Tuesday, March 17, 2015

आंवला नवमी की कहानी


एक राजा था वो रोज सोना का आंवला  ब्राह्मण को दान करता था जिसका बाद रोज दोनों जना जीमता  | अब एक दिन राजा का बेटा बहू धन  की तिजोरी में ताला लगादियो  और पिताजी के बोल्या  कि अब तुम आवला धर्म नही कर सकोगे अब राजा रानी जंगल में जाकर बैठ  गया सात दिन हो गए जब तक आंवला दान नही करे तब तक कुछ खाये नही भगवान राधा दामोदरजी बोल्या अपन इसको सत नही रखा गा तो अपनी बात कोन मानेगा | राजा रानी के भगवान ने सपनो दियो कि तू उठ देख सोना को महल राजा सा ठाट बाट महल में सोना को आंवला अब वोतो रोज दोनो जना सोना को आंवला दान करे और प्रेम से रेवे है इधर बूह का घर में तो खाने को दाना भी नही बचा है सब बोल्या  जंगल में एक सोना को महल है वह पर राजा रानी रोज सोना को आंवलों दान करे है अब वो राजा को लड़को उसी राजा का महल में गयो और बोल्यो महल में म्हारे भी नौकरी पर रख लो  अब बेटा बहू दोनों के नौकरी पर रख लिया | एक दिन बहू से रानी बोली म्हारे निलादे व सिर धोने लगी तो बहु के आँख में से पानी गिरयो  तब रानी बोली की तू म्हारी पीठ पर आँसू क्यों गिरावे क्या बात है तू बतादे | जब वा बहू बोली  की मेरी भी सासू की पीठ पर ऐसे ही मसो थो | यो मसो देखकर |

मारी सासू माँ की याद आ गई वा भी रोज सोना को आंवलों देकर जीमती थी | वो म्हेलोग आंवलों  नही देने दियो और घर से निकाल दिया तब वे राजा रानी बोल्या की मे ही तेरा सासू सुसरा हां  तुमने म्हारे निकल दियो फिर भी म्हारी सत तो भगवान ने ही रखी है वे ही राजा रानी और बेटा बहू सब एक जगह अच्छी तरह से रहने लग्या है | राधा दामोदर  भगवान राजा रानी के टुट्या जैसे सबके टूट जो सुनता हुंकारा भरता |

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