Thursday, February 25, 2016

बैशाख की कहानी

एक पति पत्नि था ,बहुत गरीब था, लकडी बेचकर अपना पेट भरता था। बैशाख का महिना आया सब औरते बैशाख नहाने लगी तो वो रोज सबके देखा देख बैशाख नहाने लगी वो रोज लकडी के गठठ्रर मै से एक लकडी ऩिकालकर अलग रख देती रोज नहा कर आती । आंवला ,पीपल सींचती । एेसा करते करते महीना पूरा हो गया अब वा नहाकर भगवान का नाम लीयो और लकडी बेचने गई तो वे लकडी चंदन की हो गई अब गाँव का राजा बोल्या लकडी का क्या भाव हैं वह बोली आप जो देओगा वही लेलुगी मेरे को तो पाँच ब्राहाम्ण जिमाना है इतनो चाहिए ।राजा ने अपवा नौकर के साथ पाँच ब्राहाम्ण जिमे इतनो सीधो भेज दियोतब उसने लडडू बनाया ब्राहाम्ण के जीमाया,दक्षिणा दी तो ब्राहाम्ण ने आशीर्वाद दियो और झोपडी से महल बनगया ,चौका छतीस प्रकार का पकवान बव गया

     उसको आदमी लकडी बेचकर आयो तो झोपडी दिखी नही जब पडोसन से पुछयो तो वा बोली ये थारो ही घर हैं इतना मै वा औरत आई और बोली ये अपनो ही घर हैं फिर उसने सारी बात बताइ अब दोनो पति पत्नि आराम से जीमे और भजन पुजन करे है अधुरी होय तो पूरी करजो पूरी होय तो मान करजो

बैशाख माह की विधी


बैशाख के महिने मै स्नान का बहुत महत्व हैं । इसकी कहानी रोज सुनना चाहिए, जो का सतू बनाकर अवशय खाना चाहिए । ब्राहाण के यहाँ पानी  भरवाना , जगह जगह पर प्याऊ लगवानी चाहिए |

Wednesday, February 24, 2016

हनुमानजी की कहानी

एक औरत रोज हनुमानजी के मंदिर जाया करती, साथ मे साग रोटी और चूरमा ले जाती वह हनुमानजी से कहती लाल लंगोटो ,कांधे सोटो लेयो हनुमानजी खाओ रोटो अब उस साहूकारणी के बेटा को ब्याह हो गयो बहू घर में आ गई । बहू ने सासुजी से पुछयो की आप रोज रोटी को चूरमो बनाकर कहा ले जाओ । सासू बोली की हनुमानजी के मंदिर मे , बहू बोली की आप रोज रोज मंदिर नही जा सको जब सासू ने रोटी पानी कुछ भी नही खायो जब तक मंदिर नही गई उसको तो रोज को नीयम थो अब पाँच दिन हो गया सासू उठी नही । जब हनुमानजी आया और बोल्या बुढिया माई क्यो सोई है ।उठ उठ लाल लंगोटो कांधे सोटो हाथ मै रोटो उठ कर दर्शन कर ले और रोटी खाले । बुढिया माई बोली की आज तो आप दे जाओगा काल कोन देवेगो। जब हनुमानजी ने कीयो की म्हेतो रोज दे जाऊंगा जब उठी दर्शन करया और चूरमो को भोग लगायो और रोटी खाई बुढिया माई के कमरा मै तो हनुमानजी ने सारा ही ठाट बाट कर दियो उसके बहार निकलने का ही काम नही

    उधर बहू का घर में बहुत गरीबी हो गई खाने को दाना नही एक दिन बहू के मन मे विचार आयो की सासू के कुछ भी खाने को नही दियो जाकर देखू तो सही केसी दशा है जाकर देखा तो सासू के वहा पर हनुमानजी का मंदिर है रोज चूरमो बनाकर भोग लगांवे और अच्छी तरह से जीमे है और आनंद से रेवे  बहू सासू के पॉव पड़ गई कि मैने आपके बहुत दुख दियो अब मेभी रोज हनुमानजी के मंदिर मे जाऊगी और चूरमो को भोग लगाऊगी । हे  हनुमानजी उस सासू के टूटया जैसा सबके टूटजो कहता सुनता हुकारा भरता ।

Sunday, February 21, 2016

नृसिंह भगवान की कथा

नृसिंह अवतार की कथा सतयुग की है । हिरण्य कश्यप और हरणायक्ष नाम के दो राजा थे उन्होने अपने पाप से राक्षस की योनी में जन्म लिया अब एक हरणायक्ष राक्षस था उसको तो वाराह रूपधारी भगवान ने मार डाला अब दूसरे राक्षस ने बहुत उधम मचा रखी थी वह भगवान का नाम तक नही लेने देता था उपवास व्रत भी नही करने देता था अब हिरण्य कश्यप की पत्नि को एक बालक का जन्म हुआ उसका नाम प्रहलाद था जब वह बालक पॉच वर्ष का हुआ तो उसे गूरू के पास विध्या पढने के लीये भेज दिया और उसके पिता ने भी उसे अलग अलग प्रकार की यातना दी कभी पहाड पर से गिराया कभी आग मै डाला कभी खम्बा गरम कर उसमे लपेटा लेकीन प्रहलाद ने राम का नाम लेना नही छोडा और आखिर मे भगवान ने नृसिंह अवतार धारण करके हिरण्य कश्यप राक्षस को मार डाला और प्रहलाद को बचा लीया

नृसिंह जयन्ति की विधी


वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्थी ,नृसिंह चौदस के नाम सै जानी जाती है इस दिन भगवान नृसिंह का जन्म हुआ था इस दिन उपवास रख कर जन्म के रूप मे सवारी निकालते है