Monday, April 24, 2017

हलछट की कहानी


एक ग्वालीन के प्रसव का समय था उसका दही बेचने के लीये रखा हुआ था वह सोचने लगी यदी बालक ने जन्म ले लिया तो दही नही बिक पायेगा अतः वह दही की मटकी सिर पर रख कर चल दी चलते चलते जब एक खेत के पास पहुंची तो उसकी प्रसव पीड़ा बढ गई उसने वहा लडके को जन्म दिया तथा उसने लडके को कपडे में लपेट कर वही रख दिया और मटकी उठा कर आगे बढ़ गई उस दिन हल छठ थी पर उसका दही गाय और भेस के दूध का था उसने बेचते समय यही बताया की यह गाय के दूध का है तो उसका सारा दही बिक गया | जहाँ ग्वालिन ने बच्चे को रखा था वहा पर किसान हल जोत रहा था उसके बैल खेत की मेढ़ पर चढ़ गए और हल की नोक बच्चे के पेट में घुस गई बच्चा मर गया किसान को बहुत दुःख हुआ उसने पत्तो से उसे ढ़क दिया जब ग्वालिन ने देखा तो वह सोचने लगी की यह मेरे पाप का फल है मेने आज हल छठ के दिन व्रत करने वालो का धर्म भ्र्ष्ट करा है उसी का दंड है मुझे लौट कर अपने पाप का प्राश्चित करना चाहिए वह लौट कर उसी जगह गई जहाँ दही बेचा था और जोर जोर से आवाज लगाने लगी की मेने आप लोगो का धर्म नष्ट करा है मेने झूट बोला था यह सुनकर सभी लोगो ने उसे धर्म रक्षा के विचार से उसे आशीष दिया जब वह वापस उसी जगह पहुँची तो उसका बच्चा पत्तो की छाया में खेल रहा था उसी दिन से ग्वालिन ने पाप छिपाने के कभी झूट न बोलने का प्रण किया इसलिए हल छठ के दिन हल से जुटा हुआ अनाज नहीं खाते है

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