Saturday, December 7, 2013

करवा चौथ कि कथा (Story of Karva Chauth)



एक साहूकार था उसके सात बेटा--बहु और एक लड़की थी | उस लड़की को ब्याह कर दियो थो अब वा लड़की अपना पियर आई करवा चौथ को दिन आयो | सब भाभी ने चौथ का बरत करयो जब वा नंद बोली कि भाभी में भी चौथ को बरत करू | तब उसकी भाभी बोली बाईजी आप मत करो आपसे भूखा रहते नही बनेगा | पर नंद ने कहनो नही मान्यो और दिन भर उपवास रखो अब शाम के भूख के कारण  मुँह उदास हो गयो |

अब उसको सब भाई आया और बहन से बोल्या चल बहन अपन जीमा | तब बहन बोली कि म्हारे तो चंद्रमा देखकर ही भोजन करनो है | तब भाई बोल्या बहन चंद्रमाजी उग आया है | चल थारे बतावा अब एक भाई तो चलनी लेने गयो, दुसरो भाई डूगंर पर चढ़ गयो |तीसरा भाई झाड़ का ऊपर चढ़ गयो | बोल्यो बहन देख चंद्रमा, चंद्रमा देखकर भाभी बोली बाईजी ये तो आपको चंद्रमा उग्यो हमारो नही उग्यो है |

जब वा नंद ने चंद्रमा देख्यो अरख दियो, करवा पियो और जीमने बेठ गई | अब पहले कवो लियो तो सिर को बाल आयो, दुसरो कवो लियो और एक दम खड़ी हो गई तीसरो कवो लियो तो उसका आदमी कि मरने कि खबर आई | अब उसकी माँ ने कियो कि जो पेटी में कपड़ा हाथ में आवे वही पहन जा | अब उसने पेटी में हाथ डाल्यों तो सफेद घाघरो ओढ़नी हाथ में आयो वो पहनकर चली गई और रस्ता में जो भी मिले उसका  पाँव लगती जाय |

वा  पाँव लगती लगती ससुराल पहुची तो घर में सबका  पाँव पड़ती जावे पर कोई ने आशीष नही दी अब ६ महीना कि जेठुति पालना में सोई थी उसने ही आशीष दी कि दूधो नहाओ, पूतो फलो और अखण्ड सौभाग्वती होवो |अब सब गाँव का भेला हुआ, उसको आदमी के ले जाने लग्या तब वा बोली कि मेरा आदमी के नही ले जाने दुगी सब लोग परेशान हो गया और गाँव के बाहर एक घर बनाकर उसमे मुर्दा को उसके रख दी |वह अपना आदमी कि सेवा करती रही | ऐसो करता करता करवा चौथ को दिन आयो |

उस दिन इंद्र कि अप्सरा निचे उतरी और चौथ मांडकर पूजा करने लगी तो वा बोली कि कोई पूजा मत करो क्योकि मैने चौथ को व्रत कियो तो म्हारे आदमी मर गयो | जब वे अप्सरा बोली कि तूने व्रत को भंग कियो जिससे थारो आदमी मर गयो तू आज भी चौथ कर और बारह चौथ माता आवे उस का पाँव में पड़ जाजे |

अब उसने चौथ को व्रत कर्यो और रात के बारह बजे तक चौथ माता को रास्तो देख्यो | अब चौथ माता विकराल रूप धरके आई |नक् पड़े है, लाल पड़े है ,लम्बा  बाल है बड़ा बड़ा दाँत है |अब वा चौथ माता का पाँव पकड़ लिया जब चौथ माता बोली कि है दुष्टनी पापनी म्हारा पाँव छोड़ दे जब वा बोली कि म्हेतो आज आपका पाँव नही छोड़ूगा म्हारा आदमी के जीवित करके जाओ |

जब चौथ माता बोली महतो करवा चौथ कि छोटी बहन हूँ | म्हारा से बड़ी आवे उसका पाँव पकड जे ऐसे ग्यारह महीने कि चौथ आई | और जब चौथ माता यू कह कर गई कि करवो लेओ सात भाई कि बहन करवो ले, बिलन बाई करवो ले, चालनी में चाँद देखनी करवो ले, धनी भूखाली करवो ले, डुंगर में दू लगानी करवो ले, बरत भागनी करवो ले | वा बोली कि म्हारा से बड़ी बहन आवेगी वा थारे सुहाग देवेगी |

अब ऐसो करता करता फिर से करवा चौथ आई तो उसने सिर धोयो उपवास रख्यो, पूजा करी, करवो पियो और बैठी | रातका चौथ माता आई तो उसने जमकर पाँव पकड़ लिया | और बोली कि जब तक आप म्हारे आदमी के जीवित नही करोगा, तब तक मै नही जाने दूंगी |

अब चौथ माता ने अमृत को छीटों दियो और उसके आदमी को जीवित कर दियो | वो उठ्यो दोनों जना साथ में जिमया, और नगरी में आया | सबके बड़ो अचंभो हुयो है, सबने गाजा बाजा से उनके सामा लिया जाता ही वा सबके पाँव पड़ी सबने आशीर्वाद दियो | है चौथ माता उसके सुहाग दियो वैसे सबके दीजे | कहता सुनता हुंकारा भरता | अधूरी होय तो पूरी कर जो , पूरी होय तो मान कर जो |

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