Saturday, July 4, 2015

श्री जय सन्तोषी माता की आरती


जय संतोषी माता जय संन्तोषी माता
अपने सेवक जन को सुख सम्पति दाता । जय
सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्होे
हीरा पन्ना दमके तब सिंगार लीन्हो । जय
गेरू लाल छटा छवि बदन कमल सोहे
मंद हंसत करूणामयी त्रिभुवन मन मोहे । जय
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंबर ढुरे प्यारे
धूप ,दीप ,नैवेध , मधुमेवा भोग धरे न्यारे । जय
गुण , अरू , चना परम प्रिय तामें संतोष कियो
संतोषी कहलाई भक्तन विभव दियो । जय
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही
भक्त मण्डली आई कथा सुनत मोही । जय
मंदिर जगमग ज्योति मंगल ध्वनि छाई
विनय करें हम बालक चरनन सिर नाई । जय
भक्ति भाव मय पूजा अंगीकृत कीजे
जो मन बसे हमारे इच्छा फल दीजे । जय
दुःखी दरिद्री रोगी संकट मुक्त कियो
बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दियो । जय
ध्यान धरो जाने तेरो मनवांछित पायो
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो । जय
शरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे ,
संकट तू ही निवारे दयामयी मां अम्बे । जय
संतोषी मां की आरती जो कोई नर गावे
रिध्दि सिध्दि सुख सम्पति जी भरके पावे । जय

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