एक ग्वालीन के प्रसव का समय था उसका दही बेचने के लीये रखा हुआ था वह सोचने लगी यदी बालक ने जन्म ले लिया तो दही नही बिक पायेगा अतः वह दही की मटकी सिर पर रख कर चल दी चलते चलते जब एक खेत के पास पहुंची तो उसकी प्रसव पीड़ा बढ गई उसने वहा लडके को जन्म दिया तथा उसने लडके को कपडे में लपेट कर वही रख दिया और मटकी उठा कर आगे बढ़ गई उस दिन हल छठ थी पर उसका दही गाय और भेस के दूध का था उसने बेचते समय यही बताया की यह गाय के दूध का है तो उसका सारा दही बिक गया |
जहाँ ग्वालिन ने बच्चे को रखा था वहा पर किसान हल जोत रहा था उसके बैल खेत की मेढ़ पर चढ़ गए और हल की नोक बच्चे के पेट में घुस गई बच्चा मर गया किसान को बहुत दुःख हुआ उसने पत्तो से उसे ढ़क दिया जब ग्वालिन ने देखा तो वह सोचने लगी की यह मेरे पाप का फल है मेने आज हल छठ के दिन व्रत करने वालो का धर्म भ्र्ष्ट करा है उसी का दंड है मुझे लौट कर अपने पाप का प्राश्चित करना चाहिए वह लौट कर उसी जगह गई जहाँ दही बेचा था और जोर जोर से आवाज लगाने लगी की मेने आप लोगो का धर्म नष्ट करा है मेने झूट बोला था यह सुनकर सभी लोगो ने उसे धर्म रक्षा के विचार से उसे आशीष दिया जब वह वापस उसी जगह पहुँची तो उसका बच्चा पत्तो की छाया में खेल रहा था उसी दिन से ग्वालिन ने पाप छिपाने के कभी झूट न बोलने का प्रण किया इसलिए हल छठ के दिन हल से जुटा हुआ अनाज नहीं खाते है
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