आरती शेषनारायणजी की
जिनसे उत्पत्ति है सब ही की ।
प्रलय काल अन्त में आप ही शेष है ,
सृष्टि रचने में आपका ही आदेश है
तुम्ही ने जीवो को जन्म दिया था
उस समय स्थान न तन मिला था
तब देह हेतु विनय भई जीवों की,
सृष्टि रचना मन में उपजाई नीकी । आरती
तुम्ही हो माता पिता बन्धु सखा हो
तुम्ही हो कर्म अरू ज्ञान के दाता हो
तुम्ही ने विशवकर्माजी को रूप लीनो है
तुम्ही ने ब्रम्हााजी का निर्माण कीनो है
जब अखण्ड तपस्या देखी ब्रम्हाजी की
तब प्रसन्न हो दर्शन दिये नीकी । आरती
एवमस्तु कह कर जब वर दियो है,
ब्रम्हा जी ने कहा सृष्टि रचना कठिन है,
पंच मुखी दस भुजा का रूप लीयो है,
विशवकर्माजी को नाम जगत मे कियो है ,
पांच पुरूष जिनसे उपजाये है नीकी,
जिनकी कीर्ति जगत में हो रही नीकी । आरती
मनु नय त्वष्टा शिल्पी दैवज्ञ किये है,
जिन्होंने सृष्टि रचकर वेद उपजाये है ,
ऋग्वेद यजुर्वेंद सामवेद किये है,
अथर्ववेद प्रणव वेद उपजाये है,
जिनसे शास्त्र पुराण हुये अति नीकी ।आरती
विराट पुरूष को रूप जगत में लियो है,
जिनसे जगत में नर नारी उपजाये है ,
दाहिने अंग से नारी को जन्म दियो है,
वाम अंग से नर को जन्म दियो है ,
एसा वेद शास्त्र पुराण वर्णत है , नीकी ,
महिमा अपरम्पार जगत में नीकी । आरती
ब्रम्हा जी सृष्टि रचयिता विष्णु पालन रूप,
महेश संहारन हेतु जगत में लीनों रूप ,
एसे रूप अनेक जगत में उपजाये है ,
जिनकी कीर्ति गााते नर नारी सुख पाये है,
आरती शेषनारायणजी की जो सबकी हित की,
भव के दुख से छूटे सुख सम्पति पावे नीकी,
आरती शेषनारायणजी की जिनसे उत्पत्ति है सब ही की
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