ओम जय विणे वाली मैया जय विणे वाली
ऋद्धि सिद्धि की रहती हाथ तेरे ताली
ऋषि मुनियो की बुद्धि को शुद्ध तू ही करती
स्वर्ण की भाती शुद्ध तू ही करती
ज्ञान पिता को देती गगन शब्द से तू
विशव को उत्पन्न करती आदि शक्ति से तू
हंस वाहिनी दीजे भिक्षा दशर्न की
मेरे मन में केवल इच्छा दर्शन की
ज्योति जगाकर नित्य यह आरती जो गावे
भव सागर में दुःख में गोता न कभी खावे
ऋद्धि सिद्धि की रहती हाथ तेरे ताली
ऋषि मुनियो की बुद्धि को शुद्ध तू ही करती
स्वर्ण की भाती शुद्ध तू ही करती
ज्ञान पिता को देती गगन शब्द से तू
विशव को उत्पन्न करती आदि शक्ति से तू
हंस वाहिनी दीजे भिक्षा दशर्न की
मेरे मन में केवल इच्छा दर्शन की
ज्योति जगाकर नित्य यह आरती जो गावे
भव सागर में दुःख में गोता न कभी खावे
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