चिमटी में चावल, चिमटी में दूध , एक
ब्राहाण को लड़को नगरी में आयो और कहने लग्यो कि कोई भाई म्हारे खीर कर दो पूरी नगरी
में फिरयो पर कोई ने हामी नही भरी | एक बुढ़िया
बैठी थी , वा बोली मै कर दू | वा छोटा सा बरतन में करने लगी तो वो लड़को बोल्यो कि माँ
तू तो छोटा बरतन में मत कर, बड़ी कडाई चढ़ा दे, ऐसो कहके वो लड़को चल्यो गयो और खेलने
लग्यो | जब खीर उफनने लगी वा तो उफनती बंद ही नि होवे तो डोकरी कि बहू ने एक कटोरा
में खीर ठंडी करके और दरवाजा का पीछे से जै विनायकजी भोग लग | जो ऐसो कहकर के खीर पिली
डोकरी बोली चल रे गणेशा खीर पीले झट गणेशजी आया और डोकरी से बोल्या माँ थारी बहु ने म्हारे भोग लगाकर दरवाजा का पीछे खीर पिली अब तू
सारी नगरी के जमा दे | डोकरी ने सारी नगरी
नोत दी | और जिमाने लगी सब जीम गया फिर भी किनार खाली नही हुई |
डोकरी बोली कि महाराज सब जीम गया फिर भी खीर बहुत है जै विनायकजी महाराज खीर के छेवनही आयो वेसो म्हारा घर को छेव भी मत आजो | अधूरी होय तो पूरी करजो पूरी होय तो मान करजो |
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