किसी गांव में एक साहूकार रहता था। उसका घर धन धान्य से भरपूर था। किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। उसकी पत्नी बहुत कंजूस थी। किसी प्रकार का दान आदि नहीं करती थी। किसी भिक्षार्थी को भिक्षा नहीं देती थी। अपने काम काज में व्यस्त रहती थी। एक बार एक साधु महात्मा गुरुवार के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना करने लगे। वह घर को लीप रही थी। बोली – महाराज अभी तो मैं काम में व्यस्त हूँ , आप बाद में आना। साधु महाराज खाली हाथ लौट गए।कुछ दिन बाद वही साधु महाराज फिर भिक्षा मांगने आये। उस दिन वह अपने लड़के को खाना खिला रही थी। बोली इस समय तो में व्यस्त हूँ , आप बाद में आना। साधु महाराज फिर खाली हाथ चले गए।तीसरी बार फिर आये तब भी व्यस्त होने होने के कारण भिक्षा देने में असमर्थ होने की बात कहने लगी तो साधु महाराज बोले – यदि तुम्हारे पास समय ही समय हो , कुछ काम ना हो तब क्या तुम मुझे भिक्षा दोगी ?साहूकारनी बोली – यदि ऐसा हो जाये तो आपकी बड़ी कृपा होगी महात्मा बोले -मैं तुम्हे उपाय बता देता हूँ। तुम बृहस्पतिवार के दिन देर से उठना, आंगन में पौंछा लगाना। सभी पुरुषों से हजामत आदि जरूर बनवा लेने को कह देना।स्त्रियों को सर धोने को और कपड़े धोने को कह देना। शाम को अँधेरा हो जाने के बाद ही दीपक जलाना। बृहस्पतिवार के दिन पीले कपड़े मत पहनना और कोई पीले रंग की चीज मत खाना। ऐसा कुछ समय करने से तुम्हारे पास समय ही समय होगा। तुम्हारी व्यस्तता समाप्त हो जाएगी। घर में कोई काम नहीं करना पड़ेगा।साहूकारनी ने वैसा ही किया। कुछ ही समय में साहूकार कंगाल हो गया। घर में खाने के लाले पड़ गए। साहूकारनी के पास अब कोई काम नहीं था , क्योंकि घर में कुछ था ही नहीं।कुछ समय बाद वही महात्मा फिर आये और भिक्षा मांगने लगे। साहूकारनी बोली महाराज घर में अन्न का एक दाना भी नहीं है। आपको क्या दूँ। महात्मा ने कहा – जब तुम्हारे पास सब कुछ था तब भी तुम व्यस्त होने के कारण कुछ नहीं देती थी। अब व्यस्त नहीं हो तब भी कुछ नहीं दे रही हो। आखिर तुम चाहती क्या हो सेठानी हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी – महाराज मुझे क्षमा करें। मुझसे भूल हुई। आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करुँगी। कृपया ऐसा उपाय बताओ की वापस मेरा घर धान्य से भरपूर हो जाये।महाराज बोले – जैसा पहले बताया था उसका उल्टा करना है। बृहस्पतिवार के दिन जल्दी उठना है , आंगन में पोछा नहीं लगाना है। केले के पेड़ की पूजा करनी है। पुरुषों को हजामत आदि नहीं बनवानी है। औरतें सिर ना धोये और कपड़े भी न धोये। भिक्षा दान आदि जरूर देना।शाम को अँधेरा होने से पहले दीपक जलाना। पीले कपड़े पहनना। पीली चीज खाना। भगवान बृहस्पति की कृपा से सभी मनोकामना पूरी होंगी। सेठानी ने वैसा ही किया। कुछ समय बाद उसका घर वापस धन धान्य से भरपूर हो गया।
Featuring some stories related to various fasts and other cultural traditions observed in India.
Friday, November 22, 2019
Thursday, November 14, 2019
कार्तिक पूर्णिमा की कहानी
दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा।
तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।
तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।
अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।
चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।
दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।
Friday, November 8, 2019
देवउठनी एकादशी व्रत की कहानी
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था।
एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।
उस व्यक्ति ने उस समय 'हाँ' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊँगा। मुझे अन्न दे दो।राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुँचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुँचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूँगा।
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए।
यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।
उस व्यक्ति ने उस समय 'हाँ' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊँगा। मुझे अन्न दे दो।राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुँचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुँचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूँगा।
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए।
यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
Thursday, November 7, 2019
तुलसी जी की कहानी
तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर
आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प
नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे
ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे
सती हो गयी थी.
उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में
बिना तुलसी जी के भोग
स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में
किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !
Thursday, October 10, 2019
लक्ष्मी जी की कहानी
एक साहुकार था उसकी एक लडकी थी।वह रोज पीपल मे पानी डालने जाती थी पीपल के वृक्ष मे से लक्ष्मी जी नीकलती और बोलती आम्बा केरी बिजली,सावन केरी तीज, गुलाब केरो रंग ऐसा लक्ष्मी को रूप फुलती निकलती।साहुकार की बेटी से कहती की तु मेरी सहेली बन जा तो उसने कहा मे पिताजी से पुछ कर बनुगी दुसरे दिन उसने पिताजी को सारी बातें बताई तो पिताजी ने कहा वह तो लक्ष्मी जी हैं वह कहे तो बन जा अब वह लक्ष्मी जी की सहेली बन गई एक दिन लक्ष्मी जी ने सहेली को जीमने के लिए बुलाया सहेली ने पिताजी को बताया और चली गई लक्ष्मी जी ने सोना का चोक बिछाया और छत्तीस प्रकार का पकवान बनाया और सहेली को खिलाया जब वह जीम कर जाने लगी तो लक्ष्मी जी ने साडी का पल्ला पकड लीया और बोली कि मे भी तेरे घर जीमने आऊँगी वा बोली कि आप सबेरे आना अब घर जा कर वा उदास बैठ गई पिताजी बोले बेटी उदास क्यो हैं तो उसने कहाँँ लक्ष्मी जी सबेरे जीमने आयेगी लक्ष्मी जी ने तो मेरी बहुत मेहमान नवाजी करी थी और मेरे पास तो कुछ भी नहीं हैपिताजी ने कहा इतनी फिकर क्यो करे हैं जो अपने घर में है वही रसोई जीमाजे तू गोबर से लीपकर चोक माँडकर दिया जलाकर लक्ष्मी जी को नाम लेकर बैठ गई अब एक चील कही से नौ लखा हार उठाकर लाई और साहुकार के घर में डाल दिया अब साहुकार की बेटी ने उसमे से एक मोती निकाल कर बेच दिया और उससे सोना की चोकी ,छत्तीस तरह का पकवान ले आई अब आगे आगे गणेश जी और उसके पिछे लक्ष्मी जी आये लडकी ने पाटा बिछाया और बोली सहेली इस पर बैठ जा वह बैठ गई उसने लक्ष्मी जी को प्रेम से भोजन कराया अब लक्ष्मी जी जाने लगी उसने कहा मै बहार होकर आऊ जब तक यही बैठ जे अब वा लडकी गई तो वापस ही नही आई लक्ष्मी जी वहा बैठी रह गई और उसके घर में बहुत धन हो गया हे लक्ष्मी माता उस साहुकार केए पाटा पर बैठी वेसी सबके पाटा पर बैठ जे
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Thursday, October 3, 2019
बुद्ध अष्टमी की कहानी
एक ब्राह्मण के बुद्ध नाम का बेटा और बुद्धनी नाम की बेटी थी। वह सब लोगो का गेहूँ पीसती और उसमे से पाव भर आटा नीकाल लेती ।एक दिन बुद्धनी ने अपनी माँ से बोला ये काम अच्छा नही है आप पावभर आटा चोर कर रख ले ती हो अब एक बार बुद्धनी की माँ पीयर गई और बुद्धनी को बोल कर गई की जो भी गेहूँ पीसाने आये उसमे से पावभर आटा नीकाल लेना पर बुद्धनी ऐसा नही करा उसने पूरा आटा दे देती थी अब उसकी मां पीयर से आई तो सब लोग उसे चोटी बोलने लगे अब उससे कोई भी गेहूँ नही पीसवाता ,अब उसने बुद्धनी को बहुत मारा और घर से बाहर निकाल दिया और लडका के सपना दिया की तेरी बहन की कुत्ता से शादी कर दे लडका ने बुद्धनी की कुत्ता से शादी कर दी अब सब लोग हँसने लगे की चोरनी की लडकी की शादी कुत्ता से हो रही हैं तब भगवान ने कुत्ता का रूप छोडकर असली रूप में आ गये तब सब लोगो को आशचर्य हुआ अब भगवान एक कोठरी की चाबी दे दी और दुसरी कोठरी की चाबी नही दी अब लडकी ने जीद करके चाबी ले ली और खोल कर देखा तो बुद्धनी की माँ कीडे के कुण्ड मे पडी थी उसने भगवान से कहा मेरी माँ को मुक्ति दे दो यह तो अपने करम को भोग रही हैं तब भगवान ने उसको मुक्ति दी और बैकुन्ठ मे भेज दिया और सारे गावँ मे ढिडोरा पीट दिया कि कोई भी काम करो पर उसमे चोरी मत करो नही तो बुद्धनी की माँ जैसा हाल हो जाये गा।हे भगवान बुद्धनी की माँ की मुक्ति करी वेसी सबकी करजो।
Tuesday, October 1, 2019
बुद्ध अष्टमी के व्रत की विधी
शुक्ल पक्ष में बुधवार की अष्टमी के दिन यह व्रत करते हैं आठ अष्टमी होने के बाद इसका उघापन करते हैं सोने की मुर्ति बनवाकर उसकी पूजा करनी चाहिए आठ दिन उपवास करके आठ फल चढाना इसके बाद आठ आठ तरह की सब चीज देना चाहिए।जैसे गोमुखी माला छत्री चप्पल कपडा आदी।
Tuesday, September 24, 2019
गाज माता की कहानी
भादव के महीने में अनंत चौदस के दिन आयो ।एक राजा और रानी थी,एक भील भीलनी थी।एक धोबन आई और रानी व भीलनी दोनो के कपडे लेकर चली गई दुसरा दिन वा कपडा लेकर आई तो दोनो कि साडी आपस में बदल गई जब भीलनी ने रानी की साडी़ पहनी तो रानी ने धोबन से पुछो की मेरी जैसी साड़ी इसके पास कहा से आई और रानी भीलनी के पास गई और पुछयो तब वा बोली म्हारै तो गाज माता टूटी।तब रानी बोली ऐसो करने से काई होवे वा बोली अन्न धन्न लक्ष्मी आवे हैंं
राजा रानी दोनो बरत करने लग्या।भीलनी बोली बरत करने के बाद यो बरत टूटे नही।थोडा दिन बाद रानी के लड़को हुयो गांव में गाजा बाजा हुआ,धूम धाम से उत्सव मनाया पीछे गाज माता को दिन आयो वा पडोसन से पुछने गई कि मे तो छोटा बालक की माँ हूँ रोट खाऊ तो बालक को पेट दुखे।जब वा पडो़सन बोली की कारयो कसार और मोगरयो मगदं करके खा लीजे। गाज माता के बहुत क्रोध आयो,रात का बारह बजे गाजती घोरती आई और रानी को लडको पालना में से उठाकर ले गई जब रानी ने लडका के पालना में नही दिख्यो तो वा रोने लगी सब बालक के ढूढने लग्या बालक नही मील्यो,रानी बोली भीलनी ने बताओ तब भीलनी आई और उसके पुछयो ,जब भीलनी ने सच बात मालुम पडी तब वा बोली रानी ने बरत भंग करयो हैं अब वही भादव मास आयो अनंत चतुर्दशी को दिन आयो रानी ने कच्चा सूत का डोरा मंगाया और चौदह डोरा गिनकर अपना गला में बाँध लिया दूसरा दिन बडा ठाट बाट से गाज माता की पूजा करी,खीर रोट बनाया और राजा रानी जीम्या हैं अब आधी रात के गाज माता राजा का लडका ने पालना मे लाकर सुला दियो हैं।हे गाज माता उस रानी के टूटी,ऐसे सबके टूटजो कहता ,सुनता हुकारा भरता।अधुरी होय तो पूरी करजो पूरी होय तो मान करजो।
राजा रानी दोनो बरत करने लग्या।भीलनी बोली बरत करने के बाद यो बरत टूटे नही।थोडा दिन बाद रानी के लड़को हुयो गांव में गाजा बाजा हुआ,धूम धाम से उत्सव मनाया पीछे गाज माता को दिन आयो वा पडोसन से पुछने गई कि मे तो छोटा बालक की माँ हूँ रोट खाऊ तो बालक को पेट दुखे।जब वा पडो़सन बोली की कारयो कसार और मोगरयो मगदं करके खा लीजे। गाज माता के बहुत क्रोध आयो,रात का बारह बजे गाजती घोरती आई और रानी को लडको पालना में से उठाकर ले गई जब रानी ने लडका के पालना में नही दिख्यो तो वा रोने लगी सब बालक के ढूढने लग्या बालक नही मील्यो,रानी बोली भीलनी ने बताओ तब भीलनी आई और उसके पुछयो ,जब भीलनी ने सच बात मालुम पडी तब वा बोली रानी ने बरत भंग करयो हैं अब वही भादव मास आयो अनंत चतुर्दशी को दिन आयो रानी ने कच्चा सूत का डोरा मंगाया और चौदह डोरा गिनकर अपना गला में बाँध लिया दूसरा दिन बडा ठाट बाट से गाज माता की पूजा करी,खीर रोट बनाया और राजा रानी जीम्या हैं अब आधी रात के गाज माता राजा का लडका ने पालना मे लाकर सुला दियो हैं।हे गाज माता उस रानी के टूटी,ऐसे सबके टूटजो कहता ,सुनता हुकारा भरता।अधुरी होय तो पूरी करजो पूरी होय तो मान करजो।
Saturday, September 21, 2019
पीपल की कहानी
एक ननंद भाभी थी। वे रोज पीपल सीचने जाती और पीपल से वा भाभी कहती हे पीपल माता म्हारे एक लड़को दीजे तो वा ननंद कहती कि जो म्हारी भाभी के देवे वो म्हारे दीजे तो वा भाभी के नो महीना बाद लड़को हुयो और ननंद की हथेली मे छालो पडकर लडको हुयो।सब कहने लग्या कि क्वारी के लडको हुयो। तब वा बोली कि मे तो म्हारी भाभी के साथ पीपल सीचनें जाती तो कहती कि म्हारी भाभी के देवो म्हारे दीजो भाभी के नो महीना बाद लडको हुयो और म्हारी हथेली में छालो पडकर लड़को हुयोअब उसको ब्याह कर दियो वा ससुराल चली गई दोनो लडका भाभी रखतीतो ननंद का लडका के झुला मे सुलातीबोलती किबिना बाप का कानजथे दोड कँहा से आया तब उसका आदमी बोल्यो कि मे तो बैठयो हूँ तू ऐसी बात केसे बोले तब वा बोली की ये बाई जी का कवंर हैं इनको बोलूतब उसके समझ पडी हैं पीपल माता उसकी हथेली में छालो होकर लडको हुयो तो वेसा काम करके पूरा करजे और भाभी के लडको हुयो वैसा सबके होजे कहता सुनता हुकारा भरता
Saturday, June 15, 2019
नाग पंचमी की कहानी
एक साहूकार थो ।उसके सात लड़का और सात बहुआ थी उनमे से छे के तो पियर थो और सबसे छोटी बहु का पियर नहीं थो अब सावन को महीनो आयो और नाग पंचमी को दिन आयो अब सब बहुो तो पियर गई पर छोटी बहु पियर नहीं गई वा घर पर उदास बैठी थी, वा मन में सोच रही थी म्हारे पियर नहीं है | हे नाग देवता म्हारे भी पियर दीजो, इतना कहते ही नाग देवता ने दया करी, नाग ब्राह्मण को रूप धरकर उसके घर आये और उसके ससुरजी से बोल्ये की में आपकी छोटी बहु को भाई हु इतना दिन तो में विदेश में रहतो थो कोई एक दूसरा के नहीं पहचाने में वह आयो तो तब मालूम पड्यो की म्हारी बहना यहाँ रहवे में उनके लेने आयो हु तब उसका ससुरजी ने छोटी बहु के उसके साथ भेज दी । अब बहन मन में विचार करे की भाई म्हारे कहाँ ले जावे गा अब नाग देवता को घर को रास्तो आयो और उसने एक दम नाग को रूप धारण कर लियो । अब व बहन डरने लगी ,तब नाग देवता बोल्या की तू डर मत तूने म्हारे याद करयो , तभी में थारे लेने आयो हु म्हारी पूछ पकड़ कर म्हारे पीछे पीछे आजा औ
नाग देवता घर गया और ओरत से बोल्या की म्हारी बहन है , इसके अच्छी तरह से रखजो , दुःख मत दीजो ।अब बहन वाह पर रहने लगी अब एक दिन नागिन को जापो हुआ और वा बहन दिवलो लेकर उसके पास देखने गई तो डर के मारे दिवलो हाथ से गिर पड्यो तो नागिन के बच्चा की पूछ जल गई तो नागिन को बहुत गुस्सा आयो , तो व अपने आदमी से बोली की आपकी बहन के सुसराल भेज दो तो नाग देवता ने उसको बहुत सो धन देकर अच्छी तरह से बिदा करी जब से उसका पियर हो गया और उसको लड़का मस्ती बहुत करते थो तोड़ फोड़ भी बहुत करतो थो तब जेठानी देरानी ताना मारती की थारा नाना मामा तो बहुत लखपति है सोना रूपा को ही सामान दे तो उसका भाई भतीजा सुनता और माँ से बोलता तो माँ सभी सामान भेज देती और वे ऊपर से सभी सामान पटक देता माँ बोलती बेटा मत जाया करो बस वा तो नाग पंचमी का दिन दीवाल पर नाग देवता का चित्र मांडकर पूजा करती भोग लगती और प्रार्थना करती है ।
नाग देवता म्हारेजैसा भी खांडा बांडा भाई भतीजा होवे उनके राजी ख़ुशी रख जो । है नाग देवता उसके पियर दियो ऐसे सबको दीजो
नाग देवता घर गया और ओरत से बोल्या की म्हारी बहन है , इसके अच्छी तरह से रखजो , दुःख मत दीजो ।अब बहन वाह पर रहने लगी अब एक दिन नागिन को जापो हुआ और वा बहन दिवलो लेकर उसके पास देखने गई तो डर के मारे दिवलो हाथ से गिर पड्यो तो नागिन के बच्चा की पूछ जल गई तो नागिन को बहुत गुस्सा आयो , तो व अपने आदमी से बोली की आपकी बहन के सुसराल भेज दो तो नाग देवता ने उसको बहुत सो धन देकर अच्छी तरह से बिदा करी जब से उसका पियर हो गया और उसको लड़का मस्ती बहुत करते थो तोड़ फोड़ भी बहुत करतो थो तब जेठानी देरानी ताना मारती की थारा नाना मामा तो बहुत लखपति है सोना रूपा को ही सामान दे तो उसका भाई भतीजा सुनता और माँ से बोलता तो माँ सभी सामान भेज देती और वे ऊपर से सभी सामान पटक देता माँ बोलती बेटा मत जाया करो बस वा तो नाग पंचमी का दिन दीवाल पर नाग देवता का चित्र मांडकर पूजा करती भोग लगती और प्रार्थना करती है ।
नाग देवता म्हारेजैसा भी खांडा बांडा भाई भतीजा होवे उनके राजी ख़ुशी रख जो । है नाग देवता उसके पियर दियो ऐसे सबको दीजो
नाग पंचमी की विधि
यह लगते सावन पंचमी का दिन है । इस दिन सब नाग की पूजा करे ,नाग को दूध पिलावे , दीवाल पर नाग मांडे और पूजा करे
Saturday, February 16, 2019
प्रदोष व्रत
एक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है। एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ?
दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था। उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया। पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया। बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया
कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देव योग से देव मंदिर गई, जहाँ उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई।ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी।
ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है।
कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया। कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।
राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी। उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया। राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया।
- कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था। उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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