एक बार पार्वतीजी शंकर भगवान के साथ पीयर जाने को निकली । तो शिवजी बोल्या कि मे भी आपके साथ चलू ,तब पार्वती जी बोली मैं आपके साथ नही चलू मेरे को शर्म आएगी तो शिवजी बोल्या घूघंट निकाल लेना पार्वतीजी बोली मेरे को तो गर्मी लगे इतनो कहकर पतला कपड़ा ओढ़कर दोनों पियर जाने लगे रास्ते में एक गाय उठक -बैठक कर रही थी ,जब पार्वती जी बोली कि ये गाय क्यों कष्टी शिवजी ने कहा इस गाय के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो घोड़ी उठक -बैठक कर रही थी , जब पार्वती बोली या इतनी कष्टी क्यों है शिवजी ने कहा इस घोड़ी के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो एक राजा कि नगरी मे वहा पर सब उदास बैठ्या था ढोल बाजा उलटा पड़े थे पार्वती ने पूछा यहा सारी नगरी उदास क्यों है शिवजी ने कहा रानी को बच्चो होने वाला है और वा कष्टी है इस कारण सब उदास है | पार्वती जी बोली बच्चो के लिए इतनो कष्ट देखनो पड़े , तो म्हारे तो बच्चो नही चाहिए ,आप तो गाठ दे दो महाराज | लेकिन शिवजी ने गाठ नही दी और आगे चलते गये तो पार्वती जी ने अगर आप गाठ नही दो तो मे आगे नही चलू शिवजी ने गाठ दे दी | और दोनों पीयर पहूँच गये वहा सब ओरतें पूजा कर रही थी वे सब कहने लगी शिवजी और पार्वती जी आ गये चलो पूजा करे , इधर सब सालियाँ खाना खाते वक्त शिवजी से मजाक करने लगी तो शिवजी ने पूरा ही खाना खा लिया बाकी बचा हूया नंदी के लिए ले लिया और पीपल के निचे जाकर सो गये | पार्वती माँ से बोली माँ मेरे को भूख लगी तो माँ बोली पूरा खाना तो शिवजी खा गये पार्वतीजी ने सुखा बथुआ कि रोटी खा ली और एक लोटा पानी पीकर विदा हो गई रास्ते मे शिवजी ने पूछा आप ने क्या खाया तो पार्वतीजी ने कहा जो आपने खाया वही मेने खाया और पार्वतीजी को नींद आ गई तो शिवजी ने उनके पेट कि ढकनी खोल कर देखा उसमे सूखी बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था पार्वती कि नींद खुली तब शिवजी बोले रानी क्या खाया फिर बोली जो आप ने खाया वही मेने खाया शिवजी बोले पार्वतीजी मेने आपके पेट कि ढकनी खोलकर देखी तो उसमे सूखा बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था तब पार्वतीजी बोली आज तो आपने मेरी ढकनी खोली आगे से किसी ओरत कि ढकनी नही खुलनी चाहिए |कोई को पियर गरीब होय कोई को अमीर होय | पियर कि बात ससुराल में और ससुराल कि बात पीयर में नही कहना चाहिए उस दिन से सब कि ढकनी बंद हो गई | पार्वतीजी पानी लेने गया गाँव कि सारी औरता ईश्वरजी कि पूजा करने लगी तो शिवजी ने यहा पर सुहाग कुंडा सब औरता के बाँट दियो इतना में पार्वतीजी बोली ये आपने क्या करा बान्यारी औरता तो पैर ओढ़कर अब आएगी | आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूँगी। यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से सौभाग्यवती हो जाएगी। जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वतीजी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दी। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया अब राजा कि नगरी में पहूँचे तो वहा सब दूर उत्सव हो रहा था पार्वतीजी ने पूछा यहा कैसा उत्सव शिवजी बोले रानी के लड़का हुआ इसलिए यहा ख़ुशी मनाई जा रही है तो पार्वतीजी बोली महाराज मेरी तो गाठ खोल दो मेरे को भी बच्चा चाहिए शिवजी बोले आगे चलो तो गाय खड़ी हुई बछड़ा को चाट रही थी पार्वतीजी बोली मेरी तो गाठ खोल दो शिवजी बोले आगे चलो ऐसा करते करते घर आ गया गाठ नही खुली शिवजी बारह बरस के लिए वन में चले गये एक दिन पार्वती जी बहुत उदास बैठे थे ,बैठे बैठे अपना शरीर का मैल निकालने लगे तो बहुत सा मैल इकट्ठा हो गया तब पार्वतीजी ने मैल का पुतला बनाया और अमृत को छीटा दिया छीटा डालते ही लड़का ज़िंदा हो गया | एक दिन पार्वती नहाने बैठा और लड़का को दरवाजा के पास बैठा दिया बोला कि अंदर किसी को मत आने देना यह कह कर पार्वतीजी नहाने चली गई | इधर शिवजी कि तपस्या पूरी हुई और घर आ गये तो लड़का बोला मेरी माँ नहाने गई है अंदर मत जाओ ,शिवजी बोले थारी माँ कोन है ? लड़का बोला मेरी माँ पार्वतीजी है शिवजी को बहुत क्रोध आयो और मन में सोचा कि मैं तो बारह बरस से तपस्या करने वन मे गयो, तो यह कैसे हुयो ? ऐसा कहकर लड़का कि गरदन काट दी और अंदर चले गये | शिवजी को देख पार्वती जी बोली कि मैने तो बाहर कुंवर को बैठाया था , आप अंदर कैसे आये शिवजी बोले आपके लड़को कब हुओ ? मे तो उसकी गरदन काट कर अंदर आयो | ये सुनकर पार्वतीजी विलाप करने लगी तो शिवजी ने दूत भेजा कि कोई माँ अपना बच्चा के पीठ देकर सोई हो उसकी गरदन काटकर ले आना दूत सब और घूमा परन्तु उसको कोई नही दिखा ,बस हथनी अपना बच्चा के पीठ देकर सोई थी | वह उसकी गरदन काट कर ले आयो और कुंवर के लगा दी ,अमृत के छीटा से कुंवर ज़िंदा हो गया | पार्वती जी बोली कि मेरा लड़का के तो सब चिढ़ाएगा ,तब शिवजी ने लड़का के वरदान दियो की सब लोग पहले आपके लड़का कि पूजा करेगा | इतनो सुनकर पार्वतीजी बहुत खुश हुई तभी से किसी भी काम कि शुरूआत में गणेश जी कि पूजा होती है |
Featuring some stories related to various fasts and other cultural traditions observed in India.
Wednesday, March 26, 2014
गणगोर की कहानी
एक बार पार्वतीजी शंकर भगवान के साथ पीयर जाने को निकली । तो शिवजी बोल्या कि मे भी आपके साथ चलू ,तब पार्वती जी बोली मैं आपके साथ नही चलू मेरे को शर्म आएगी तो शिवजी बोल्या घूघंट निकाल लेना पार्वतीजी बोली मेरे को तो गर्मी लगे इतनो कहकर पतला कपड़ा ओढ़कर दोनों पियर जाने लगे रास्ते में एक गाय उठक -बैठक कर रही थी ,जब पार्वती जी बोली कि ये गाय क्यों कष्टी शिवजी ने कहा इस गाय के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो घोड़ी उठक -बैठक कर रही थी , जब पार्वती बोली या इतनी कष्टी क्यों है शिवजी ने कहा इस घोड़ी के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो एक राजा कि नगरी मे वहा पर सब उदास बैठ्या था ढोल बाजा उलटा पड़े थे पार्वती ने पूछा यहा सारी नगरी उदास क्यों है शिवजी ने कहा रानी को बच्चो होने वाला है और वा कष्टी है इस कारण सब उदास है | पार्वती जी बोली बच्चो के लिए इतनो कष्ट देखनो पड़े , तो म्हारे तो बच्चो नही चाहिए ,आप तो गाठ दे दो महाराज | लेकिन शिवजी ने गाठ नही दी और आगे चलते गये तो पार्वती जी ने अगर आप गाठ नही दो तो मे आगे नही चलू शिवजी ने गाठ दे दी | और दोनों पीयर पहूँच गये वहा सब ओरतें पूजा कर रही थी वे सब कहने लगी शिवजी और पार्वती जी आ गये चलो पूजा करे , इधर सब सालियाँ खाना खाते वक्त शिवजी से मजाक करने लगी तो शिवजी ने पूरा ही खाना खा लिया बाकी बचा हूया नंदी के लिए ले लिया और पीपल के निचे जाकर सो गये | पार्वती माँ से बोली माँ मेरे को भूख लगी तो माँ बोली पूरा खाना तो शिवजी खा गये पार्वतीजी ने सुखा बथुआ कि रोटी खा ली और एक लोटा पानी पीकर विदा हो गई रास्ते मे शिवजी ने पूछा आप ने क्या खाया तो पार्वतीजी ने कहा जो आपने खाया वही मेने खाया और पार्वतीजी को नींद आ गई तो शिवजी ने उनके पेट कि ढकनी खोल कर देखा उसमे सूखी बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था पार्वती कि नींद खुली तब शिवजी बोले रानी क्या खाया फिर बोली जो आप ने खाया वही मेने खाया शिवजी बोले पार्वतीजी मेने आपके पेट कि ढकनी खोलकर देखी तो उसमे सूखा बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था तब पार्वतीजी बोली आज तो आपने मेरी ढकनी खोली आगे से किसी ओरत कि ढकनी नही खुलनी चाहिए |कोई को पियर गरीब होय कोई को अमीर होय | पियर कि बात ससुराल में और ससुराल कि बात पीयर में नही कहना चाहिए उस दिन से सब कि ढकनी बंद हो गई | पार्वतीजी पानी लेने गया गाँव कि सारी औरता ईश्वरजी कि पूजा करने लगी तो शिवजी ने यहा पर सुहाग कुंडा सब औरता के बाँट दियो इतना में पार्वतीजी बोली ये आपने क्या करा बान्यारी औरता तो पैर ओढ़कर अब आएगी | आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूँगी। यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से सौभाग्यवती हो जाएगी। जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वतीजी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दी। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया अब राजा कि नगरी में पहूँचे तो वहा सब दूर उत्सव हो रहा था पार्वतीजी ने पूछा यहा कैसा उत्सव शिवजी बोले रानी के लड़का हुआ इसलिए यहा ख़ुशी मनाई जा रही है तो पार्वतीजी बोली महाराज मेरी तो गाठ खोल दो मेरे को भी बच्चा चाहिए शिवजी बोले आगे चलो तो गाय खड़ी हुई बछड़ा को चाट रही थी पार्वतीजी बोली मेरी तो गाठ खोल दो शिवजी बोले आगे चलो ऐसा करते करते घर आ गया गाठ नही खुली शिवजी बारह बरस के लिए वन में चले गये एक दिन पार्वती जी बहुत उदास बैठे थे ,बैठे बैठे अपना शरीर का मैल निकालने लगे तो बहुत सा मैल इकट्ठा हो गया तब पार्वतीजी ने मैल का पुतला बनाया और अमृत को छीटा दिया छीटा डालते ही लड़का ज़िंदा हो गया | एक दिन पार्वती नहाने बैठा और लड़का को दरवाजा के पास बैठा दिया बोला कि अंदर किसी को मत आने देना यह कह कर पार्वतीजी नहाने चली गई | इधर शिवजी कि तपस्या पूरी हुई और घर आ गये तो लड़का बोला मेरी माँ नहाने गई है अंदर मत जाओ ,शिवजी बोले थारी माँ कोन है ? लड़का बोला मेरी माँ पार्वतीजी है शिवजी को बहुत क्रोध आयो और मन में सोचा कि मैं तो बारह बरस से तपस्या करने वन मे गयो, तो यह कैसे हुयो ? ऐसा कहकर लड़का कि गरदन काट दी और अंदर चले गये | शिवजी को देख पार्वती जी बोली कि मैने तो बाहर कुंवर को बैठाया था , आप अंदर कैसे आये शिवजी बोले आपके लड़को कब हुओ ? मे तो उसकी गरदन काट कर अंदर आयो | ये सुनकर पार्वतीजी विलाप करने लगी तो शिवजी ने दूत भेजा कि कोई माँ अपना बच्चा के पीठ देकर सोई हो उसकी गरदन काटकर ले आना दूत सब और घूमा परन्तु उसको कोई नही दिखा ,बस हथनी अपना बच्चा के पीठ देकर सोई थी | वह उसकी गरदन काट कर ले आयो और कुंवर के लगा दी ,अमृत के छीटा से कुंवर ज़िंदा हो गया | पार्वती जी बोली कि मेरा लड़का के तो सब चिढ़ाएगा ,तब शिवजी ने लड़का के वरदान दियो की सब लोग पहले आपके लड़का कि पूजा करेगा | इतनो सुनकर पार्वतीजी बहुत खुश हुई तभी से किसी भी काम कि शुरूआत में गणेश जी कि पूजा होती है |
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