Wednesday, May 27, 2015

श्री नर्मदाजी की आरती

जय नर्मदा भवानी,
निकसी जल धारा जोर पर्वत पाताल फोर
छटा छवि आनन्द बरन कवि सुर फनिन्द
काउत जम द्वन्द फन्द देत रजधानी
भूषण वस्त्र शुभ विशाल चन्दन को खीर भाल मनो रवी पर्वतकाल तेज ओ बखानी
देत मुक्ति परमधाम गावत जो आठों याम
दुविधा जात महाकाम ध्यावत जो प्राणी
ध्यावत आज युर सुरेश पावत नही पार
गावत नारद गणेश पण्डित मुनि ज्ञानी
संयम सागर मझधार में जल उदधि अंहकारी
उदर फार निकार धार ऊपर नित छहरानी
अष्ट भूजा बाल अखण्ड नव द्वीप
नौ खण्ड महिमा मात तुम जानी
देके दर्शन प्रसाद राखो माता मर्यादा
दास गंगे करे आरती वेद मति बखानी

 

Tuesday, May 19, 2015

श्री शिवरात्री की आरती


आ गई महाशिवरात्रि पधारो शंकरजी ।
उतारे आरती ।।
तुम नयन में हो मन धाम तेरा ।
हे नीलकण्ठ है कंठ कंठ मे नाम तेरा ।
हो देवो के देव जगत मे प्यारे शंकरजी ।
तुम राज महल में तुम्हीं भिखारी के घर में ।
धरती पर तेरा चरण मुकुट है अम्बर मे ।
संसार तुम्हारा एक हमारे शंकरजी ।
तुम दुनिया वसा कर भस्म रमाने वाले हो ।
पापी के भी रखवाले भोले भाले हो
दुनिया में भी दो दिन तो गुजारो शंकरजी
क्या भेंट चढ़ाये तन मैला घर सुना ।
ले लो आंसू के गंगाजल का है नमूना
आ करके नयन में चरण पखारो शंकरजी

श्री माता वैष्णो देवी की आरती

सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़या
सुआ चोली तेरी अंग विराजे केसर तिलक लगाया । सुन
ब्रम्हा वेद पढ़े तेरे व्दारे शंकर ध्यान लगाया । सुन
नंगे पैर पग से तेरे सम्मुख अकबर आया
सोने का छत्र चढ़ाया । सुन
ऊँच पर्वत बन्या शिवाली नीचे महल बनाया । सुन
सतयुग व्दापर त्रेता मध्ये कलयुग राज बसाया । सुन
धूप दीप नैवेघ आरती मोहन भोग लगाया । सुन
ध्यानु भक्त मैया तेरा गुन गाया , मनवांछित फल पाया । सुन

श्री पार्वतीजी की आरती

जय श्री पार्वती माता जय श्री पार्वती माता
ब्रम्हा सनातन देवी शुभ फल की दाता ।
अरिकुल पदम विनासनि निज सेवक त्राता
जग जननी जगदम्बा हरि हर गुण गाता । जय
सिंह को वाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देव वधु जह गावत नृत्य करत ताथा । जय
सतयुग रूपशील अतिं सुन्दर नाम सती कहलाता
हेमांचल घर जन्मी सखियन संगराता । जय
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमांचल स्थाता,
सहस्त्र भुज तनु धरिके च्रक लियो हाथा । जय
सृष्टि रूप तब ही जननी शिव संग रंगराता
नन्दी भृगीं बीन लही सारा जग मदमाता । जय
देवन अरज करत हम मन चित को लाता,
गावत दे दे ताली मन में रंग राता । जय
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता ।जय


Saturday, May 16, 2015

श्री तुलसीजी की आरती

जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता । जय
सब योगो के ऊपर सब रोगो के ऊपर,
रूज से रक्षा करके भव त्राता । जय
बटुक पुत्री हैं शयामा सुर बल्ला है ग्राम्या,
विष्णु प्रिय जो तुम को सेवे सो तर जाता । जय
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वन्दित,
पतितजनों की तारिणी विख्याता । जय
लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में
मानव लोक तुम्ही से सुख सम्पति पाता । जय
हरि को तुम अति प्यारी शयाम वरण कुमारी
प्रेम अजब हैं उनका तुम से कैसा नाता । जय


श्री अन्नपूर्णाजी की आरती

बारम्बार प्रणाम मैया बारम्बार प्रणाम
जो नहीं ध्यावे तुम्हे अम्बिके , कहाँ उसे विश्राम
अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो , लेत होत सब काम
प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर , कालान्तर तक नाम
सुर सुरो की रचना करती , कहाँ कृष्ण कहाँ राम
चुमहि चरण चतुर चतुरानन, चारू चक्रधर शयाम
चन्द्र चुड़ चन्द्रानन चाकर ,शोभा लखहि सलाम
देवी देव। दयनीय दशा में दया दया तब जाम
त्राहि त्राहि शरणागत वत्सल , शरण रूप तब धाम
श्री ही श्रध्द श्री हे एे विघा , श्री कली कमला काम
कांति भ्रांतिमय कांतिं शांति सयोवर देतू निष्काम ।


Friday, May 15, 2015

श्री गंगाजी की आरती

ओऽम जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता
जो नर तुमको ध्याता ,मनवांछित फल पाता ।ओऽम
चन्र्दसी ज्योति तुम्हारी ,जल निर्मल आता,
शरण| पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता । ओऽम
पूत्र सागर के तारे ,सब जग की ज्ञाता
तेरी कृपा दृष्टि है मैया त्रिभुवन सुखदाता । ओऽम
एक बार जो प्राणी तेरी शरण आता
यम की त्रासमिटाकर परममोक्ष पाता ।
आरती माता तुम्हारी जो नर नित्य गाता
सेवक वही सहज में मुक्ति को पाता । ओऽम

श्री गायत्री देवी की आरती

आरती श्री गायत्रीजी की ज्ञान द्वीप और श्रद्धा की बाती
सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी की । आरती
मानस की शुची थाल के ऊपर ,
देवी की ज्योति जगै जह नीकी
शुध्द मनोरथ ते जहां घण्टा
बाजै करै आसुह ही की । आरती
जाके समक्ष हमें तिहुं लोक के ,
गद्दी मिले तबहुं लगे फीकी । आरती
आरती प्रेम सौ नेम सो करि
ध्यावहिं मूरति ब्रम्हा लली की । आरती
संकट आवे न पास कबौ तिन्हें
सम्पदी और सुख की बवै लीकी । आरती

Thursday, May 14, 2015

श्री जगदम्बा माता की आरती

आरती कीजे शैल सुता की
जगदम्बा की आरती कीजै
स्नेह सुधा सुख सुदंर लीजै
जिनके नाम लेत दृग मीजै
ऐसी वह माता वसुधा की । आरती
पाप विनशिनी कलि मल हारिणी
दयामयी,भवसागर तारिणी
शस्त्र धारिणी शैल विहारिणी
बुध्दिराशी गणपति माता की । आरती
सिंहवाहिनी मातु भवानी
गौरव गान करें जग प्राणी
शिव के ह्रदयासन की रानी
करें आरती मिल जुल ताकी । आरती

श्री अम्बाजी की आरती

अम्बे तू जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली,तेरे ही गुन गाये भारती
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ।
तेरे भक्त जनों पर माता पीर पडी है भारी
दानव दल पर टूट पडा माँ करके सिंह सवारी
सौ सौ सिंह से बलशाली है दस भुजा वाली,
दुखियों के दुखडे निवारती । ओ मैया
माँ बेटे का है इस जग में बडा़ ही निर्मल नाता
पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता
सब पे करूणा दरसाने वाली अमृत बरसाने वाली
दुखियों के दुखडे़ निवारती । ओ मैया
नही हम मांगते धन और दौलत ना चाँदी ना सोना
हम तो मांगे माँ तेरे में एक छोटा सा कोना
सबकी बिगडी़ बनाने वाली लाज बचाने वाली
सतियो के सत को संवारती । ओ मैया

Tuesday, May 12, 2015

श्री रामचन्द्रजी की स्तुति


श्रीरामचन्द्रजी कृपालु भजु मन हरण भव भय दारूणं ।
नवकंज लोचन,कंजमुख,करकजं ,पद कंजारूणं ।।
कंदर्प अगणित अमित छवि ,नव नील नीरद सुंदरं ।
पट पीत मानहु तडित रूची शुचि नौमी जनक सुतावरं ।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनं ।
रघुनंद आनंद कंद कोशल चदं दशरथ नंदनं ।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारू अंग विभुषणं ।
आजानु भुज सर चाप धर ,संग्राम जीत -खर दूषणं ||
इति वेदति तुलसीदास शंकर -शेष -मुनि -मन रंजनं |
मम ह्रदय कुंज-निवास कुरू ,कामादि खल -दल - गजनं ||
दोहा --मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरू सहज सुंदर साँवरो |
करूणा निधान सुजान सीलु सनेहू जानत रावरो ||
एहिभाँति गौरि असिमसुनि सीयसहित हियँहरषी अली 
तुलसी भावनिहिपूजि पुनि -पुनि मुद्रित मनमन्दिर चली ||   

Monday, May 11, 2015

श्री रामचन्द्र की आरती

आरती कीजै रामचन्द्रजी की,
हरि हरि दुष्ट दलन सीता पतिजी की ।
पहली आरती पुष्पन की माला,
काली नाग नाथ लाये गोपाला ।
दुसरी आरती देवकी नन्दन ,
भक्त उबारन कंस निकन्दन ।
तीसरीं आरती त्रिभुवन मोहे ,
रत्न सिहासन सीता रामजी सोहे।
चौथी आरती चहूं युग पूजा ,
देव निरंजन स्वामी और न दूजा ।
पाँचवी आरती राम को भावे ,
रामजी का यश नामदेवजी गावे ।

श्री यमुना की आरती

ओऽम जै यमुना माता ,हरि ओऽम जै यमुना माता
जो नहावे फल पावे सुख सुख की दाता । ओऽम
पावन श्री यमुना जल शीतल अगम बहे धारा
जो जन शरण से कर दिया निस्तारा । ओऽम
जो जन प्रातःही उठ कर नित्य स्नान कर
यम के त्रास न पावे जो नित्य ध्यान करे । ओऽम
कलिकल मे महिमा तुम्हारी अटल रही
तुम्हारा बढा महातम चारो वेद कही । ओऽम
आन तुम्हारे माता प्रभु अवतार लियों
नित्य निर्मल जल पिकर कंस को मार दियो । ओऽम
नमो मात भय हरणी शुभ मंगल करणी
मन बैचेन भया है तुम बिन बैतरणी । ओऽम

 

Friday, May 8, 2015

श्री लक्ष्मी माता की आरती

जय   लक्ष्मी  माता जय लक्ष्मी माता
तुमको निशदिन सेवत हर विष्णु विधाता ।
ब्रमाणी कमला तू ही है जगमाता
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता । जय ...
दुर्गा रूप निरन्जन सुख सम्पति दाता
जो कोई तुझको ध्यावत ऋृध्दि सिध्दि धन पाता । जय ...
तू ही है पाताल बसन्ती तू ही शुभ दाता
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी नवनिधी की त्राता । जय ...
जिस घर थारो बासो तेही मे गुण गाता
सब संभव हो जाता मन नही घबराता । जय ...
तुम बिन यज्ञ न होवे वस्त्र न कोई पाता
खान पान वैभव सब तुमसे ही आता । जय ...
शुभ गुण सुन्दर मुक्ति क्षीर निधी जाता
रत्न चतुर्दश ताको कोई नही पाता । जय ...
आरती लक्ष्मीजी की जो कोई नर गाता
उर आन्नद अति उमंगे पाप उतर जाता । जय ...
स्थिर चर जगत बचाये कर्म प्रख्यात
राम प्रताप मैया की शुभ दृष्टि चाहता । जय ...