Friday, June 26, 2015

श्री बद्रीनारायणजी की आरती

पवन मन्द सुगन्ध शीतल हेम मन्दिर शोभितम
निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम
शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ,ध्यान महेशवरम
श्री वेद ब्रह्मा करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
शक्ति गौरी गणेश शारद मुनि उच्चारणम्
जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विशमभरम्
इन्द्र चन्द्र कुबेर धुनिकर दीप धूप प्रकाशीतम्
सिध्द मुनिजन करत जै जै श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
यक्ष किन्नर कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम्
श्री लक्ष्मी कमला चंबर डोले श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
कैलाश में एक देव निरंजन शैल शिखर महेशवरम
राजा युधिष्ठिर करत स्तुति श्री बद्रीनाथ विशवम्भरम्
श्री बद्रीनाथ के पंचरत्न पढ़त पाप विनाशनम्
कोटि तीर्थ भवेत् पुण्य प्राप्यते फलदायकम्

Tuesday, June 16, 2015

श्री कुन्ज बिहारी की आरती



आरती कुन्ज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
गले में वैजंतीमाला ,बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला ,नंद के नंदलाला। श्री गिरधर
गगन सम अंग कांति काली ,राधिकां चमक रही आली , लतन में ठाढे़ बनमाली ।
भ्रमर सी अलक , कस्तूरी तिलक , चन्द्र सी झलक , ललित छवि स्यामा प्यारी की ,
श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
कनकमय मोर मुकुट बिलासै , देवता दरसन को तरसै गगन सौ सुमन रसि बरसै ,
बजे मुरचंग मधुर मिरदंग ग्वालनी संग
अतुल रति गोपकुमारी की , श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
जहाँ से प्रकट भई गंगा , कलुष कलिहारिणि श्री गंगा , स्मरन ते होत मोह भंगा ।
बसी शिव सीस , जटा के बीच हरे अघ कीच ,
चरन छबि श्री बनवारी की , गिरधर कृष्ण मुरारी की
चमकती , उज्जवल तट रेनू , बज रही बृन्दावन बेनू ,
चहूं दिसि गोपी ग्वाला धेनू ।
हंसत मृदु मंद , चांदनी चंद , कटत भव फंद ,
टेर सुर दिन  भिखारी की ,श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।
आरती कुन्ज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।

श्री शेषनारायणजी की आरती


आरती शेषनारायणजी की
जिनसे उत्पत्ति है सब ही की ।
प्रलय काल अन्त में आप ही शेष है ,
सृष्टि रचने में आपका ही आदेश है
तुम्ही ने जीवो को जन्म दिया था
उस समय स्थान न तन मिला था
तब देह हेतु विनय भई जीवों की,
सृष्टि रचना मन में उपजाई नीकी । आरती
तुम्ही हो माता पिता बन्धु सखा हो
तुम्ही हो कर्म अरू ज्ञान के दाता हो
तुम्ही ने विशवकर्माजी को रूप लीनो है
तुम्ही ने ब्रम्हााजी का निर्माण कीनो है
जब अखण्ड तपस्या देखी ब्रम्हाजी की
तब प्रसन्न हो दर्शन दिये नीकी । आरती
एवमस्तु कह कर जब वर दियो है,
ब्रम्हा जी ने कहा सृष्टि रचना कठिन है,
पंच मुखी दस भुजा का रूप लीयो है,
विशवकर्माजी को नाम जगत मे कियो है ,
पांच पुरूष जिनसे उपजाये है नीकी,
जिनकी कीर्ति जगत में हो रही नीकी । आरती
मनु नय त्वष्टा शिल्पी दैवज्ञ किये है,
जिन्होंने सृष्टि रचकर वेद उपजाये है ,
ऋग्वेद यजुर्वेंद सामवेद किये है,
अथर्ववेद प्रणव वेद उपजाये है,
जिनसे शास्त्र पुराण हुये अति नीकी ।आरती
विराट पुरूष को रूप जगत में लियो है,
जिनसे जगत में नर नारी उपजाये है ,
दाहिने अंग से नारी को जन्म दियो है,
वाम अंग से नर को जन्म दियो है ,
एसा वेद शास्त्र पुराण वर्णत है , नीकी ,
महिमा अपरम्पार जगत में नीकी । आरती
ब्रम्हा जी सृष्टि रचयिता विष्णु पालन रूप,
महेश संहारन हेतु जगत में लीनों रूप ,
एसे रूप अनेक जगत में उपजाये है ,
जिनकी कीर्ति गााते नर नारी सुख पाये है,
आरती शेषनारायणजी की जो सबकी हित की,
भव के दुख से छूटे सुख सम्पति पावे नीकी,
आरती शेषनारायणजी की जिनसे उत्पत्ति है सब ही की