है उसे छुडाओ </span></div>
<span id="docs-internal-guid-57722f62-fd61-6dc1-5892-d6ebf68a9c38"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 11pt; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">अब दोनो घर से निकले रास्ते मे एक साँप बच्चे को डस रहा था तो बहु ने तलवार से मार दिया अब दोनो स्याऊ माता के पास गये और बाते करने लगे बहु ने स्याऊ माता कि बहुत सेवा करी अब दोनो जने जाने लगे तो बहु से स्याऊ माता बोली की तेरी भी बहु आयेगी तो उसने कहा मेरे तो एक भी बेटा जिवित नही है बहु कहा से आयेगी मेरी कोख तो तेरे पास है स्याऊ माता बोली घर जा थारी बहु बेटा और लडकी सब जिवित है अब उसने घर आकर देखा सब खडे थे सब ने मिलकर होई अष्टमी का उद्यापान करा हे होई माता उस बहु को टुटी ऐसे सब को टुटजे कहता सुनता हुकारा भरता अधुरी होय तो पूरी करजे पुरी होय तो मान करजे</span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-46213336594626992672017-05-12T08:56:00.001-07:002017-05-12T08:56:29.800-07:00होई अष्टमी की विधी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 11pt; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">यह व्रत दीवाली से पहले जो अष्टमी आती है उस दिन करते है इसमे होई माता की पूजा कर शाम को तारो को अरख देकर खाना खाते है</span></div>
<span id="docs-internal-guid-57722f62-fd5f-fa77-328d-08460a4015ef"><br /></span></div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-37025384191903103322017-04-24T05:38:00.000-07:002017-04-24T05:38:03.075-07:00हलछट की कहानी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span id="docs-internal-guid-a7fb6ce1-9fce-38a2-6a69-88c1a0b8363f"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 11pt; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">एक ग्वालीन के प्रसव का समय था उसका दही बेचने के लीये रखा हुआ था वह सोचने लगी यदी बालक ने जन्म ले लिया तो दही नही बिक पायेगा अतः वह दही की मटकी सिर पर रख कर चल दी चलते चलते जब एक खेत के पास पहुंची तो उसकी प्रसव पीड़ा बढ गई उसने वहा लडके को जन्म दिया तथा उसने लडके को कपडे में लपेट कर वही रख दिया और मटकी उठा कर आगे बढ़ गई उस दिन हल छठ थी पर उसका दही गाय और भेस के दूध का था उसने बेचते समय यही बताया की यह गाय के दूध का है तो उसका सारा दही बिक गया |
जहाँ ग्वालिन ने बच्चे को रखा था वहा पर किसान हल जोत रहा था उसके बैल खेत की मेढ़ पर चढ़ गए और हल की नोक बच्चे के पेट में घुस गई बच्चा मर गया किसान को बहुत दुःख हुआ उसने पत्तो से उसे ढ़क दिया जब ग्वालिन ने देखा तो वह सोचने लगी की यह मेरे पाप का फल है मेने आज हल छठ के दिन व्रत करने वालो का धर्म भ्र्ष्ट करा है उसी का दंड है मुझे लौट कर अपने पाप का प्राश्चित करना चाहिए वह लौट कर उसी जगह गई जहाँ दही बेचा था और जोर जोर से आवाज लगाने लगी की मेने आप लोगो का धर्म नष्ट करा है मेने झूट बोला था यह सुनकर सभी लोगो ने उसे धर्म रक्षा के विचार से उसे आशीष दिया जब वह वापस उसी जगह पहुँची तो उसका बच्चा पत्तो की छाया में खेल रहा था उसी दिन से ग्वालिन ने पाप छिपाने के कभी झूट न बोलने का प्रण किया इसलिए हल छठ के दिन हल से जुटा हुआ अनाज नहीं खाते है </span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-50098676126777808152017-04-21T05:01:00.000-07:002017-04-21T05:01:03.169-07:00बछ बारस की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 11pt; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">भादो के महीना मे ( कृष्ण पक्ष ) बछ बारस का दिन आया उस दिन सास गाय चराने जंगल में गई और बहू से बोल गई की तु गेहूँ मूंग को खिचडो बना लिजो अब बहू को समझ में नही आया और उसने गाय के दो बछडो के नाम भी गूगला और मूगला था वह समझी इनको ही बनाना है तो उसने उनको ही खाण्ड कूटकर </span><span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">बना लीया । अब शाम को सास घर पर आई तो उसने पूछा बहू गूगलो मूगलो बना लीयो हाँ बना लीयो बहू बोली सास ने हाण्डी घोल कर देखी तो घबरा गई और बोली बहू तुने ये </span>क्या<span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;"> किया उसने हाण्डी उठा कर गडडो खोद कर गाढ दीयो और भगवान से प्रार्थना करने लगी की इन बछडो को जिन्दा कर दो अब गाये ने बछडो को बुलाने लगी झट वो बछडे गडडे मे से दौडकर गाय के पास आ गये और दूध पीने लगे इस लिये बछ बारस के दिन गेहूँ और मूगँ नही खाते है और गाय बछडे की पूजा करते हैं</span><br />
<div>
<span style="font-family: Arial; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div>
</div>
<span id="docs-internal-guid-a7fb6ce1-80c1-9395-aa3c-4d931121e595"><br /></span></div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-81705761489431250582017-03-21T09:09:00.002-07:002017-03-21T09:09:41.128-07:00बछ बारस व्रत विधी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span id="docs-internal-guid-34c7fd17-f1a1-694c-7ebe-e22803fd6b57"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 11pt; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">इस दिन गाय की पूजा करनी चाहिये और ज्वार बाजरा मक्का की रोटी बनानी चाहिये । चना को कलपनो निकालनो चाहिये</span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-82640470187368278472017-03-21T09:05:00.000-07:002017-03-21T09:05:41.568-07:00उब छठ की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span id="docs-internal-guid-d53b5345-e94d-c3f9-8d78-79e15473b94b"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14.666666666666666px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">एक नगरी में एक ब्राह्मण रहता था एक दिन ब्राह्मण की औरत ने उ| करने का सोचा उस नगरी में सात ऋषि आये थे तो उनको भोजन को निमन्त्रण देकर आ गई और थोडी देर बाद वो पिरियड से हो गई अब वा पडोसन के पास गई और बोली की मेने तो ऋषिजी को जीमने को बोल दिया हैं अब पडोसन बोली की तुतो सात पटिया पर बैठ कर सात बार नहाले और रसोई बनालेउस ब्राह्मण की औरत ने ऐसो ही कियो उसने सब रसोई बनाई और ऋषिजी जीमने आये वे बारह वर्ष मे पलक खोलते थे उस ब्राह्मण की औरत से बोले हम जीमे हम बारह वर्ष मे आँख खोलते हैं कोई आपत्ति नही है, नही है ब्राह्मणी बोली महाराज आप तो पलक खोलो और प्रेम से जीमो झटपट ऋषिजी ने पलक खोली तो भोजन में कीडे थे ऋषिजी ने भोजन में कीडे देख कर दोनो को श्राप दे दिया और बोल्यो कि जाओ अगले जन्म में बैल और कुत्ती बनोगे अब दोनो मर गया और अगले जन्म मे बैल और कुत्ती बने अब दोनो ही बेटे के साथ रहते थे बेटा तो बहुत धर्मात्मा था दान धरम पुण्य ब्राहाम्ण भोजन बहुत करता था अब एक दिन उस लडके ने अपने माँ बाप का श्राद्ध निकाला और ब्राह्मण- ब्रा</span><span style="font-family: "arial"; font-size: 14.6667px; white-space: pre-wrap;">ह्म</span><span style="font-family: "arial"; font-size: 14.6667px; white-space: pre-wrap;">णी</span><span style="font-family: "arial"; font-size: 14.6667px; white-space: pre-wrap;"> </span><br />
<span style="background-color: transparent; font-family: "arial"; font-size: 14.6667px; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">को जीमने को कहाअच्छी तरह से खाना बनाया ओर वह अंदर चली गई इतने में एक सांप की काचली खीर में गिर गई उस कुतिया ने देख ली और उसने बहु को आते देख लिया खीर के बर्तन में मुँह डाल दिया </span>बहु को बहुत गुस्सा आया उसने लकड़ी से खूब मारा और सारी खीर नाली में फेक दी निचे पेंदे में सांप की काचली दिखी तो बहु बहुत पछताई और मन में सोचा की मेने उस कुतिया को जबरन मारा उसने वापस खीर बनाई और ब्राह्मण- ब्राह्मणी को बड़े प्रेम से जिमाया और उस कुतिया को खाना भी नही दिया उधर बैल के मालिक ने भी उसको कुछ खाने को नही दिया <span style="font-family: "arial"; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;">अब रात को दोनो जने दरवाजे के बहार बैठ कर आपस मै बात करी कि आज तो अपना श्राद्ध करा और अपने को कुछ भी नही दिया खाने को ये बात बेटा ने सुनी तो आशचर्य हुआ और मन में सोचा कि आज तो अपने विधी विधान से सब करा फिर भी माँ बाप की मु्क्ति नही हुई वह ऋषि के पास गया और बोला इनकी मुक्ति कैसे होगी ऋषि ने कहा महाराज ऋषि पंचमी के दिन होगी</span><br />
<div>
<span style="font-family: "arial"; font-size: 11pt; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div>
<div>
</div>
<span style="background-color: transparent; font-family: "arial"; font-size: 14.6667px; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> </span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-21944961865501683792017-01-29T00:17:00.002-08:002017-01-29T00:17:18.381-08:00उब छठ व्रत की विधी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span id="docs-internal-guid-d53b5345-e94c-768d-4ae0-fa927f5626ff"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 14.666666666666666px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">इसमे उपवास रख और शाम को सिर धोकर मंदिर मे जाकर सूरज डुबने से लेकर चाँद निकलने तक खडे रहना चन्द्रमा को अरग देकर भोजन करना चाहिए </span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-69470982509265826292016-08-27T19:49:00.001-07:002017-06-17T04:10:14.545-07:00गणेश जी की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOvmwsEPsrgXtuk4MHKJ4fhpYtAoYTd3CX-fA9D2j5Ybb5wqXoBsiVIrb8MQfzgVvEcYl8Qx1JuYXE8RzNGCNQ2aiMq50yEAUwBFfLcLcgjx9xsJPppbLRLEem6wkt2jEUYszDtkq6LfD5/s1600/IMG_20160906_100632242.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="899" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOvmwsEPsrgXtuk4MHKJ4fhpYtAoYTd3CX-fA9D2j5Ybb5wqXoBsiVIrb8MQfzgVvEcYl8Qx1JuYXE8RzNGCNQ2aiMq50yEAUwBFfLcLcgjx9xsJPppbLRLEem6wkt2jEUYszDtkq6LfD5/s320/IMG_20160906_100632242.jpg" width="179" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14.666666666666666px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">एक ब्राह्मण था उसकी दो लडकियाँ थी । एक का नाम सीता दूसरी का गीता दोनो गाँव में ही थी सीता को एक लडका था और गीता को एक लडकी थी वह लडकी रोज रोती तो सीता ने गीता से कहा तू गणेश जी की इतनी पूजा करे हैं फिर भी थारी छोरी रोज परेशान करे हैं और सीता बडी भक्ति भाव से गणेश जी की पूजा करती एक दिन गीता ने सीता का लडका के छिपा दियो और चुपचाप घर में जाकर बैठ गई ।</span></div>
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14.666666666666666px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> इधर सीता ने अपना लडका के खूब ढूढा और रोती रोती गणेश जी के पास गई और बोली की महाराज मेरा लडका खो गया आप लाकर के देवो मैं आपकी बहुत सेवा पूजा बड़ा ध्यान से करती थी अब गणेश जी बोले कि अगर इसका लड़का के अपन नही ढूंढांगा तो दुनिया में अपने को कौन मानेगो । गणेश जी ने झटपट से सीता के लड़के को ढूंढ लिया और लाकर सामने खडा कर दिया।</span></div>
<span id="docs-internal-guid-35e5d87a-cf07-0c0e-a5e7-ee1e19d80eab"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: "arial"; font-size: 14.666666666666666px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;"> अब गीता सीता का पाँव पडने लगी और माफी मांगी हैं गणेशजी महाराज उसके टूटया जैसा सबके टूटजो कहता सुनता हुकारा भरता</span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-54052916919774410842016-06-20T19:10:00.000-07:002019-05-23T06:03:50.672-07:00 सत्यनारायण भगवान व्रत कथा :- <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="color: #cc0000;"><span style="font-size: 14.666666666666666px;">पुजन सामिग्री</span></span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">कॆलॆ कॆ पत्ते </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">, </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">पांच फल</span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">, कलश, पंचरत्न, चावल , कपूर , धुप , अगरबत्ती , पुष्पॊ की माला, श्रीफल , पान का पत्ता, नैवैध्द, भगवान की प्रतिमा, वस्त्र, तुलसी कॆ पत्तॆ, पचामृत ( दुध , घी , शहद , दही, चिनी ) </span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="color: #cc0000;"><span style="font-size: 14.666666666666666px;">पुजा विधी</span></span><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span style="color: #cc0000; font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">श्री सत्यनारायण व्रत और पूजन पूर्णिमा या संक्रांति के दिन स्नान कर माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके सत्यनारायण भगवान का पूजन करें। इसके पश्चात् सत्यनारायण व्रत कथा का श्रवण करें।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="color: #cc0000;">सत्यनारायण भगवान व्रत कथा</span><span style="color: red;"> </span>:- (1)</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">एक समय नैमिषारण्य तीर्थ मॆं शौनक आदी अट्र्ठासी हजार ऋषियॊं नॆ श्री सुतजी सॆ पुछा हॆ प्रभु | इस घॊर कलियुग मॆं वॆद विद्या रहित मनुष्यॊं कॊ प्रभु भक्ती किस प्रकार मिलॆगी तथा उनका उद्वार कैसॆ हॊगा ? इसलियॆ मुनिश्रॆष्ठॊ ! कॊइ व्रत बताइए जिससॆ थॊड़ॆ समय मॆं पुण्य प्राप्त हॊवॆ तथा मनवांछीत फल मिलॆ , उस कथा कॊ सुननॆ की हमारी हार्दिक इच्छा है | श्री सुत जी बॊलॆ _ हॆ वैष्णवॊं मॆं पुज्य ! आप सबनॆ सर्व प्राणीयॊं कॆ हित की बात पूछी है | अब मैं उस श्रॆष्ठ व्रत कॊ आप लॊगॊ कॊ सुनाता हुँ , जिस व्रत कॊ नारद जी नॆ श्रीनारायण सॆ पुछा था और श्रीनारायण नॆ मुनिश्रॆष्ठ सॆ कहा था , सॊ ध्यान सॆ सुनॆं _<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">एक समय यॊगीराज नारद जी दुसरॊं कॆ हित की इच्छा सॆ अनॆक लॊंकॊं मॆं घुमतॆ हुए मृत्युलॊक मॆं आ पहुंचॆ | यहाँ अनॆक यॊनियॊं मॆं जन्मॆ हुए प्राय: सभी मनुष्यॊं कॊ अपनॆ कर्मॊ कॆ द्वारा अनॆक दुखो सॆ पीड़ीत दॆखकर सॊचा, किस व्रत के करनॆ सॆ इनकॆ दुखॊं का नाश हॊ सकॆगा | एसा मन मॆ सॊचकर मुनिश्रॆष्ठ नारद जी विष्णु लॊक कॊ गयॆ | वहाँ भगवान विष्णु कॊ दॆखकर नारद जी स्तुती करनॆ लगॆ | हॆ भगवान ! आप अत्यन्त शक्ती सम्पन्न हैं | मन और वानी भी आपकॊ नहीं पा सकती, आपका आदि मध्य और अन्त नहीं है | निर्गुण स्वरुप सृष्टि कॆ कारण भुत व भक्तॊ कॆ दुखो कॊ नष्ट करनॆ वालॆ हॊ | आपकॊ मॆरा नमस्कार है | नारद जी सॆ इस प्रकार की स्तुती सुनकर विष्णु भगवान बॊलॆ कि हॆ मुनि श्रेष्ठ आपकॆ मन मॆं क्या है ? आपका यहाँ किस काम कॆ लियॆ आगमन हुआ है नि:संकॊच कहॆं | तब नारद बॊलॆ मृत्युलॊक मॆ सब मनुष्य जॊ अनॆक यॊनीयॊं मॆ पैदा हुए हैं,अपनॆ कर्मॊ कॆ कारण अनॆक प्रकार कॆ दुखॊ सॆ दुखी हॊ रहॆ हैं | हॆ नाथ ! मुझ पर दया करॆं और मुझॆ कुछ उपाय बतायॆं ? श्री विष्णु जी बॊलॆ जिस काम सॆ मनुष्य मॊह सॆ छुट जाता है वह मैं कहता हुँ, सुनॊ बहुत पुण्य दॆनॆ वाला , स्वर्ग तथा मृत्यु लॊक दॊनॊ मॆं दुर्लभ श्री सत्यनारायण का यह व्रत है| आज मैं प्रॆम वश हॊकर तुमसॆ कहता हुं <b>| </b>सत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधि पुर्वक सम्पन्न करकॆ मनुष्य तुरन्त ही यहां सुख भॊगकर मरनॆ पर मोक्ष प्राप्त हॊता है |<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">श्री विष्णु भगवान कॆ वचन सुनकर नारद मुनी बॊलॆ कि उस व्रत का फल क्या है ? </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">क्या</span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> विधान है और किसनॆ यह व्रत किया है और किस दिन यह व्रत करना चाहिए ? हॆ भगवान इसकॊ विस्तार सॆ बताएं | भगवान बॊलॆ हॆ नारद दुख शॊक आदि कॊ दुर करनॆ वाला </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> धन धान्य</span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> बढानॆ वाला सौभाग्य तथा सन्तान कॊ दॆनॆ वाला यह व्रत सब </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">स्थानों </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">पर विजयी दिलानॆ वाला है भक्ति कॆ साथ किसी भी दिन सन्ध्या कॆ समय </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">ब्राह्मणों</span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">बन्धुऒ कॆ साथ धर्म परायण हॊकर पुजा करॆ | भक्ति भाव सॆ </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">नैवेद्य </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">भगवान कॊ अर्पण करॆ तथा बन्धुऒ सहित </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">ब्राह्मणों </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">को</span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">भॊजन करावॆ तत्पश्चात् स्वयं भॊजन करॆ | अन्त मॆ भजन आदि का आचरण कर भगवान का स्मरण करता हुआ समय </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">व्यतीत करें </span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> | इस तरह व्रत करनॆ पर मनुष्य की सभी इच्छा अवश्य पूरी हॊती है | विशॆष कर इस धॊर कलयुग मॆ इससॆ सरल उपाय कॊई नही है|</span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">श्री विष्णु ने कहा- 'हे नारद! दुःख-शोक आदि दूर करने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजयी करने वाला है। भक्ति और श्रद्धा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण भगवान की संध्या के समय ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ धर्म परायण होकर पूजा करे। भक्तिभाव से नैवेद्य, केले का फल, शहद, घी, शकर , दूध और गेहूँ का आटा लें ।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">इन सबको भक्तिभाव से भगवान को अर्पण करें। बंधु-बांधवों सहित ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। रात्रि में नृत्य-गीत आदि का आयोजन कर श्री सत्यनारायण भगवान का स्मरण करता हुआ समय व्यतीत करें। कलिकाल में मृत्युलोक में यही एक लघु उपाय है, जिससे अल्प समय और अल्प धन में महान पुण्य प्राप्त हो सकता है।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="color: #cc0000;"><span style="font-size: 14.666666666666666px;">सत्यनारायण व्रत कथा (2)</span></span><b><span style="color: red;"><o:p></o:p></span></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: left;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span style="color: #cc0000; font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">सूतजी ने कहा- 'हे ऋषियों! जिन्होंने पहले समय में इस व्रत को किया है। उनका इतिहास कहता हूँ आप सब ध्यान से सुनें। सुंदर काशीपुरी नगरी में एक अत्यंत निर्धन ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण भूख और प्यास से बेचैन होकर पृथ्वी पर घूमता रहता था। ब्राह्मणों से प्रेम करने वाले श्री विष्णु भगवान ने ब्राह्मण को देखकर एक दिन बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण कर निर्धन ब्राह्मण के पास जाकर आदर के साथ पूछा-'हे विप्र! तुम नित्य ही दुःखी होकर पृथ्वी पर क्यों घूमते हो? हे श्रेष्ठ ब्राह्मण! यह सब मुझसे कहो, मैं सुनना चाहता हूँ।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">दरिद्र ब्राह्मण ने कहा- 'मैं निर्धन ब्राह्मण हूँ, भिक्षा के लिए पृथ्वी पर फिरता हूँ। हे भगवन यदि आप इससे छुटकारा पाने का कोई उपाय जानते हों तो कृपा कर मुझे बताएँ।' वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण किए श्री विष्णु भगवान ने कहा- 'हे ब्राह्मण! श्री सत्यनारायण भगवान मनवांछित फल देने वाले हैं। इसलिए तुम उनका पूजन करो, इससे मनुष्य सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।' दरिद्र ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बताकर बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण करने वाले श्री सत्यनारायण भगवान अंतर्ध्यान हो गए।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">जिस व्रत को वृद्ध ब्राह्मण ने बताया है, मैं उसको अवश्य करूँगा, यह निश्चय कर वह दरिद्र ब्राह्मण घर चला गया। परंतु उस रात्रि उस दरिद्र ब्राह्मण को नींद नहीं आई। अगले दिन वह जल्दी उठा और श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत करने का निश्चय कर भिक्षा माँगने के लिए चल दिया। उस दिन उसको भिक्षा में बहुत धन मिला, जिससे उसने पूजा का सामान खरीदा और घर आकर अपने बंधु-बांधवों के साथ भगवान श्री सत्यनारायण का व्रत किया।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">इसके करने से वह दरिद्र ब्राह्मण सब दुःखों से छूटकर अनेक प्रकार की सम्पत्तियों से युक्त हो गया। तभी से वह विप्र हर मास व्रत करने लगा। इसी प्रकार सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो शास्त्र विधि के अनुसार करेगा, वह सब पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा। आगे जो मनुष्य पृथ्वी पर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत करेगा वह सब दुःखों से छूट जाएगा। इस तरह नारदजी से सत्यनारायण भगवान का कहा हुआ व्रत मैंने तुमसे कहा। हे विप्रों! अब आप और क्या सुनना चाहते हैं, मुझे बताएँ?<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<br />
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">ऋषियों ने कहा- 'हे मुनीश्वर! संसार में इस विप्र से सुनकर किस-किस ने इस व्रत को किया यह हम सब सुनना चाहते हैं। इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा है।'</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">श्री सूतजी ने कहा- 'हे मुनियों! जिस-जिस प्राणी ने इस व्रत को किया है उन सबकी कथा सुनो। एक समय वह ब्राह्मण धन और ऐश्वर्य के अनुसार बंधु-बांधवों के साथ अपने घर पर व्रत कर रहा था। उसी समय एक लकड़ी बेचने वाला बूढ़ा व्यक्ति वहाँ आया। उसने सिर पर रखा लकड़ियों का गट्ठर बाहर रख दिया और विप्र के मकान में चला गया।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">प्यास से व्याकुल लकड़हारे ने विप्र को व्रत करते देखा। वह प्यास को भूल गया। उसने उस विप्र को नमस्कार किया और पूछा- 'हे विप्र! आप यह किसका पूजन कर रहे हैं? इस व्रत से आपको क्या फल मिलता है? कृपा करके मुझे बताएँ।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">ब्राह्मण ने कहा- 'सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत है। इनकी ही कृपा से मेरे यहाँ धन-धान्य आदि की वृद्धि हुई।'</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">विप्र से इस व्रत के बारे में जानकर वह लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ। भगवान का चरणामृत ले और भोजन करने के बाद वह अपने घर को चला गया।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">अगले दिन लकड़हारे ने अपने मन में संकल्प किया कि आज ग्राम में लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से भगवान सत्यनारायण का उत्तम व्रत करूँगा। मन में ऐसा विचार कर वह लकड़हारा लकड़ियों का गट्ठर अपने सिर पर रखकर जिस नगर में धनवान लोग रहते थे, वहाँ गया। उस दिन उसे उन लकड़ियों के चौगुने दाम मिले।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">वह बूढ़ा लकड़हारा अतिप्रसन्न होकर पके केले, शकर, शहद, घी, दुग्ध, दही और गेहूँ का चूर्ण इत्यादि श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत की सभी सामग्री लेकर अपने घर आ गया। फिर उसने अपने बंधु-बांधवों को बुलाकर विधि-विधान के साथ भगवान का पूजन और व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन-पुत्र आदि से युक्त हुआ और संसार के समस्त सुख भोगकर बैकुंठ को चला गया।'</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">श्री सूतजी ने कहा- 'हे श्रेष्ठ मुनियों! अब एक और कथा कहता हूँ। पूर्वकाल में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था। वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था। प्रतिदिन देवस्थानों पर जाता तथा गरीबों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था। उसकी पत्नी सुंदर और सती साध्वी थी। भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनों ने श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत किया।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">उस समय वहाँ साधु नामक एक वैश्य आया। उसके पास व्यापार के लिए बहुत-सा धन था। राजा को व्रत करते देख उसने विनय के साथ पूछा- 'हे राजन! भक्तियुक्त चित्त से यह आप क्या कर रहे हैं? मेरी सुनने की इच्छा है। कृपया आप मुझे भी बताइए।' महाराज उल्कामुख ने कहा- 'हे साधु वैश्य! मैं अपने बंधु-बांधवों के साथ पुत्रादि की प्राप्ति के लिए महाशक्तिमान सत्यनारायण भगवान का व्रत व पूजन कर रहा हूँ।' राजा के वचन सुनकर साधु नामक वैश्य ने आदर से कहा- 'हे राजन! मुझे भी इसका सब विधान बताइए। मैं भी आपके कथानुसार इस व्रत को करूँगा। मेरे यहाँ भी कोई संतान नहीं है। मुझे विश्वास है कि इससे निश्चय ही मेरे यहाँ भी संतान होगी।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">राजा से सब विधान सुन, व्यापार से निवृत्त हो, वह वैश्य खुशी-खुशी अपने घर आया। वैश्य ने अपनी पत्नी लीलावती से संतान देने वाले उस व्रत का समाचार सुनाया और प्रण किया कि जब हमारे यहाँ संतान होगी तब मैं इस व्रत को करूँगा।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">एक दिन उसकी पत्नी लीलावती सांसारिक धर्म में प्रवृत्त होकर गर्भवती हो गई। दसवें महीने में उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। कन्या का नाम कलावती रखा गया। इसके बाद लीलावती ने अपने पति को स्मरण दिलाया कि आपने जो भगवान का व्रत करने का संकल्प किया था अब आप उसे पूरा कीजिए।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">साधु वैश्य ने कहा- 'हे प्रिय! मैं कन्या के विवाह पर इस व्रत को करूँगा।' इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन दे वह व्यापार करने चला गया। काफी दिनों पश्चात वह लौटा तो उसने नगर में सखियों के साथ अपनी पुत्री को खेलते देखा। वैश्य ने तत्काल एक दूत को बुलाकर कहा कि उसकी पुत्री के लिए कोई सुयोग्य वर की तलाश करो।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">साधु नामक वैश्य की आज्ञा पाकर दूत कंचन नगर पहुँचा और उनकी लड़की के लिए एक सुयोग्य वणिक पुत्र ले आया। वणिक पुत्र को देखकर साधु नामक वैश्य ने अपने बंधु-बांधवों सहित प्रसन्नचित्त होकर अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। वैश्य विवाह के समय भी सत्यनारायण भगवान का व्रत करना भूलगया। इस पर श्री सत्यनारायण भगवान क्रोधित हो गए। उन्होंने वैश्य को श्राप दिया कि तुम्हें दारुण दुःख प्राप्त होगा।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">अपने कार्य में कुशल साधु नामक वैश्य अपने जामाता सहित नावों को लेकर व्यापार करने के लिए समुद्र के समीप स्थित रत्नसारपुर नगर में गया। दोनों ससुर-जमाई चंद्रकेतु राजा के नगर में व्यापार करने लगे। एक दिन भगवान सत्यनारायण की माया से प्रेरित एक चोर राजा का धन चुराकर भागा जा रहा था।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">राजा के दूतों को अपने पीछे आते देखकर चोर ने घबराकर राजा के धन को उसी नाव में चुपचाप रख दिया, जहाँ वे ससुर-जमाई ठहरे थे। ऐसा करने के बाद वह भाग गया। जब दूतों ने उस साधु वैश्य के पास राजा के धन को रखा देखा तो ससुर-जामाता दोनों को बाँधकर ले गए और राजा के समीप जाकर बोले- 'हम ये दो चोर पकड़कर लाए हैं। कृपया बताएँ कि इन्हें क्या सजा दी जाए।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">राजा ने बिना उन दोनों की बात सुने ही उन्हें कारागार में डालने की आज्ञा दे दी। इस प्रकार राजा की आज्ञा से उनको कठिन कारावास में डाल दिया गया तथा उनका धन भी छीन लिया गया। सत्यनारायण भगवान के श्राप के कारण साधु वैश्य की पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भी घर पर बहुत दुखी हुई। उनके घरों में रखा धन चोर ले गए।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">एक दिन शारीरिक व मानसिक पीड़ा तथा भूख-प्यास से अति दुखित हो भोजन की चिंता में कलावती एक ब्राह्मण के घर गई। उसने ब्राह्मण को श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत करते देखा। उसने कथा सुनी तथा प्रसाद ग्रहण कर रात को घर आई। माता ने कलावती से पूछा- 'हे पुत्री! तू अब तक कहाँ रही व तेरे मन में क्या है?' कलावती बोली- 'हे माता! मैंने एक ब्राह्मण के घर श्री सत्यनारायरण भगवान का व्रत होते देखा है।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">कलावती के वचन सुनकर लीलावती ने सत्यनारायण भगवान के पूजन की तैयारी की। उसने परिवार और बंधुओं सहित श्री सत्यनारायण भगवान का पूूजन व व्रत किया और वर माँगा कि मेरे पति और दामाद शीघ्र ही घर वापस लौट आएँ। साथ ही भगवान से प्रार्थना की कि हम सबका अपराध क्षमा करो।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">श्री सत्यनारायण भगवान इस व्रत से संतुष्ट हो गए। उन्होंने राजा चंद्रकेतु को स्वप्न में दर्शन देकर कहा- 'हे राजन! जिन दोनों वैश्यों को तुमने बंदी बना रखा है, वे निर्दोष हैं, उन्हें प्रातः ही छोड़ दो अन्यथा मैं तेरा धन, राज्य, पुत्रादि सब नष्ट कर दूँगा।' राजा से ऐसे वचन कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">प्रातःकाल राजा चंद्रकेतु ने सभा में सबको अपना स्वप्न सुनाया और सैनिकों को आज्ञा दी कि दोनों वणिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में लाया जाए। दोनों ने आते ही राजा को प्रणाम किया। राजा ने उनसे कहा- 'हे महानुभावों! तुम्हें भावीवश ऐसा कठिन दुःख प्राप्त हुआ है। अब तुम्हें कोई भय नहीं है, तुम मुक्त हो।' ऐसा कहकर राजा ने उनको नए-नए वस्त्रा भूषण पहनवाए तथा उनका जितना धन लिया था उससे दूना लौटाकर आदर से विदा किया। दोनों वैश्व अपने घर को चल दिए।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">श्री सूतजी ने आगे कहा- 'वैश्य और उसके जमाई ने मंगलाचार करके यात्रा आरंभ की और अपने नगर की ओर चल पड़े। उनके थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर दंडी वेषधारी श्री सत्यनारायण भगवान ने उससे पूछा- 'हे साधु! तेरी नाव में क्या है?'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">अभिमानी वणिक हँसता हुआ बोला- 'हे दंडी ! आप क्यों पूछते हैं? क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव में तो बेल और पत्ते भरे हैं।' वैश्य का कठोर वचन सुनकर दंडी वेषधारी श्री सत्यनारायण भगवान ने कहा- 'तुम्हारा वचन सत्य हो!' ऐसा कहकर वे वहाँ से कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">दंडी महाराजा के जाने के पश्चात वैश्य ने नित्यक्रिया से निवृत्त होने के बाद नाव को उँची उठी देखकर अचंभा किया तथा नाव में बेल-पत्ते आदि देखकर मूर्च्छित हो जमीन पर गिर पड़ा। मूर्च्छा खुलने पर अत्यंत शोक प्रकट करने लगा। तब उसके जामाता ने कहा- 'आप शोक न करें। यह दंडी महाराज का श्राप है, अतः उनकी शरण में ही चलना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">जामाता के वचन सुनकर वह साधु नामक वैश्य दंडी महाराज के पास पहुँचा और भक्तिभाव से प्रणाम करके बोला- 'मैंने जो आपसे असत्य वचन कहे थे उसके लिए मुझे क्षमा करें।' ऐसा कहकर वैश्य रोने लगा। तब दंडी भगवान बोले- 'हे वणिक पुत्र! मेरी आज्ञा से तुझे बार-बार दुःख प्राप्त हुआ है, तू मेरी पूजा से विमुख हुआ है।'</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">साधु नामक वैश्य ने कहा- 'हे भगवन! आपकी माया से ब्रह्मा आदि देवता भी आपके रूप को नहीं जान पाते, तब मैं अज्ञानी भला कैसे जान सकता हूँ। आप प्रसन्न होइए, मैं अपनी सामर्र्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूँगा। मेरी रक्षा करो और पहले के समान मेरी नौका को धन से पूर्ण कर दो।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">उसके भक्तियुक्त वचन सुनकर श्री सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और उसकी इच्छानुसार वर देकर अंतर्ध्यान हो गए। तब ससुर व जामाता दोनों ने नाव पर आकर देखा कि नाव धन से परिपूर्ण है। फिर वह भगवान सत्यनारायण का पूजन कर जामाता सहित अपने नगर को चला।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 14.666666666666666px;">जब वह अपने नगर के निकट पहुँचा तब उसने एक दूत को अपने घर भेजा। दूत ने साधु नामक वैश्य के घर जाकर उसकी पत्नी को नमस्कार किया और कहा- 'आपके पति अपने दामाद सहित इस नगर के समीप आ गए हैं।' लीलावती और उसकी कन्या कलावती उस समय भगवान का पूजन कर रही थीं।</span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif; font-size: 14.666666666666666px;">दूत का वचन सुनकर साधु की पत्नी ने बड़े हर्ष के साथ सत्यदेव का पूजन पूर्ण किया और अपनी पुत्री से कहा- 'मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूँ, तू कार्य पूर्ण कर शीघ्र आ जाना।' परंतु कलावती पूजन एवं प्रसाद छोड़कर अपने पति के दर्शनों के लिए चली गई।</span></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">प्रसाद की अवज्ञा के कारण सत्यदेव रुष्ट हो गए फलस्वरूप उन्होंने उसके पति को नाव सहित पानी में डुबो दिया। कलावती अपने पति को न देख रोती हुई जमीन पर गिर पड़ी। नौका को डूबा हुआ तथा कन्या को रोती हुई देख साधु नामक वैश्य दुखित हो बोला- 'हे प्रभु! मुझसे या मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करो।'<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">उसके दीन वचन सुनकर सत्यदेव भगवान प्रसन्न हो गए। आकाशवाणी हुई- 'हे वैश्य! तेरी कन्या मेरा प्रसाद छोड़कर आई है इसलिए इसका पति अदृश्य हुआ है। यदि वह घर जाकर प्रसाद खाकर लौटे तो इसका पति अवश्य मिलेगा।'</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">आकाशवाणी सुनकर कलावती ने घर पहुँचकर प्रसाद खाया और फिर आकर अपने पति के दर्शन किए। तत्पश्चात साधु वैश्य ने वहीं बंधु-बांधवों सहित सत्यदेव का विधिपूर्वक पूजन किया। वह इस लोक का सुख भोगकर अंत में स्वर्गलोक को गया</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">श्री सूतजी ने आगे कहा- 'हे ऋषियों! मैं एक और भी कथा कहता हूँ। उसे भी सुनो। प्रजापालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भगवान सत्यदेव का प्रसाद त्याग कर बहुत दुःख पाया। एक समय राजा वन में वन्य पशुओं को मारकर बड़ के वृक्ष के नीचे आया।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">वहाँ उसने ग्वालों को भक्ति भाव से बंधु-बांधवों सहित श्री सत्यनारायण का पूजन करते देखा, परंतु राजा देखकर भी अभिमानवश न तो वहाँ गया और न ही सत्यदेव भगवान को नमस्कार ही किया। जब ग्वालों ने भगवान का प्रसाद उनके सामने रखा तो वह प्रसाद त्याग कर अपने नगर को चला गया।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">नगर में पहुँचकर उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो गया है। वह समझ गया कि यह सब भगवान सत्यदेव ने ही किया है। तब वह उसी स्थान पर वापस आया और ग्वालों के समीप गया और विधिपूर्वक पूजन कर प्रसाद खाया तो सत्यनारायण की कृपा से सब-कुछ पहले जैसा ही हो गया और दीर्घकाल तक सुख भोगकर मरने पर स्वर्गलोक को चला गया।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">जो मनुष्य इस परम दुर्लभ व्रत को करेगा श्री सत्यनारायण भगवान की कृपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी। निर्धन धनी और बंदी बंधन से मुक्त होकर निर्भय हो जाता है। संतानहीन को संतान प्राप्त होती है तथा सब मनोरथ पूर्ण होकर अंत में वह बैकुंठ धाम को जाता है।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;">जिन्होंने पहले इस व्रत को किया अब उनके दूसरे जन्म की कथा भी सुनिए। शतानंद नामक ब्राह्मण ने सुदामा के रूप में जन्म लेकर श्रीकृष्ण की भक्ति कर मोक्ष प्राप्त किया। उल्कामुख नाम के महाराज, राजा दशरथ बने और श्री रंगनाथ का पूजन कर बैकुंठ को प्राप्त हुए।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="margin-bottom: 0.0001pt; text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-family: "times" , "times new roman" , serif; font-size: 14.666666666666666px;"><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">साधु नाम के वैश्य ने धर्मात्मा व सत्यप्रतिज्ञ राजा मोरध्वज बनकर अपनी देह को आरे से चीरकर दान करके मोक्ष को प्राप्त हुआ। महाराज तुंगध्वज स्वयंभू मनु हुए? उन्होंनेबहुत से लोगों को भगवान की भक्ति में लीन कर मोक्ष प्राप्त किया। लकड़हारा भील अगले जन्म में गुह नामक निषाद राजा हुआ, जिसने भगवान राम के चरणों की सेवा कर मोक्ष प्राप्त कि</span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">या।</span></span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-60563304618581223942016-06-09T09:32:00.001-07:002016-06-09T09:32:55.669-07:00हरियाली अमावस्या की कहानी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span id="docs-internal-guid-9e4bc0f4-35ff-6b3b-7e2d-03ac19a0d600"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 14.666666666666666px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">एक राजा था उसके एक बेटा बहू था बहू ने एक दिन मिठाई चोर कर खाली और नाम चूहा को लीयो ये सुनकर चूहा को गुस्सा आया उसने मन मे विचार करा की अपन चोर को राजा के सामने लेकर आयेगे एक दिन राजा के घर में मेहमान आये थे और वे राजा के कमरे में सोये थे चूहा ने रानी के कपडे ले जाकर मेहमान के पास रख दिये सुबह उठकर सब लोग आपस में बात करने लगे की छोटी रानी के कपडे मेहमान के कमरे में मीले ये बात जब राजा ने सुनी तो छोटी रानी को घर से निकाल दिया वो रोज शाम को दिया जलाती और जवारा बोती थी पूजा करती गुडधानी का प्रशाद बाँटती थी एक दिन राजा शिकार करके उधर से निकले तो राजा की नजर उस रानी पर पडी । राजा ने घर आकर कहा की आज तो झाड के नीचे चमत्कारी चीज हैं अपन झाड के ऊपर जाकर बैठा देखो आपस में बात करे आज कोन कोन क्या क्या खाया ,कैसी कैसी पूजा करी । उस में से एक दियो बोला अपके मेरे जान पहचान के अलावा कोई नही है आपने तो मेरी पूजा भी नही करी और भोग भी नही लगायो बाकी के सब दिये बोले एसी क्या बाात हुई तब दियो बोला मे राजा के घर का हूँ उस राजा की एक बहू थी वह एक बार मिठाई चोर कर खाली और चूहा को नाम लें लीयो जब चूहा को गुस्सा आया तो रानी के कपडे मेहमान के कमरे में रख दिये राजा ने रानी को घर से निकाल दिया वो रोज मेरी पूजा करती थी भोग लगाती थी उसने रानी को आशीर्वाद दियो कहा भी रहे सुखी रहे फिर सब लोग झाड पर से उतर घर आये और कहा की रानी का कोई दोष नही था राजा ने रानी को घर बुलाया और सुख से रहने लगे भूल चूक माफ करना ।</span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6595540652888531918.post-34801075951273935472016-06-01T10:03:00.001-07:002016-06-01T10:03:05.958-07:00हरियाली अमावस्या की विधी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span id="docs-internal-guid-10ab79f1-0ceb-3d04-d3f2-57be5e713a04"></span><br />
<div dir="ltr" style="line-height: 1.38; margin-bottom: 0pt; margin-top: 0pt;">
<span style="background-color: transparent; color: black; font-family: Arial; font-size: 14.666666666666666px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: 400; text-decoration: none; vertical-align: baseline; white-space: pre-wrap;">यह आधा सावन की अमावस्या के दिन आती है</span></div>
</div>
Anju Sharmahttp://www.blogger.com/profile/10234921066727977661noreply@blogger.com0