Thursday, January 9, 2014

शरद पूर्णिमा की कहानी


एक साहूकार के दो बेटी थी दोनों बहन पूर्णिमा को व्रत करती थी | बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती और छोटी बहन अधूरो व्रत करती |छोटी बहन का बच्चा होते ही मर जाता और बड़ी बहन का बच्चा जीवित रहता | ऐसा करते- करते बहुत दिन हो गया | एक दिन छोटी बहन बड़ा पंडित ने पूछयो कि मेरा बच्चा होते ही क्यों मर जावे सो म्हारे बताओ | पंडितजी बोल्या कि तू  पूर्णिमा को अधुरो व्रत करती थी उसको दोष से थारा बच्चा होते ही मर जाते है | अब तू  पूर्णिमा को पूरा  व्रत कर तो थारा बच्चा जीवित  रहेगा |उस छोटी बहन ने पूरो पूनम को व्रत कर्यो फिर भी उसके लड़को हुयो वो भी मर गया तो वा छोटी बहन उस लड़को के पटिया पर सुलाकर ऊपर से कपड़ो ढक दियो और बड़ी बहन के बुलाकर उसके उस पटिया पर बैठने को बोल्यो तो वा पटिया पर बैठते ही उसको लडको जीवित हो गयो और रोने लग्यो तब बड़ी बहन बोली कि तुम्हारे यह कलंक कैसे लग्यो अगर मै इसका ऊपर बैठ जाती तो यो लड़को मर जातो तब छोटी बहन बोली कि तेरा ही भाग से म्हारे यो लड़को जीवित रह गयो है |तो छोटी बहन बोली कि मै अधुरो  व्रत रखती तो थारो बच्चा जीवता और म्हारा मर जाता तो थारे  बुलाई थारो हाथ लगते ही म्हारे बच्चो जी गयो या सब थारी ही मेहरबानी है तो सारा गाँव में ढिढोरा पिटवा दियो कि सब कोई पूनम को बरत पूरो करे | कहता सुनता हुंकारा भरता |  

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