Friday, May 12, 2017

होई माता की कहानी

एक साहूकार था उसके सात लडके, बहु और एक लडकी थी सब खदान मे मिट्टी लेने गये खदान मे मिट्टी खोदते वक्त लडकी के हाथ से स्याऊ माता का बच्चा मर गया तो माता बोली कि मे तेरी कोख बाँध दूगी अब वह लडकी सब भाभी से कहने लगी मेरे बदले आप मेसे कोई एक कोख बँध वा लो सबने मना कर दिया पर छोटी बहु ने हाँ कर दी और कोख बँध वाली अब उसके एक भी बच्चा जीवित नहीं रहता अब वह गाय की सेवा करने लगी  एक दिन गऊ माता बोली तेरी क्या इच्छा है मांग ले बहु बोली वचन देओ गऊ माता ने वचन दे दिया वह बोली स्याऊ माता तेरी सहेली है उसने मेरी कोख बाँध दी है उसे छुडाओ

अब दोनो घर से निकले रास्ते मे एक साँप बच्चे को डस रहा था तो बहु ने तलवार से मार दिया अब दोनो स्याऊ माता के पास गये और बाते करने लगे बहु ने स्याऊ माता कि बहुत सेवा करी अब दोनो जने जाने लगे तो बहु से स्याऊ माता बोली की तेरी भी बहु आयेगी तो उसने कहा मेरे तो एक भी बेटा जिवित नही है बहु कहा से आयेगी मेरी कोख तो तेरे पास है स्याऊ माता बोली घर जा थारी बहु बेटा और लडकी सब जिवित है  अब उसने घर आकर देखा सब खडे थे सब ने मिलकर होई अष्टमी का उद्यापान करा हे होई माता उस बहु को टुटी ऐसे सब को टुटजे कहता सुनता हुकारा भरता अधुरी होय तो पूरी करजे पुरी होय तो मान करजे

होई अष्टमी की विधी

यह व्रत दीवाली से पहले जो अष्टमी आती है उस दिन करते है इसमे होई माता की पूजा कर शाम को तारो को अरख देकर खाना खाते है