Saturday, January 4, 2014

मई चौथ व्रत कि कहानी ( तिल चतुर्थी )

                                                         
 एक साहूकार थो उसके कोई बच्चा नही था | एक दिन साहूकार कि ओरत पड़ोसन के पास गई और बोली कि आज म्हारे अग्नि दे दो तब वा पड़ोसन चौथ माता कि पूजा करती रेवे |तो उसके वा साहूकार कि बहु  बोली या पूजा  किस देवता कि है | तब वा पड़ोसन बोली कि चौथ माता कि |
साहूकार कि बहु बोली कि इसकी पूजा करने से कई होवे है | तब वा पड़ोसन बोली कि या चौथ माता कि पूजा है| और इसको करने से अन्न होय , धनं होय , बिछड़ाया ने मेला होय , निपुत्र से पुत्र होय |तब वह बोली कि म्हे भी चौथ माता से मान करु कि म्हारे भी बेटो होवे |तो में भी सवा मन को तिलकुटो बनाकर के चढ़ाऊगा |
अब नो महीना बाद उसके लड़को हुयो , पर वा  मई चौथ माता का दिन तिलकुटो चढ़ानो भूल गइ | अब इस प्रकार उसके सात  लड़का हुआ  सातो लड़का का ब्याह  कर दिया | वा मंदिर में उतारे और बेटो मर जावे , बहु रह जावे , सातवा लड़का कि बहु केवे ससुरजी अपना पास तो धन खूब है म्हे तो  एक टको सोना देकर रोज  नई जुनी बात सुनुगा तब वा हनुमानजी का मंदिर में गई और एक टको सोना को दियो और नई  जुनी बात सुनी |
रात के बारह बजे एक साधु हनुमानजी का मंदिर आयो और  उनका मोड़ , चुनरी सब लाकर धर दियो और गंगाजल छाट  दियो और सबके जीवित कर दिया ये वे ही हनुमान था |तब सब लड़का बोल्या कि माँ ने मई चौथ का दिन सवा मन तिलकुटा बोल्यो थो पर भूल गई | तब चौथ माता ने क्रोध कियो और सात ही के ले लियो | सात बहु विधवा हो गई उस छोटी के पूछ्यो कि काई बात है तू तो रोज सवा टको सोना को देकर नई जुनी बात पूछती थी | तब वा बोली कि मई चौथ का दिन सवा मन तिलकुटो  बनाकर चौथ माता के भोग लगानो    है
 हे चौथमाता उनके सुहाग दियो जैसे सबके दीजे कहते कहते  हुंकार भरता |अधूरी होय तो पूरी कर जो , पूरी होय तो मान कर जो |          

 

No comments:

Post a Comment