एक राजा था उसकी कोई सन्तान नही थी उसने पण्डित को बुलाकर पुछयो की म्हारे सन्तान नही जीवे आप ऐसो उपाय बताओ जिससे म्हारे सन्तान जीने लग जाय जब पण्डित ने कहा तुम्हारे भाग्य में कन्या लिखी हैं पर वह शादी के बाद विधवा हो जायेगी जब राजा ने कहा कई भी होवे पर मेरा बाँछपन तो मिट जायेगा
बाद में खूब यज्ञ करवाया तो कन्या का जन्म हुआ का नाम सावित्री रखा जब सावित्री बडी हुई तो उसका ब्याह सत्यवान के साथ कर दिया सावित्री के सास ससुर अंधे थे सावित्री उनकी बहुत सेवा करती थी सत्यवान जंगल में लकडी काट कर लाता अब सावित्री को मालुम थी की मे शादी के बाद विधवा हो जाऊगी उसने सत्यवान से विनती करी की मे भी आपके साथ लकडी काटने चलूगी जब सत्यवान ने कहा की तु मेरे साथ चलेगी तो मेरे अँधे माँ बाप की सेवा कोन करेगा सावित्री जल्दी से सास ससुर के पास गई और बोली की मे भी जंगल देखने चली जाऊ तो उन्होने कहा हाँ चली जा जंगल में सावित्री लकडी काट ने लगीऔर सत्यवान झाड के नीचे सो गया उस पेड के नीचे एक साँप रहता था उसने सत्यवान को काट लीया अब वा अपने पति को गोदी मे लेकर रोने लगी थोडी देर में महादेव पार्वती उधर से निकले वा उनका पाँव में पड गई और बोली की आप म्हारे पति को जीवित करो जब वे बोल्या की आज बड सावित्री अमावस्या हैं तू बड की पूजा कर तेरा पती जीवित हो जायेगा उसने बड की पूजा करी इतने में धरमराज का दूत सावित्री ते पती को लेजाने लगे तो उसने उनके पॉव पकड लीयो और धरमराज बोल्या की वरदान माँग सावित्री ने कहा मेरे माँ बाप के पुत्र नही है धरमराज बोल्या की पुत्रहो जायेगे फिर सावित्री बोली की म्हारे सास ससुर अंधे हैतो उनकी आँखे आ गई और धरमराज बोल्या सदा सुहागन हो तो वो बोली की आप म्हारे पती को तो लेजा रहे हो धरमराज बोल्या की सती थारे सुहाग दियो है और तुने बड अमावस्या की पूजा करी इसलिये तेरा पती जीवित हो गया अब उसने पूरे गाँव ने ढिढोरा पिटवाया की जेठ माह की जो अमावस्या आती है उसको बड की पूजा करनी चाहिए और उस दिन बड के पत्ते के गहने बनाकर पहनने चाहिए धरमराज जी ने सावित्री को सुहाग दियो वेसे सबके देवे
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