एक बार पार्वतीजी शंकर भगवान के साथ पीयर जाने को निकली । तो शिवजी बोल्या कि मे भी आपके साथ चलू ,तब पार्वती जी बोली मैं आपके साथ नही चलू मेरे को शर्म आएगी तो शिवजी बोल्या घूघंट निकाल लेना पार्वतीजी बोली मेरे को तो गर्मी लगे इतनो कहकर पतला कपड़ा ओढ़कर दोनों पियर जाने लगे रास्ते में एक गाय उठक -बैठक कर रही थी ,जब पार्वती जी बोली कि ये गाय क्यों कष्टी शिवजी ने कहा इस गाय के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो घोड़ी उठक -बैठक कर रही थी , जब पार्वती बोली या इतनी कष्टी क्यों है शिवजी ने कहा इस घोड़ी के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो एक राजा कि नगरी मे वहा पर सब उदास बैठ्या था ढोल बाजा उलटा पड़े थे पार्वती ने पूछा यहा सारी नगरी उदास क्यों है शिवजी ने कहा रानी को बच्चो होने वाला है और वा कष्टी है इस कारण सब उदास है | पार्वती जी बोली बच्चो के लिए इतनो कष्ट देखनो पड़े , तो म्हारे तो बच्चो नही चाहिए ,आप तो गाठ दे दो महाराज | लेकिन शिवजी ने गाठ नही दी और आगे चलते गये तो पार्वती जी ने अगर आप गाठ नही दो तो मे आगे नही चलू शिवजी ने गाठ दे दी | और दोनों पीयर पहूँच गये वहा सब ओरतें पूजा कर रही थी वे सब कहने लगी शिवजी और पार्वती जी आ गये चलो पूजा करे , इधर सब सालियाँ खाना खाते वक्त शिवजी से मजाक करने लगी तो शिवजी ने पूरा ही खाना खा लिया बाकी बचा हूया नंदी के लिए ले लिया और पीपल के निचे जाकर सो गये | पार्वती माँ से बोली माँ मेरे को भूख लगी तो माँ बोली पूरा खाना तो शिवजी खा गये पार्वतीजी ने सुखा बथुआ कि रोटी खा ली और एक लोटा पानी पीकर विदा हो गई रास्ते मे शिवजी ने पूछा आप ने क्या खाया तो पार्वतीजी ने कहा जो आपने खाया वही मेने खाया और पार्वतीजी को नींद आ गई तो शिवजी ने उनके पेट कि ढकनी खोल कर देखा उसमे सूखी बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था पार्वती कि नींद खुली तब शिवजी बोले रानी क्या खाया फिर बोली जो आप ने खाया वही मेने खाया शिवजी बोले पार्वतीजी मेने आपके पेट कि ढकनी खोलकर देखी तो उसमे सूखा बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था तब पार्वतीजी बोली आज तो आपने मेरी ढकनी खोली आगे से किसी ओरत कि ढकनी नही खुलनी चाहिए |कोई को पियर गरीब होय कोई को अमीर होय | पियर कि बात ससुराल में और ससुराल कि बात पीयर में नही कहना चाहिए उस दिन से सब कि ढकनी बंद हो गई | पार्वतीजी पानी लेने गया गाँव कि सारी औरता ईश्वरजी कि पूजा करने लगी तो शिवजी ने यहा पर सुहाग कुंडा सब औरता के बाँट दियो इतना में पार्वतीजी बोली ये आपने क्या करा बान्यारी औरता तो पैर ओढ़कर अब आएगी | आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूँगी। यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से सौभाग्यवती हो जाएगी। जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वतीजी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दी। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया अब राजा कि नगरी में पहूँचे तो वहा सब दूर उत्सव हो रहा था पार्वतीजी ने पूछा यहा कैसा उत्सव शिवजी बोले रानी के लड़का हुआ इसलिए यहा ख़ुशी मनाई जा रही है तो पार्वतीजी बोली महाराज मेरी तो गाठ खोल दो मेरे को भी बच्चा चाहिए शिवजी बोले आगे चलो तो गाय खड़ी हुई बछड़ा को चाट रही थी पार्वतीजी बोली मेरी तो गाठ खोल दो शिवजी बोले आगे चलो ऐसा करते करते घर आ गया गाठ नही खुली शिवजी बारह बरस के लिए वन में चले गये एक दिन पार्वती जी बहुत उदास बैठे थे ,बैठे बैठे अपना शरीर का मैल निकालने लगे तो बहुत सा मैल इकट्ठा हो गया तब पार्वतीजी ने मैल का पुतला बनाया और अमृत को छीटा दिया छीटा डालते ही लड़का ज़िंदा हो गया | एक दिन पार्वती नहाने बैठा और लड़का को दरवाजा के पास बैठा दिया बोला कि अंदर किसी को मत आने देना यह कह कर पार्वतीजी नहाने चली गई | इधर शिवजी कि तपस्या पूरी हुई और घर आ गये तो लड़का बोला मेरी माँ नहाने गई है अंदर मत जाओ ,शिवजी बोले थारी माँ कोन है ? लड़का बोला मेरी माँ पार्वतीजी है शिवजी को बहुत क्रोध आयो और मन में सोचा कि मैं तो बारह बरस से तपस्या करने वन मे गयो, तो यह कैसे हुयो ? ऐसा कहकर लड़का कि गरदन काट दी और अंदर चले गये | शिवजी को देख पार्वती जी बोली कि मैने तो बाहर कुंवर को बैठाया था , आप अंदर कैसे आये शिवजी बोले आपके लड़को कब हुओ ? मे तो उसकी गरदन काट कर अंदर आयो | ये सुनकर पार्वतीजी विलाप करने लगी तो शिवजी ने दूत भेजा कि कोई माँ अपना बच्चा के पीठ देकर सोई हो उसकी गरदन काटकर ले आना दूत सब और घूमा परन्तु उसको कोई नही दिखा ,बस हथनी अपना बच्चा के पीठ देकर सोई थी | वह उसकी गरदन काट कर ले आयो और कुंवर के लगा दी ,अमृत के छीटा से कुंवर ज़िंदा हो गया | पार्वती जी बोली कि मेरा लड़का के तो सब चिढ़ाएगा ,तब शिवजी ने लड़का के वरदान दियो की सब लोग पहले आपके लड़का कि पूजा करेगा | इतनो सुनकर पार्वतीजी बहुत खुश हुई तभी से किसी भी काम कि शुरूआत में गणेश जी कि पूजा होती है |
Featuring some stories related to various fasts and other cultural traditions observed in India.
Wednesday, March 26, 2014
गणगोर की कहानी
एक बार पार्वतीजी शंकर भगवान के साथ पीयर जाने को निकली । तो शिवजी बोल्या कि मे भी आपके साथ चलू ,तब पार्वती जी बोली मैं आपके साथ नही चलू मेरे को शर्म आएगी तो शिवजी बोल्या घूघंट निकाल लेना पार्वतीजी बोली मेरे को तो गर्मी लगे इतनो कहकर पतला कपड़ा ओढ़कर दोनों पियर जाने लगे रास्ते में एक गाय उठक -बैठक कर रही थी ,जब पार्वती जी बोली कि ये गाय क्यों कष्टी शिवजी ने कहा इस गाय के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो घोड़ी उठक -बैठक कर रही थी , जब पार्वती बोली या इतनी कष्टी क्यों है शिवजी ने कहा इस घोड़ी के बच्चो होने वाला है ,इसलिए या इतनी कष्टी है |पार्वती जी कहने लगी इतनो दुख होवे तो म्हारे बच्चो नही चाहिए म्हारे तो गांठ दे दो ,शिवजी बोले आगे चलो | आगे गया तो एक राजा कि नगरी मे वहा पर सब उदास बैठ्या था ढोल बाजा उलटा पड़े थे पार्वती ने पूछा यहा सारी नगरी उदास क्यों है शिवजी ने कहा रानी को बच्चो होने वाला है और वा कष्टी है इस कारण सब उदास है | पार्वती जी बोली बच्चो के लिए इतनो कष्ट देखनो पड़े , तो म्हारे तो बच्चो नही चाहिए ,आप तो गाठ दे दो महाराज | लेकिन शिवजी ने गाठ नही दी और आगे चलते गये तो पार्वती जी ने अगर आप गाठ नही दो तो मे आगे नही चलू शिवजी ने गाठ दे दी | और दोनों पीयर पहूँच गये वहा सब ओरतें पूजा कर रही थी वे सब कहने लगी शिवजी और पार्वती जी आ गये चलो पूजा करे , इधर सब सालियाँ खाना खाते वक्त शिवजी से मजाक करने लगी तो शिवजी ने पूरा ही खाना खा लिया बाकी बचा हूया नंदी के लिए ले लिया और पीपल के निचे जाकर सो गये | पार्वती माँ से बोली माँ मेरे को भूख लगी तो माँ बोली पूरा खाना तो शिवजी खा गये पार्वतीजी ने सुखा बथुआ कि रोटी खा ली और एक लोटा पानी पीकर विदा हो गई रास्ते मे शिवजी ने पूछा आप ने क्या खाया तो पार्वतीजी ने कहा जो आपने खाया वही मेने खाया और पार्वतीजी को नींद आ गई तो शिवजी ने उनके पेट कि ढकनी खोल कर देखा उसमे सूखी बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था पार्वती कि नींद खुली तब शिवजी बोले रानी क्या खाया फिर बोली जो आप ने खाया वही मेने खाया शिवजी बोले पार्वतीजी मेने आपके पेट कि ढकनी खोलकर देखी तो उसमे सूखा बथुआ कि रोटी और एक लोटा पानी था तब पार्वतीजी बोली आज तो आपने मेरी ढकनी खोली आगे से किसी ओरत कि ढकनी नही खुलनी चाहिए |कोई को पियर गरीब होय कोई को अमीर होय | पियर कि बात ससुराल में और ससुराल कि बात पीयर में नही कहना चाहिए उस दिन से सब कि ढकनी बंद हो गई | पार्वतीजी पानी लेने गया गाँव कि सारी औरता ईश्वरजी कि पूजा करने लगी तो शिवजी ने यहा पर सुहाग कुंडा सब औरता के बाँट दियो इतना में पार्वतीजी बोली ये आपने क्या करा बान्यारी औरता तो पैर ओढ़कर अब आएगी | आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूँगी। यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से सौभाग्यवती हो जाएगी। जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वतीजी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दी। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया अब राजा कि नगरी में पहूँचे तो वहा सब दूर उत्सव हो रहा था पार्वतीजी ने पूछा यहा कैसा उत्सव शिवजी बोले रानी के लड़का हुआ इसलिए यहा ख़ुशी मनाई जा रही है तो पार्वतीजी बोली महाराज मेरी तो गाठ खोल दो मेरे को भी बच्चा चाहिए शिवजी बोले आगे चलो तो गाय खड़ी हुई बछड़ा को चाट रही थी पार्वतीजी बोली मेरी तो गाठ खोल दो शिवजी बोले आगे चलो ऐसा करते करते घर आ गया गाठ नही खुली शिवजी बारह बरस के लिए वन में चले गये एक दिन पार्वती जी बहुत उदास बैठे थे ,बैठे बैठे अपना शरीर का मैल निकालने लगे तो बहुत सा मैल इकट्ठा हो गया तब पार्वतीजी ने मैल का पुतला बनाया और अमृत को छीटा दिया छीटा डालते ही लड़का ज़िंदा हो गया | एक दिन पार्वती नहाने बैठा और लड़का को दरवाजा के पास बैठा दिया बोला कि अंदर किसी को मत आने देना यह कह कर पार्वतीजी नहाने चली गई | इधर शिवजी कि तपस्या पूरी हुई और घर आ गये तो लड़का बोला मेरी माँ नहाने गई है अंदर मत जाओ ,शिवजी बोले थारी माँ कोन है ? लड़का बोला मेरी माँ पार्वतीजी है शिवजी को बहुत क्रोध आयो और मन में सोचा कि मैं तो बारह बरस से तपस्या करने वन मे गयो, तो यह कैसे हुयो ? ऐसा कहकर लड़का कि गरदन काट दी और अंदर चले गये | शिवजी को देख पार्वती जी बोली कि मैने तो बाहर कुंवर को बैठाया था , आप अंदर कैसे आये शिवजी बोले आपके लड़को कब हुओ ? मे तो उसकी गरदन काट कर अंदर आयो | ये सुनकर पार्वतीजी विलाप करने लगी तो शिवजी ने दूत भेजा कि कोई माँ अपना बच्चा के पीठ देकर सोई हो उसकी गरदन काटकर ले आना दूत सब और घूमा परन्तु उसको कोई नही दिखा ,बस हथनी अपना बच्चा के पीठ देकर सोई थी | वह उसकी गरदन काट कर ले आयो और कुंवर के लगा दी ,अमृत के छीटा से कुंवर ज़िंदा हो गया | पार्वती जी बोली कि मेरा लड़का के तो सब चिढ़ाएगा ,तब शिवजी ने लड़का के वरदान दियो की सब लोग पहले आपके लड़का कि पूजा करेगा | इतनो सुनकर पार्वतीजी बहुत खुश हुई तभी से किसी भी काम कि शुरूआत में गणेश जी कि पूजा होती है |
Sunday, March 16, 2014
गणेशजी की कहानी
एक मेंढ़क - मेंढ़की सरवर कि पाल पर रहते थे मेंढ़क दिनभर टर्र टर्र करता था तो मेंढ़की बोली कि मरया टर्र टर्र क्यों करे जय विनायक , जय विनायक कर | अब राजा के बेल का पाँव टुट्यो तो सरवर कि पाल को गारा लाकर बरतन में भरकर चढ़ा दियो | उस गारा में मेंढ़क - मेंढ़की दोनों ही आ गया और उबलने लगे मेंढ़क बोला में तो मरने लगा , मेंढ़की बोली मेने तो पहले ही कहा था टर्र टर्र छोड़ जय विनायक बोल तो मेंढ़क जय विनायकजी , जय विनायकजी बोलने लगा तो वह बरतन टूट गया और दोनों पाल पर जाकर बैठ गये | है विनायक जी उसको टूटे ऐसे सबको टूटना |
कहानी के बाद बोलना
आड़ी-बाड़ी सोना कि बाड़ी , जीमे बैठी कान कुमाड़ी,
कान कुमाड़ी काई मांगे ,छतीस ही करोड़ देवता की |
बाडीजी सिया काई होवे अन्न होय ,धन होय, लाज होय ,
लक्ष्मी होवे , बिछड्या न मेलो होय , निपुत्र ने पुत्र होय
सासू को पुरसन , बहू को जीमन , उठ भाई तपसी जीम भाई लपसी
भाई को थान,भाभी को मान थारे थारी बार्ता को फल
और मारे बरत को फल |
कान कुमाड़ी काई मांगे ,छतीस ही करोड़ देवता की |
बाडीजी सिया काई होवे अन्न होय ,धन होय, लाज होय ,
लक्ष्मी होवे , बिछड्या न मेलो होय , निपुत्र ने पुत्र होय
सासू को पुरसन , बहू को जीमन , उठ भाई तपसी जीम भाई लपसी
भाई को थान,भाभी को मान थारे थारी बार्ता को फल
और मारे बरत को फल |
Saturday, March 15, 2014
(बैशाख माह) चतुर्थी की कहानी
एक साहूकार थो , उसका एक बेटा और एक बहु थी तो वा रोज रोटी बनाकर जीम कर बाहर आती तो पड़ोसन पूछती बहु कई जिम्या तो वो बोली ठंडो-- बासो | ऐसा करते करते बहुत दिन हो गया | एक दिन उस साहूकार का बेटा ने सुन्यो तो वो बोल्यो कि माँ आज तो मेहमान आवेगा,सो अच्छा--अच्छा भोजन बनाओ तो माँ ने अच्छा अच्छा पकवान बनाया और बेटा से बोली कि बुला थारा मेहमान के | जब वो बोल्यो माँ चार थाली लगाओ अपन ही मेहमान है चारो जना साथ जीमने बैठ्या | जीमकर बाहर निकली कि बहु जिमी हां पड़ोसन जिमी , कई जिमी तो बहु बोली ठण्डी बासी | तब वो लड़को बोल्यो आज तो म्हारा साथ मे जीमने बेठी काई बात है ? जब वो अपनी औरत से बोल्यो कि तू रोज या काई बात बोले है कि ठंडो --बासी जब वा बोली कि आपकी कमाई नही , आपका बाप कि कमाई नही या तो बड़ा बूढ़ा कि कमाई है ,जिस दिन आप कमाओगा उस दिन ताजा भोजन होवेगा |
एक दिन वो लड़को बोल्यो कि माँ में तो विदेश कमाने जाऊगा | माँ ने मना कियो कि बेटा अपना घर में ही खूब धन है तू बाहर मत जा |तो भी वो लड़का माना नहीं और विदेश चला गया और अपनी औरत के बोल के गया कि मे जब तक नही आउ तब तक दिया कि और चूल्हा दोनों की आग नही बुझनी चाहिए | अब एक दिन दोनों कि आग बुझ गई तो वा दौड़ी--दौड़ी पड़ोसन के यहा आग लेने गई तो पड़ोसन चौथ कि पूजा कर रही थी , तो बहु बोली कि म्हारे जल्दी से आग दे दो म्हारी सासू आवेगी तो लड़ेगी और म्हारा घर वाला कमाने बहार गया है वा बहु बोली कि चौथ कि पूजा से कई होवे ? वा बोली पूजा से अन्न होय,धन्न होय ,लक्ष्मी होय ,बर्कत होय, निपुत्र के पुत्र होय ,बिछड़ा ने मेल होय |तब बहु बोली कि म्हारे कैसे मालूम पड़ेगी कि आज चौथ है | म्हारी सासु तो कही भी बाहर नही जाने देवे और म्हारे आदमी भी बाहर गया है अभी तक कोई खबर नही है पड़ोसन बोली कि तू तो चौथमाता को बरत कर और उसी दिन से रोज एक टिपकी दीवाल पर लगा दे | ऐसी तीस टिपकी पूरी हो जाय तो उस दिन चौथ को बरत कर लीजे जब से वा हमेशा चौथ करती | चौथ का दिन दमड़ी को घी और गुड लाकर अपना घर पर चौथ मांडकर पूजा करती और रात को चंद्रमा को अरग देकर जीमती उसकी सासु चार टाइम खाना देती थी चौथ का दिन एक टाइम पनिहारी के देती ,एक टाइम पाड़ा के देती , एक टाइम कि बाड़ा में गढ़ा खोद गाड़ देती और चौथी टाइम कि जीम लेती थी |
अब उसको चौथ करते करते बहुत दिन हो गया एक दिन उसका आदमी के चौथ माता ने सपनो दियो कि मानवी सूतो कि जागे मे तो सूतो भी नी और जागू भी नी चिंता में मे पड़ा हूँ थारी चिंता मिटा और घर जा वहा पर सब तेरा इन्तजार कर रहे है वो आदमी बोल्यो माता में घर कैसे जाऊ मेरा लेना देना बहुत बाकी है चौथमाता बोली सुबह उठकर कंकु , केशर का पग लिया ,मांडकर बैठ जाजे तो लेने वाला ले जायेगा और देने वाला दे जाएगा सुबह उठ कर बैठ गयो लेने वाला ले गया और देनेवाला दे गया |
अब वह अपने घर के लिए निकला रास्ते में एक साँप जलने के लिए जा रहा था उस साहूकार ने उसको हटा दिया सर्प ने कहा मेरी तो उम्र पूरी हो गई थी और मे जलने जा रहा था तब वो बोल्यो कि अभी मत डस म्हारे घर जाने दे सर्प ने कहा वचन दे उसने वचन दिया अब वह घर आयो और आकर उदास बैठ गयो और चुपचाप सो गयो तब वा ओरत बोली कि आप इतना दिन के बाद आये हो तो भी चुपचाप हो क्या बात है क्या बात है | तब वो आदमी बोलो कि मैं कुछ देर का मेहमान हूँ म्हारा बेरी दुश्मन को सही देकर आयो हूँ वो म्हारे डसेगा उसकी औरत बहुत तेज थी उसके आदमी के तो नींद आ गई ,वह उठी और अपना बरामदा कि सात सीडी धोई और सजादी पहली पे रेत बिछाई दूसरी पर अबीर ,तीसरी पर फूल चौथी पर केशर ,पाँचवी पर लड्डू , छठवीं पर गादी , सातवी पर दूध | इस प्रकार सात ही सीडी सजादी आधी रात को फूकरता हुआ आया पहले तो खूब रेत में लोट लगाई और बोला कि है साहूकार के बेटा कि बहु सुख तो खूब दिया पर वचन को बाँधो हूँ डसो गो तो सही ऐसा उसने सातो ही सीडी चढतो ही गयो और बोलता गया आगे गयो तो चौथमाता , विनायक ,और चंद्रमा तीनो मिलकर उसकी रक्षा करने लगे चौथ माता ढाल बनी , विनायकजी तलवार ,और चंद्रमाजी ने उजाला करा अब वह सर्प साहूकार के बेटा के पास जाने लगा तो विनायक जी तलवार से उसकी गरदन काट दी और ढाल से ढक दी | तब वा औरत अपना आदमी से बोली चलो अपन चौपड़ पासा खेला , अपना बेरी दुश्मन मर गया है , दोनों जना चौपड़ पासा खेलने लगे , खेलते खेलते बहुत देर हो गई | गाँव में बहन रहती थी वा भाई से मिलने आई तो भाई और भाभी दोनों नही उठे तब बहन बोली माँ भाई तो थका हुआ है पर भाभी को क्या हो गया वा भाई के महल में जाने लगी तो खून की नदी बह गई वा चिल्लाई कि माँ भाई को किसी ने मार डाला | बहन कि आवाज सुनकर भाभी बोली कि बाईजी हम तो ज़िंदा है हमारा बेरी दुश्मन मरा है माँ ने वहा सफाई कराकर बेटा बहु को गाजा बाजा के साथ अपने सामने बुलाया , अब सब जना एक जगह बैठ गया भाई बोल्यो माँ मेरे जाने के बाद किसी ने धर्म पुण्य करा था तब माँ बाप बोले कि हमने कुछ नही करा जब वा औरत बोली कि मेने करा था सासु बोली कि मे तो चार टाइम खाने टाईमरोटी देती थी तब वा बोली कि आप नही मानो गा तो सबसे पूछ लो सबसे पहले पनिहारी के पास ले गई तो उसने खा हां महीने में एक बार रोटी देती थी फिर पाड़ा के पास ले गई तो पेप का फूल निकला तीसरी बार बाड़ा में गड़ा खोदकर देखा तो सोना रूपा कि रोटी हो गई अब वा बोली कि चलो साहूकार कि दूकान पर सामान को पूछलो सासु साहूकार के पास गई हां महीने में एक बार दमड़ीका घी और गुड ले जाती थी जब वासासु बहु का पाँव पड़ने लगी |
सासुजी में आपका पाँव लगूँ आप चौथ माता का पाँव पड़ो | हे चौथ माता बहु के टूट्या जैसे सबके टूटजो कहता,सुनता हूकारा भरता |
एक दिन वो लड़को बोल्यो कि माँ में तो विदेश कमाने जाऊगा | माँ ने मना कियो कि बेटा अपना घर में ही खूब धन है तू बाहर मत जा |तो भी वो लड़का माना नहीं और विदेश चला गया और अपनी औरत के बोल के गया कि मे जब तक नही आउ तब तक दिया कि और चूल्हा दोनों की आग नही बुझनी चाहिए | अब एक दिन दोनों कि आग बुझ गई तो वा दौड़ी--दौड़ी पड़ोसन के यहा आग लेने गई तो पड़ोसन चौथ कि पूजा कर रही थी , तो बहु बोली कि म्हारे जल्दी से आग दे दो म्हारी सासू आवेगी तो लड़ेगी और म्हारा घर वाला कमाने बहार गया है वा बहु बोली कि चौथ कि पूजा से कई होवे ? वा बोली पूजा से अन्न होय,धन्न होय ,लक्ष्मी होय ,बर्कत होय, निपुत्र के पुत्र होय ,बिछड़ा ने मेल होय |तब बहु बोली कि म्हारे कैसे मालूम पड़ेगी कि आज चौथ है | म्हारी सासु तो कही भी बाहर नही जाने देवे और म्हारे आदमी भी बाहर गया है अभी तक कोई खबर नही है पड़ोसन बोली कि तू तो चौथमाता को बरत कर और उसी दिन से रोज एक टिपकी दीवाल पर लगा दे | ऐसी तीस टिपकी पूरी हो जाय तो उस दिन चौथ को बरत कर लीजे जब से वा हमेशा चौथ करती | चौथ का दिन दमड़ी को घी और गुड लाकर अपना घर पर चौथ मांडकर पूजा करती और रात को चंद्रमा को अरग देकर जीमती उसकी सासु चार टाइम खाना देती थी चौथ का दिन एक टाइम पनिहारी के देती ,एक टाइम पाड़ा के देती , एक टाइम कि बाड़ा में गढ़ा खोद गाड़ देती और चौथी टाइम कि जीम लेती थी |
अब उसको चौथ करते करते बहुत दिन हो गया एक दिन उसका आदमी के चौथ माता ने सपनो दियो कि मानवी सूतो कि जागे मे तो सूतो भी नी और जागू भी नी चिंता में मे पड़ा हूँ थारी चिंता मिटा और घर जा वहा पर सब तेरा इन्तजार कर रहे है वो आदमी बोल्यो माता में घर कैसे जाऊ मेरा लेना देना बहुत बाकी है चौथमाता बोली सुबह उठकर कंकु , केशर का पग लिया ,मांडकर बैठ जाजे तो लेने वाला ले जायेगा और देने वाला दे जाएगा सुबह उठ कर बैठ गयो लेने वाला ले गया और देनेवाला दे गया |
अब वह अपने घर के लिए निकला रास्ते में एक साँप जलने के लिए जा रहा था उस साहूकार ने उसको हटा दिया सर्प ने कहा मेरी तो उम्र पूरी हो गई थी और मे जलने जा रहा था तब वो बोल्यो कि अभी मत डस म्हारे घर जाने दे सर्प ने कहा वचन दे उसने वचन दिया अब वह घर आयो और आकर उदास बैठ गयो और चुपचाप सो गयो तब वा ओरत बोली कि आप इतना दिन के बाद आये हो तो भी चुपचाप हो क्या बात है क्या बात है | तब वो आदमी बोलो कि मैं कुछ देर का मेहमान हूँ म्हारा बेरी दुश्मन को सही देकर आयो हूँ वो म्हारे डसेगा उसकी औरत बहुत तेज थी उसके आदमी के तो नींद आ गई ,वह उठी और अपना बरामदा कि सात सीडी धोई और सजादी पहली पे रेत बिछाई दूसरी पर अबीर ,तीसरी पर फूल चौथी पर केशर ,पाँचवी पर लड्डू , छठवीं पर गादी , सातवी पर दूध | इस प्रकार सात ही सीडी सजादी आधी रात को फूकरता हुआ आया पहले तो खूब रेत में लोट लगाई और बोला कि है साहूकार के बेटा कि बहु सुख तो खूब दिया पर वचन को बाँधो हूँ डसो गो तो सही ऐसा उसने सातो ही सीडी चढतो ही गयो और बोलता गया आगे गयो तो चौथमाता , विनायक ,और चंद्रमा तीनो मिलकर उसकी रक्षा करने लगे चौथ माता ढाल बनी , विनायकजी तलवार ,और चंद्रमाजी ने उजाला करा अब वह सर्प साहूकार के बेटा के पास जाने लगा तो विनायक जी तलवार से उसकी गरदन काट दी और ढाल से ढक दी | तब वा औरत अपना आदमी से बोली चलो अपन चौपड़ पासा खेला , अपना बेरी दुश्मन मर गया है , दोनों जना चौपड़ पासा खेलने लगे , खेलते खेलते बहुत देर हो गई | गाँव में बहन रहती थी वा भाई से मिलने आई तो भाई और भाभी दोनों नही उठे तब बहन बोली माँ भाई तो थका हुआ है पर भाभी को क्या हो गया वा भाई के महल में जाने लगी तो खून की नदी बह गई वा चिल्लाई कि माँ भाई को किसी ने मार डाला | बहन कि आवाज सुनकर भाभी बोली कि बाईजी हम तो ज़िंदा है हमारा बेरी दुश्मन मरा है माँ ने वहा सफाई कराकर बेटा बहु को गाजा बाजा के साथ अपने सामने बुलाया , अब सब जना एक जगह बैठ गया भाई बोल्यो माँ मेरे जाने के बाद किसी ने धर्म पुण्य करा था तब माँ बाप बोले कि हमने कुछ नही करा जब वा औरत बोली कि मेने करा था सासु बोली कि मे तो चार टाइम खाने टाईमरोटी देती थी तब वा बोली कि आप नही मानो गा तो सबसे पूछ लो सबसे पहले पनिहारी के पास ले गई तो उसने खा हां महीने में एक बार रोटी देती थी फिर पाड़ा के पास ले गई तो पेप का फूल निकला तीसरी बार बाड़ा में गड़ा खोदकर देखा तो सोना रूपा कि रोटी हो गई अब वा बोली कि चलो साहूकार कि दूकान पर सामान को पूछलो सासु साहूकार के पास गई हां महीने में एक बार दमड़ीका घी और गुड ले जाती थी जब वासासु बहु का पाँव पड़ने लगी |
चेल्यो को पानी मंगरे मत चढ़ाओ,
मंगरे का पानी चेल्या में आवे है |
सासुजी में आपका पाँव लगूँ आप चौथ माता का पाँव पड़ो | हे चौथ माता बहु के टूट्या जैसे सबके टूटजो कहता,सुनता हूकारा भरता |
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