चैत को महीनो आयो, शीतला सप्तमी को दिन आयो सब ने माता कि पूजा करी , उमे एक साहूकार का बेटा कि बहु ने गर्म -गर्म सामान से पूजा करी और भोग लगायो तो माता के बदन में बहुत आग लगी , माता दौड़ती - दौड़ती कुम्हार का घर में पहुँची और बोली म्हारे बदन में बहुत जलन हो रही है, तो मिटटी में म्हारे लोटनो है और थारे घर में बासी रोटी होय , तो खाने को दे तो कुम्हार ने राब और रोटी माता के खाने के लिए दी तब जाके माता ठंडी हुई |सारी नगरी में हाहाकार मच गई और कुम्हार कि हवेली सोना कि होगी, तो कुम्हार को सबने मारा और बोला कि तूने कई कण कामण करियो हे , जिससे थारो मकान सोना को हो गया, तब कुम्हार बोल्यो मैने तो कई भी नि करियो मैने हो माता के ठंडी रोटी और राबको भोग लगायो थो और ठंडी ही खायो थो और आप सबने गर्म गर्म को भोग लगायो और गर्म ही खायो, जिससे ऐसो हुयो, तब सबने कियो कि माता कहा हे तो कुम्हार बोल्यो कि माता निमड़ी कि ठंडी छाया में बैठी है तब सब जना माता के पास आया और विनती करी तब माता बोली कि सबने गर्म गर्म से पूजा करी तो म्हारा शरीर में छाला पड गया और कुम्हार ने ठंडी चीज से म्हारी पूजा करी हे इससे में ठंडी हो गई तब माता बोली होली के बाद का सात दिन म्हारा दिन मानना छठ के ठंडी बना के रख देनो और दूसरे दिन म्हारी पूजा करके भोग लगनो उस दिन कोइ ने भी गर्म चीज नही खानि चाहिए |ऐसा सारी नगरी में ढिढोरा फिरवा दीजो | जब से यही प्रथा चली आ रही हे | हे माता जेसे कुम्हार के घर सुख दियो वेसे सबके दीजो और नगरी में दुख हुयो ऐसा कोई के मत दीजो अधूरी होय तो पूरी करजो पूरी होय तो मान करजो |
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