Friday, August 14, 2015

श्री काली मैया की आरती


मंगल की सेवा सुन मेरी देवा,हाथ जोड तेरे द्वार खडे़
पान सुपारी ध्वजा नारियल,ले ज्वाला तेरी भेंट कर,
सुन जगदम्बे कर न विलम्बे संंतन के भंडार भरे,
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली,जै काली कल्याण करे ।।
बुद्धि विधाता तू जगमाता,मेरा कारज सिद्ध करे,
चरन कमल का लिया आसरा,शरण तुम्हारी आन परे,
जब जब पीर पडे़ भक्तन पर तब तब आय सहाय करे,
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली,जै काली कल्याण करे ।।
बार बार तै सब जग मोहयो,तरूणी रूप अनूप धरे,
माता होकर पुत्र खिलावें,कही भार्या बन भोग करे,
संतन सुखदाई सदा सहाई ,सन्त खड़े जयकार करे,
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ।।
ब्रह्मा , विष्णु ,महेश फल लिए,भेंट देन सब द्वार खडे
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे
बार शनिचर कुंकुमवरणी , जब लुंकुड पर हुक्म करे
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।।
खड्ग खप्पर त्रिशूल हाथ लिये , रक्त बीज कुं भस्म करे
शुम्भ निशुम्भ क्षणहिं में मारे , महिषासुर को पकड़ दरे
आदित वारी आदि भवानी , जन अपने को कष्ट हरे ,
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली , जै काली कल्याण करे ।।
कुपित होय कर दानव मारे ,चण्ड मुण्ड सब चुर करे
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे,
सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता , जन की अर्ज कबूल करे,
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।।
सात बार महिमा बरनी , सब गुण कौन बखान करे,
सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भुवन में राज्य करे,
दर्शन पावें मंगल गावें , सिद्ध साधन तेरी भेंट धरे,
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे
ब्रह्राा वेद पढे़ तेरे व्दारे, शिवशंकर हरि ध्यान धरे ,
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती ,चंबार कुबेर डुलाय रहे
जै जननी जै मातुभवानी, अचल भुवन में राज करे,
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ।

Saturday, July 4, 2015

श्री जय सन्तोषी माता की आरती


जय संतोषी माता जय संन्तोषी माता
अपने सेवक जन को सुख सम्पति दाता । जय
सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्होे
हीरा पन्ना दमके तब सिंगार लीन्हो । जय
गेरू लाल छटा छवि बदन कमल सोहे
मंद हंसत करूणामयी त्रिभुवन मन मोहे । जय
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंबर ढुरे प्यारे
धूप ,दीप ,नैवेध , मधुमेवा भोग धरे न्यारे । जय
गुण , अरू , चना परम प्रिय तामें संतोष कियो
संतोषी कहलाई भक्तन विभव दियो । जय
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही
भक्त मण्डली आई कथा सुनत मोही । जय
मंदिर जगमग ज्योति मंगल ध्वनि छाई
विनय करें हम बालक चरनन सिर नाई । जय
भक्ति भाव मय पूजा अंगीकृत कीजे
जो मन बसे हमारे इच्छा फल दीजे । जय
दुःखी दरिद्री रोगी संकट मुक्त कियो
बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दियो । जय
ध्यान धरो जाने तेरो मनवांछित पायो
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो । जय
शरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे ,
संकट तू ही निवारे दयामयी मां अम्बे । जय
संतोषी मां की आरती जो कोई नर गावे
रिध्दि सिध्दि सुख सम्पति जी भरके पावे । जय

Friday, June 26, 2015

श्री बद्रीनारायणजी की आरती

पवन मन्द सुगन्ध शीतल हेम मन्दिर शोभितम
निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम
शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ,ध्यान महेशवरम
श्री वेद ब्रह्मा करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
शक्ति गौरी गणेश शारद मुनि उच्चारणम्
जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विशमभरम्
इन्द्र चन्द्र कुबेर धुनिकर दीप धूप प्रकाशीतम्
सिध्द मुनिजन करत जै जै श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
यक्ष किन्नर कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम्
श्री लक्ष्मी कमला चंबर डोले श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
कैलाश में एक देव निरंजन शैल शिखर महेशवरम
राजा युधिष्ठिर करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
श्री बद्रीनाथ के पंचरत्न पढ़त पाप विनाशनम्
कोटि तीर्थ भवेत् पुण्य प्राप्यते फलदायकम्

Tuesday, June 16, 2015

श्री कुन्ज बिहारी की आरती



आरती कुन्ज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
गले में वैजंतीमाला ,बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला ,नंद के नंदलाला। श्री गिरधर
गगन सम अंग कांति काली ,राधिकां चमक रही आली , लतन में ठाढे़ बनमाली ।
भ्रमर सी अलक , कस्तूरी तिलक , चन्द्र सी झलक , ललित छवि स्यामा प्यारी की ,
श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
कनकमय मोर मुकुट बिलासै , देवता दरसन को तरसै गगन सौ सुमन रसि बरसै ,
बजे मुरचंग मधुर मिरदंग ग्वालनी संग
अतुल रति गोपकुमारी की , श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
जहाँ से प्रकट भई गंगा , कलुष कलिहारिणि श्री गंगा , स्मरन ते होत मोह भंगा ।
बसी शिव सीस , जटा के बीच हरे अघ कीच ,
चरन छबि श्री बनवारी की , गिरधर कृष्ण मुरारी की
चमकती , उज्जवल तट रेनू , बज रही बृन्दावन बेनू ,
चहूं दिसि गोपी ग्वाला धेनू ।
हंसत मृदु मंद , चांदनी चंद , कटत भव फंद ,
टेर सुर दिन  भिखारी की ,श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
आरती कुन्ज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।

श्री शेषनारायणजी की आरती


आरती शेषनारायणजी की
जिनसे उत्पत्ति है सब ही की ।
प्रलय काल अन्त में आप ही शेष है ,
सृष्टि रचने में आपका ही आदेश है
तुम्ही ने जीवो को जन्म दिया था
उस समय स्थान न तन मिला था
तब देह हेतु विनय भई जीवों की,
सृष्टि रचना मन में उपजाई नीकी । आरती
तुम्ही हो माता पिता बन्धु सखा हो
तुम्ही हो कर्म अरू ज्ञान के दाता हो
तुम्ही ने विशवकर्माजी को रूप लीनो है
तुम्ही ने ब्रम्हााजी का निर्माण कीनो है
जब अखण्ड तपस्या देखी ब्रम्हाजी की
तब प्रसन्न हो दर्शन दिये नीकी । आरती
एवमस्तु कह कर जब वर दियो है,
ब्रम्हा जी ने कहा सृष्टि रचना कठिन है,
पंच मुखी दस भुजा का रूप लीयो है,
विशवकर्माजी को नाम जगत मे कियो है ,
पांच पुरूष जिनसे उपजाये है नीकी,
जिनकी कीर्ति जगत में हो रही नीकी । आरती
मनु नय त्वष्टा शिल्पी दैवज्ञ किये है,
जिन्होंने सृष्टि रचकर वेद उपजाये है ,
ऋग्वेद यजुर्वेंद सामवेद किये है,
अथर्ववेद प्रणव वेद उपजाये है,
जिनसे शास्त्र पुराण हुये अति नीकी ।आरती
विराट पुरूष को रूप जगत में लियो है,
जिनसे जगत में नर नारी उपजाये है ,
दाहिने अंग से नारी को जन्म दियो है,
वाम अंग से नर को जन्म दियो है ,
एसा वेद शास्त्र पुराण वर्णत है , नीकी ,
महिमा अपरम्पार जगत में नीकी । आरती
ब्रम्हा जी सृष्टि रचयिता विष्णु पालन रूप,
महेश संहारन हेतु जगत में लीनों रूप ,
एसे रूप अनेक जगत में उपजाये है ,
जिनकी कीर्ति गााते नर नारी सुख पाये है,
आरती शेषनारायणजी की जो सबकी हित की,
भव के दुख से छूटे सुख सम्पति पावे नीकी,
आरती शेषनारायणजी की जिनसे उत्पत्ति है सब ही की

Wednesday, May 27, 2015

श्री नर्मदाजी की आरती

जय नर्मदा भवानी,
निकसी जल धारा जोर पर्वत पाताल फोर
छटा छवि आनन्द बरन कवि सुर फनिन्द
काउत जम द्वन्द फन्द देत रजधानी
भूषण वस्त्र शुभ विशाल चन्दन को खीर भाल मनो रवी पर्वतकाल तेज ओ बखानी
देत मुक्ति परमधाम गावत जो आठों याम
दुविधा जात महाकाम ध्यावत जो प्राणी
ध्यावत आज युर सुरेश पावत नही पार
गावत नारद गणेश पण्डित मुनि ज्ञानी
संयम सागर मझधार में जल उदधि अंहकारी
उदर फार निकार धार ऊपर नित छहरानी
अष्ट भूजा बाल अखण्ड नव द्वीप
नौ खण्ड महिमा मात तुम जानी
देके दर्शन प्रसाद राखो माता मर्यादा
दास गंगे करे आरती वेद मति बखानी

 

Tuesday, May 19, 2015

श्री शिवरात्री की आरती


आ गई महाशिवरात्रि पधारो शंकरजी ।
उतारे आरती ।।
तुम नयन में हो मन धाम तेरा ।
हे नीलकण्ठ है कंठ कंठ मे नाम तेरा ।
हो देवो के देव जगत मे प्यारे शंकरजी ।
तुम राज महल में तुम्हीं भिखारी के घर में ।
धरती पर तेरा चरण मुकुट है अम्बर मे ।
संसार तुम्हारा एक हमारे शंकरजी ।
तुम दुनिया वसा कर भस्म रमाने वाले हो ।
पापी के भी रखवाले भोले भाले हो
दुनिया में भी दो दिन तो गुजारो शंकरजी
क्या भेंट चढ़ाये तन मैला घर सुना ।
ले लो आंसू के गंगाजल का है नमूना
आ करके नयन में चरण पखारो शंकरजी

श्री माता वैष्णो देवी की आरती

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़या
सुआ चोली तेरी अंग विराजे केसर तिलक लगाया । सुन
ब्रम्हा वेद पढ़े तेरे व्दारे शंकर ध्यान लगाया । सुन
नंगे पैर पग से तेरे सम्मुख अकबर आया
सोने का छत्र चढ़ाया । सुन
ऊँच पर्वत बन्या शिवाली नीचे महल बनाया । सुन
सतयुग व्दापर त्रेता मध्ये कलयुग राज बसाया । सुन
धूप दीप नैवेघ आरती मोहन भोग लगाया । सुन
ध्यानु भक्त मैया तेरा गुन गाया , मनवांछित फल पाया । सुन

श्री पार्वतीजी की आरती

जय श्री पार्वती माता जय श्री पार्वती माता
ब्रम्हा सनातन देवी शुभ फल की दाता ।
अरिकुल पदम विनासनि निज सेवक त्राता
जग जननी जगदम्बा हरि हर गुण गाता । जय
सिंह को वाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देव वधु जह गावत नृत्य करत ताथा । जय
सतयुग रूपशील अतिं सुन्दर नाम सती कहलाता
हेमांचल घर जन्मी सखियन संगराता । जय
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्थाता,
सहस्त्र भुज तनु धरिके च्रक लियो हाथा । जय
सृष्टि रूप तब ही जननी शिव संग रंगराता
नन्दी भृगीं बीन लही सारा जग मदमाता । जय
देवन अरज करत हम मन चित को लाता,
गावत दे दे ताली मन में रंग राता । जय
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता ।जय


Saturday, May 16, 2015

श्री तुलसीजी की आरती

जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता । जय
सब योगो के ऊपर सब रोगो के ऊपर,
रूज से रक्षा करके भव त्राता । जय
बटुक पुत्री हैं शयामा सुर बल्ला है ग्राम्या,
विष्णु प्रिय जो तुम को सेवे सो तर जाता । जय
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वन्दित,
पतितजनों की तारिणी विख्याता । जय
लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में
मानव लोक तुम्ही से सुख सम्पति पाता । जय
हरि को तुम अति प्यारी शयाम वरण कुमारी
प्रेम अजब हैं उनका तुम से कैसा नाता । जय


श्री अन्नपूर्णाजी की आरती

बारम्बार प्रणाम मैया बारम्बार प्रणाम
जो नहीं ध्यावे तुम्हे अम्बिके , कहाँ उसे विश्राम
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो , लेत होत सब काम
प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर , कालान्तर तक नाम
सुर सुरो की रचना करती , कहाँ कृष्ण कहाँ राम
चुमहि चरण चतुर चतुरानन, चारू चक्रधर शयाम
चन्द्र चुड़ चन्द्रानन चाकर ,शोभा लखहि सलाम
देवी देव। दयनीय दशा में दया दया तब जाम
त्राहि त्राहि शरणागत वत्सल , शरण रूप तब धाम
श्री ही श्रध्द श्री हे एे विघा , श्री कली कमला काम
कांति भ्रांतिमय कांतिं शांति सयोवर देतू निष्काम ।


Friday, May 15, 2015

श्री गंगाजी की आरती

ओऽम जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता
जो नर तुमको ध्याता ,मनवांछित फल पाता ।ओऽम
चन्र्दसी ज्योति तुम्हारी ,जल निर्मल आता,
शरण| पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता । ओऽम
पूत्र सागर के तारे ,सब जग की ज्ञाता
तेरी कृपा दृष्टि है मैया त्रिभुवन सुखदाता । ओऽम
एक बार जो प्राणी तेरी शरण आता
यम की त्रासमिटाकर परममोक्ष पाता ।
आरती माता तुम्हारी जो नर नित्य गाता
सेवक वही सहज में मुक्ति को पाता । ओऽम